हल्द्वानी:-मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर हल्द्वानी में  विशाल महारैली का आयोजन किया गया।  WWW.JANSWAR.COM

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मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर हल्द्वानी में  विशाल महारैली का आयोजन किया गया। 

हल्द्वानी 28 जनवरी2024  :-  मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर हल्द्वानी में विशाल महारैली का आयोजन किया गया। रविवार को हुई इस महारैली में हल्द्वानी समेत प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से हजारों लोग शामिल हुए।

‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के आह्वान पर हुई इस महारैली में प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों ने शिरकत की। कार्यक्रम के तहत हल्द्वानी के बुद्ध पार्क से पर्वतीय उत्थान मंच, गोल्ज्यू देवता तक महारैली निकाली गई। महारैली से पहले बुद्ध पार्क में सभा का आयोजन किया गया जिसमें प्रदेशभर से आए आंदोलनकारियों ने अपने विचार रखे।
‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि, 40 से ज्यादा आंदोलनकारियों की शहादत से हासिल हुआ हमारा उत्तराखंड राज्य आज 23 साल बाद भी अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि 23 साल बाद भी यहां के मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाया है और अब तो हालात इतने खतरनाक हो चुके हैं कि मूल निवासी अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं।

डिमरी ने कहा कि मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू करने के साथ ही प्रदेश में मजबूत भू-कानून लागू किया जाना बेहद जरूरी है।
डिमरी ने कहा कि मूल निवास का मुद्दा उत्तराखंड की पहचान के साथ ही यहां के लोगों के भविष्य से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि मूल निवास की लड़ाई जीते बिना उत्तराखंड का भविष्य असुरक्षित है।

‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के सह संयोजक लूशुन टोडरिया ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें, इसके लिए मूल निवास 1950 और मजबूत भू-कानून लाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।

पहाड़ी आर्मी के संयोजक हरीश रावत ने कहा कि जिस तरह प्रदेश के मूल निवासियों के हक हकूकों को खत्म किया जा रहा है, उससे एक दिन प्रदेश के मूल निवासियों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो जाएगा।

वंदे मातरम ग्रुप के संस्थापक और संघर्ष समिति के कोर मेंबर शैलेंद्र सिंह दानू, पहाड़ी आर्मी के संस्थापक हरीश रावत, कांग्रेस नेता सौरभ भट्ट ने कहा कि अगर सरकार जनभावना के अनुरूप मूल निवास और मजबूत भू-कानून लागू नहीं करेगी तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।

वरिष्ठ पत्रकार और राज्य आंदोलनकारी चारु तिवारी,उत्तराखण्ड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पँवार, समिति के कोर मेम्बर प्रांजल नौडियाल ने कहा कि इस आंदोलन को प्रदेशभर से लोगों का मजबूत समर्थन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि 24 दिसंबर को देहरादून में हुई महारैली के बाद अब हल्द्वानी में जिस तरह से जनसैलाब उमड़ा है, उससे स्पष्ट है कि राज्य के लोग अपने अधिकारों, सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व को बचाने के लिए निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार हैं।

सभा को बेरोजगार संघ के कुमाऊं संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, आरंभ ग्रुप के राहुल पंत, विशाल भोजक, पीयूष जोशी, दीपक जोशी, यूकेडी नेता भुवन जोशी, सुशील उनियाल, उत्तम बिष्ट, मोहन चंद्र कांडपाल, प्रमोद काला, अनिल डोभाल, वन यूके के अजय बिष्ट आदि ने भी संबोधित किया

कार्यक्रम का संचालन मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के कोर मेंबर शैलेन्द्र सिंह दानू और प्रांजल नौडियाल ने संयुक्त रूप से किया।

इस मौके पर….

महारैली को प्रदेश के तमाम संगठनों ने समर्थन दिया जिनमें उत्तराखण्ड क्रांति दल,वन्दे मातरम ग्रुप,पहाड़ी स्वाभिमान, सेना,जैक्लिप्स,वन यूके,पहाड़ी आर्मी,स्वराज हिन्द फौज,,
उत्तराखण्ड युवा एकता मंच,आरम्भ एक पहल,उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी मंच,उत्तराखण्ड स्टूडेंट्स फेडरेशन,……. आदि प्रमुख थे।

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आगे की रणनीति
हल्द्वानी मे हुई रैली के बाद मूल निवास आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए जल्द ही अगले कार्यक्रमों की घोषणा की जाएगी। समन्वय समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने बताया कि प्रदेश में मूल निवास की सीमा 1950 और मजबूत भू-कानून लागू करने को लेकर चल रहे आंदोलन को प्रदेशभर में ले जाया जाएगा। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द ठोस कार्यक्रम बनाकर पूरे प्रदेश में जन जागरूकता अभियान शुरू किया जाएगा। डिमरी ने बताया कि चरणबद्ध तरीके से समिति विभिन्न कार्यक्रम करेगी, जिसके तहत गांव-गांव जाने से लेकर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में जाकर युवाओं से संवाद किया जाएगा। इस बाबत जल्द ही कार्यक्रम का ऐलान किया जाएगा।
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ये हैं प्रमुख मांगें

मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए।

प्रदेश में ठोस भू-कानून लागू हो।

शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। जमीन उसी को दी जाय, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो।

– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।

– गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।

– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।

राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।

प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।

– ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।