क्यों नहीं कसी जाती मिलावटी व नकली खाद्य व पेय पदार्थों के कारोबारियों पर नकेल-

क्यों नहीं कसी जाती मिलावटी व नकली खाद्य व पेय पदार्थों के कारोबारियों पर नकेल।
-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी(स्वतंत्र पत्रकार)
आजकल किसी भी खाद्यपदार्थ या पेय पदार्थों को खरीदते समय‌ यह डर बना रहता है कि कहीं इसमें मिलावट तो नहीं है।सब्जी व फल खरीदते समय यह डर बना रहता है कि कहीं इसमें शरीर के दुष्प्रभाव वाले फल तो नहीं हैं। जो तन को अस्वस्थ कर दें।
 आम जनता के पास यह जानने का कोई साधन नहीं है कि वह जिस खाद्य या पेय को खरीद रहा है वह कितना सुरक्षित है। मसालों में लीद,मिर्च में ईंट चूरा दूध ,दही में यूरिया की मिलावट,सिंथेटिक दूध दही,चर्बी युक्त घी,नकली मावा से बनी मिठाइयां,मिठाई के साथ डब्बे का तौला जाना,प्लास्टिक के चावल,तेल में पाम आयल,दालों में मिलावट जूस के‌ नाम पर केमिकल व ऐसेंस मिले पेय,इंजेक्शन से केमीकल डाल कर बढाई गयी सब्जियां,नकली दवाइयां तराजू पर सेटिंग कर कम तोलना,असली के पैसे लेकर नकली मिलावटी सोने चांदी के जेवर, आदि से जनता त्रस्त है। उसे यह नहीं मालूम कि जो वस्तु वह ले रहा है वह असली है या नहीं। ऑनलाईन ठगी आदि से जनता त्रस्त हो रही है।
इन सभी ठगी व मिलावट को रोकने के कानून भी हैं उसके बावजूद भी जो लोग ऐसा कार्य करते हैं आखिर उन लोगों की हिम्मत कैसे होती है ऐसा करने की।
 अब प्रश्न उठता है कि क्यों दीपावली के समय ही यह समाचार आते हैं कि इतना कुन्तल नकली मावा पकड़ा गया।बाकी समय मे वह मावा क्यों नहीं पकड़ा जाता।आखिर खाद्य वwww
पेय पदार्थों में मिलावट क्यों नहीं रोकी जाती।क्या इसको रोकने के लिए जो तंत्र बनाया गया है  वह अपना कार्य ठीक से नहीं कर रहा है या तंत्र इतना लचर है कि उसकी किसी को परवाह ही नहीं है। या उसे काम नहीं करने दिया जाता।
 मिलावटी व कैमिकल युक्त खाद्य व पेय पदार्थो को रोकने का तंत्र शहरों तक ही सीमित रहता है।ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा मिलावटी व नकली सामान  बिना रोक टोक बिकता है क्योंकि सरकारों ने ग्रामीण क्षेत्र में चाहे वह तहसील ही क्यों‌न हो न तो मार्केट निरीक्षक रखे है न बाट माप तौल निरीक्षक,न आरटीओ।इनके यातायात देखने की जिम्मेदारी शहर के आरटीओ के पास है। जब समाचारों में वाहनों की ओवरलोडिंग की खबर छपती है या कोई बड़ी दुर्घटना घटती है तो वे छापा मारते हैं बहुत सारे वाहन ओवरलोडिंग में पकड़े जाते हैं उसके बाद जस का तस।अगर गाहे बगाहे वे छापा मारने पहुंच भी गये तो वाहनों के चालक सबको फोन पर खबरदार कर देते हैं। पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में बिकने वाले सामान की उसमें मिलावट तो नहीं,वह कालातीत तो नहीं हो गयी है असली के नाम पर नकली सामान तो नहीं बिक रहा है आदि पर कभी कोई जांच हुई हो सुना नहीं है।
           प्रदेश में बाजार तंत्र इतना हावी हो गया है कि इन नकली खाद्य,पेय व अन्य सामान बेचने वालों के सामने सरकारी तंत्र विवश नजर आता है। वे बिना डर के अपना काम करते हैं।उन्हें न सरकार का डर है न शासन का न सरकारी तंत्र का।आखिर यह किसकी जिम्मेदारी है कि जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वालों पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी किस पर है?सरकार कहती है उसने कानून बना रखा है। शासन कहता है कि उसने कर्मचारी-अधिकारी नियुक्त कर रखे हैं।कर्मचारी अधिकारी कहते हैं कि उनके पास इतना बड़ा क्षेत्र है कि वे वहां तक पहुंच नहीं पाते।
 राष्ट्रीय स्तर पर भी समाचार सुनने को मिलते हैं”चलती कार पर लगी आग लगी”।क्या सरकार को ऐसे वाहन के निर्माण पर अंकुश नहीं लगना चाहिए जो चलते चलते आग के शोलों में बदल जाती है।
सरकार,शासन ,प्रशासन ऐसे समाचारों का संज्ञान स्वयं क्यों नहीं लेते? यह सर्वविदित है कि हलवाई एक मिठाई के  साथ डिब्बे को तौल कर डिब्बे के वजन के बराबर मिठाई कम देता है जब कि पैसे पूरे लेता है पर आज तक उस पर कोई अंकुश नहीं लग सका। क्यों?इसका कोई जबाब नहीं है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी समाचार सुनने को मिलते हैं “चलती कार पर आग लगी”। क्या यह कार कंपनी का निर्माण दोष नहीं है।क्या सरकार को ऐसे वाहन के निर्माण पर अंकुश नहीं लगना चाहिए जो चलते चलते आग के शोलों में बदल जाती है।
 कब तक सरकार व शासन प्रशासन की उपेक्षा या अनदेखी से जनता के स्वास्थ्य व जान माल के साथ खिलवाड़ करने वाले यों ही खुले आम अपने कारोबार को अंजाम देते रहेंगे।