पुरुषोत्तम मास में किया दान व भक्ति का फल अक्षुण्ण रहते हैं।-नागेन्द्र प्रसाद रतूडी़

पुरुषोत्तम मास में किया दान व भक्ति का फल अक्षुण्ण रहते हैं।

-नागेन्द्र प्रसाद रतूडी़ (स्वतंत्र पत्रकार)

इस वर्ष 2023 में श्रावण मास की शुक्ल प्रतिपदा की 02 प्रविष्टा(गते) याने 18 जुलाई से पुरुषोत्तम मास प्रारम्भ हो रहा है जो कि श्रावण मास की 31प्रविष्टा अर्थात 16 अगस्त तक रहेगा। इस परुषोत्तम मास को ही आम बोलचाल की भाषा में अधिमास या मलमास कहते हैं। यह मलमास क्यों होता है इसका पौराणिक प्रसंग दैत्य राज हिरण्यकश्यपु के वरदान से जोड़ा जाता है। जब उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांग लिया था कि मुझे साल के किसी माह में न दिन में, न रात में, न आदमी, न पशु,न अन्दर न बाहर मारा जा सकेगा। इस वरदान के कारण भगवान विष्णु को नृसिंह अवतार लेना पड़ा जो आधे सिंह आधे नर थे। उन्होंने साल में एक मास अतिरिक्त बढा दिया। जो कि साल के बारह मासों से अतिरिक्त था। इसी पुरुषोत्तम मास में संध्याकाल के समय देहरी पर बैठ कर भगवान नृसिंह ने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु की छाती फाड़ कर उसका प्राणान्त कर संसार को उसकी क्रूरता से छुटकार दिलाया।यहीं से पुरुषोत्तम मास का चलन हुआ।
भौगोलिक रुप से यह चन्द्रमास के दिनों को सौर मास के दिनों के बराबर करने के लिए हर तीन साल में अपनाए जाने वाली प्रक्रिया हैं। इसे ही भारतीय ज्योतिष में पुरुषोत्तम मास या अधिमास का नाम दिया है ।
सनातन धर्म में वर्ष दो प्रकार के होते हैं पहला है सौर वर्ष तथा दूसरा है चन्द्र वर्ष। सौर वर्ष वह समय है जो पृथ्वी का भ्रमण काल या सूर्य के बारह राशियों में विचरण का समय जो 365 दिन 06 घंटे,12 मिनट(365 दिन, 15 घटी ,31 पल) है। दूसरी ओर चन्द्रमा वर्ष की 12 राशियों में भ्रमण का समय 354 दिन 08 घंटे 09 मिनट (354 दिन,22 घटी,01पल) का होता है इनके बीच का अन्तर 10 दिन, 21घंटे01मिनट (10 दिन,53 घटी,30 पल) का होता है जो हर तीन साल में 32 दिन के लगभग होता है को चन्द्रमास में जोड़ा जाता है।
इसी को अधिमास कहते हैं।अधिमास साल के उस माह आता है जब दो अमावस्याओं के बीच में कोई सौर संक्रांति न हो। याने जब सूर्य दो अमावस्याओं के मध्य राशि न बदले। यह संयोग हर तीन वर्ष में आता है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब एक चन्द्रमास में दो सौर संक्रांति (सूर्य क्रमश:दो राशियों का संक्रमण करे )आएं तो उसे क्षयमास कहते हैं। क्षयमास केवल कार्तिक,मार्गशीर्ष व पौष मास में ही आता है।
भारतीय सनातन धर्म के अनुसार इस अधिमास के स्वामि भगवान पुरुषोत्तम (विष्णु/श्रीकृष्ण) हैं। इसलिए इस माह में विष्णु भगवान की कीगयी भक्ति कई गुना अधिक फलदायी है। इस माह की पंचमी तिथि का महत्व आध्यात्म में बहुत अधिक है।इस तिथि को माता तुलसी जी को जल (अगर उस दिन रविवार आदि निषिद्ध दिन हो तो गन्ने का रस) चढाना मोक्ष देता है। इस मास में पीले वस्त्र,पीले अनाज व सोने का दान करना व जूते चप्पल व छाते का दान भी अक्षय पुण्यकारी है। इस मास में विवाह,चूड़ाकर्म आदि वैदिक कर्म निषिद्ध बताए गये हैं। यह मास भक्ति का मास है इसलिए इस मास में मांसाहार,शराब का सेवन आदि तामसिक कार्य वर्जित हैं।
कुछ लोग इस पुरुषोत्तम मास को अज्ञानतावश खरमास भी कहते हैं जब कि शास्त्रों के अनुसार खरमास सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के काल से मकर राशि में प्रवेश काल के मध्य समय को कहते हैं। याने पौष मास को कहा जाता है जिसमें सभी धार्मिक कार्य त्याज्य होते हैं।