सृष्टि का संकट हरने को ही अवतार लेती हैं मां जगदम्बा-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी WWW.JANSWAR.COM

सृष्टि का संकट हरने को ही अवतार लेती हैं मां जगदम्बा।

-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी

भारतीय जनमानस में शारदीय नवरात्रियों का अपना विशेष महत्व है।अश्वनी मास की शुक्ल पक्ष की पड़वा तिथि से नवमी तिथि तक माता आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है प्रथम दिन घट स्थापना के बाद शैल पुत्री याने पार्वती की पूजा की जाती है,दूसरे दिन-ब्रह्मचारिणी स्वरुप का तीसरे दिन-चन्द्रघंटा,चौथे दिन-कुष्मांडा,पांचवें दिन- स्कंध माता,छटवें दिन -कात्यायिनी,सातवें दिन- कालरात्रि, आठवें दिन-महागौरी और नवें दिन-सिद्धिदात्रि की पूजा की जाती है।
हमारे पुराणों के अनुसार आदिशक्ति की पूजा का यह विधान मधु-कैटवभ वध के समय भगवान विष्णु ने किया था। बाद में महिषासुर व शुम्भ-निशुम्भ के आतंक के समय देवताओं ने इस पूजन को किया था। धरती पर राम रावण युद्ध से पूर्व महर्षि नारद ने श्री राम से इसे करवाया था। उसके बाद इस पूजन को मानवों द्वारा किया जाने लगा।
श्रीमद्देवीभागवत पुराण के तृतीय स्कंध के अध्याय-30 के अनुसार देवर्षि नारद जी सीता हरण के बाद श्री राम को नवरात्र व्रत करने का परामर्श देते है। श्री राम के यह पूछने पर कि इस नवरात्र पूजन को सबसे पहले किसने किया तो देवर्षि बताते हैं कि जब दैत्य मधु और कैटभ को श्री हरि नहीं मार सके तो उन्होंने यह पूजन किया था,शिव जी ने त्रिपुर के वध से पूर्व इस पूजन को किया था। इसके अतिरिक्त ब्रह्मा, इंद्र, विश्वामित्र, भृगु, वशिष्ठ और कश्यप,देव गुरु बृहस्पति ने यह व्रत किया था।

“विष्णुना चरितं पूर्वं महादेवेन ब्रह्मणा ।तथा मघवा चीर्ण स्वर्मध्यस्थितेन वै।।”अ०30,श्लौक-21

“विश्वामित्रेण काकुत्स्थ कृतमेतन्नसंशय:, भृगुणाथ, वशिष्ठेन कश्यपेन तथैव च।।”अध्या०30श्लोक23

“गुरुणा हृतदारेण कृतमेतन्महा व्रतम्,तस्मात्वं कुरु राजेन्द्र रावणस्य वधाय च।।”अध्या०30,श्लोक24
नारद जी के कहने पर श्री राम ने इस पूजन को विधि पूर्वक कर रावण पर विजयी पायी थी।
कौन हैं यह आदि शक्ति ? इसके संबंध में नारद जी बताते हैं कि यह देवी नित्य,सनातनी और आद्यशक्ति हैं उनकी आराधना से सभी कष्ट दूर होते हैं।

शृणु राम सदा नित्या शक्तिराद्या सनातनी। सर्वकामप्रदा देवी पूजिता दु:ख नाशिन:।।अध्या०30,श्लोक 28

वस्तुत:यह देवी ब्रहमाण्ड में प्रकृति के रुप में व्याप्त है। जब सृष्टि पर कोई ऐसा संकट आता है।त्रिदेव (ब्रह्मा,विष्णु, महेश) भी जब उस कष्ट को दूर करने में असमर्थ हो जाते हैं तब यह देवी आकार लेती हैं।
इस मन्वमन्तर के प़्रारम्भ में जब महिषासुर का अत्याचार बढ गया और उसके अत्याचार से जब सारी सृष्टि त्राहि माम करने लगी तब ब्रह्मा व शिव के नेतृत्व में देवता विष्णु जी के पास गये। विष्णु जी ने बताया कि ब्रह्मा जी के वरदान से उसका वध केवल स्त्री ही कर सकती है। ऐसे में हमको आदिशक्ति का आवाह्न करना चाहिए। वही इस असुर का वध करने में सक्षम हैं। यह कहते ही विष्णु जी के मुख से एक सात्विक तेज तो ब्रह्मा के मुख से रजस तेज तथा शिव के मुख से तमस तेज निकला।तीनों आपस में मिल गये। तत्पचात् प्रत्येक देव का तेज उस तेज में मिलता गया। कुछ ही क्षणों में उस तेज पुंज ने माता आदि शक्ति का रूप धारण कर लिया।
पश्यतां तत्र देवानां तेज:पुञ्जसमुद्भवा। ,बभूवातिवरा नारी सुन्दरी विस्मयप्रदा।। 43।।त्रिगुणा सा महालक्ष्मी: सर्वदेवशरीरजा।अष्टादशभुजा रम्या त्रिवर्णा विश्वमोहनी।।44(श्रीमद्देवीभागवत पंचम स्कंध अष्टम अध्याय।) त्रिदेवों व अन्य सभी देवों के तेज युक्त वह अलौकिक रूप लावण्य चेहरे पर मृदुल मातृत्व मुस्कान व अट्ठारह हाथों वाली माता विशाल सिंह पर सवार थीं।सभी देवताओं ने उन्हें अपने-अपने शस्त्र दिये। देवी ने महिषासुर को युद्ध की चुनौती देते हुए उसे पाताल लौट जाने को कहा पर शक्ति मद में चूर महिषासुर ने उनकी चुनौती स्वीकार की और युद्ध में सैनिकों सेनापतियों सहित मारा गया। यह युद्ध नौ दिन तक चला था।

श्री मार्कण्डेय पुराण के पंचम अध्याय के अनु्सार इसके बहुत समय पश्चात् शुम्भ निशुम्भ भाइयों ने ब्रह्मा जी से यह वरदान पाकर कि पुरुष जाति से हम अवध्य रहें,सृष्टि में हा हा कार मचा दिया देवताओं का स्वर्ग छीन लिया।
पुरा शुम्भनिशुम्भाभ्यामसुरायां शचि पतै।त्रैलोक्यं यज्ञभागाश्च हृता मदबलाश्रयत्।।2।।तांन्नत्र सूर्यतां तद्वदधिकारंतथैनदवम्।काबेरमथ याम्यं च चक्राते वरुणस्य च।। 3।।मा.पु.अ.-05

तब देवता अपने गुरु बृहस्पति के पास उपाय पूछने गये।उनके सुझाव पर देवताओं ने भगवती आदिशक्ति की आराधना की जिस पर प्रसन्न होकर देवी आदिशक्ति पार्वती के रुप में प्रकट हो गयीं ।देवताओं का कष्ट जानकर उन्होंने अपने विग्रह कोष से अंबिका को प्रकट किया जिससे पार्वती कृष्णवर्ण की (काले रंग की) हो गयीं और कालिका के नाम से विख्यात हुईं।वे कालरात्रि के नाम से पुकारी जाने लगीं। तब अंबिका को (पार्वती के कोष पैदा होने के कारण कौशकी नाम मिला) के साथ देवों की शक्तियां – कालिका, ब्राह्मणी,वैष्णवी,शिवा,कौमारी इंद्राणी , वाराही, नारसिंही, वारुणी,कौबेरी व शिवदूती भी युद्ध के लिए चल पड़ीं।जहां देवी ने इन सभी शक्तियों के साथ धूम्रलोचन, चण्ड, मुण्ड, रक्तबीज, निशुम्भ व शुम्भ का वध कर सृष्टि का ताप मिटाया।इस युद्ध में माता ने जिन-जिन रूपों को धारण किया उन्हीं रूपों की पूजा की जाती है।
भवकाले नृणां सैव लक्ष्मीवृद्धिप्रदा गृहे।सैवा भावे तथा लक्ष्मीर्विनाशायोपजायते।।40।।
स्तुता संपूजिता पुष्पैर्धूपगन्धादिभिस्तथा। ददाति वित्तं पुत्रांश्चमतिं मतिं धर्मे गतिं शुभाम्।।41।। मा.पु. दशम् अध्याय।जिसका अर्थ है कि- मनुष्य के अभ्युदय काल में वे (देवी)ही लक्ष्मीरूप में रह कर उनन्ति प्रदान करती हैं। वे ही अभाव के समर दरिद्रता बनकर विनाश का कारण बनती हैं। पुष्प,धूप और गन्ध आदि से पूजन करक उनकी स्तुति करने पर वे धन,पुत्र,धार्मिक बुद्धि तथा उत्तम गति प्रदान करती हैं। जय आदि शक्ति।