केवल कालगणना ही नहीं अपितु जीवन जीने का दिशा निर्देश है नव संवत्सर। WWW.JANSWAR.COM

केवल कालगणना ही नहीं अपितु जीवन जीने का दिशा निर्देश है नव संवत्सर।

सदा न फूले केतकी,सदा न सावन होय,सदा न विपदा रह सके सदा न सुख भी होय।
सदा न मौज बसन्त की, सदा न ग्रीष्म की आग। सदा न जीवन थिर रहे, सदा न संपति साथ।

नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी  (स्वतंत्र पत्रकार):- उपरोक्त पंक्तियों के अनुसार सृष्टि में हर वस्तु परिवर्तन शील है। और समय तो निरंतर परिवर्तनशील है जो प्रतिपल, पल, घटि,दिवस,सप्ताह,माह में बदलता 365 दिन पूर्ण करते ही वर्ष (संवत्) बन कर पुराना वर्ष (संवत्) हो जाता है और नया वर्ष आरम्भ हो जाता है।

विक्रमी संवत् के अनुसार चैत्र कृष्णपक्ष की अमावस्या को हमारा वर्तमान 37वें क्रम का संवत्सर 2080 जिसका नाम शुभकृत है अपना क्रम पूरा कर रहा है। प्रतिपदा से हमारा नव विक्रमी संवत्सर प्रारम्भ हो रहा है। विक्रमी संवत् 2081 में आने वाला 38 वें क्रम का क्रोधी नाम का संवत्सर हैं। मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्र को भगवान ब्रह्मा की सृजनशक्ति का प्रादुर्भाव हुआ।जिससे सृष्टि निर्माण कार्य हुआ। इसी नवरात्र में नवमी के दिन भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में जन्म लेकर राक्षसों व रावण के आतंक से संसार को मुक्ति दिलाई।इसी दिन शकारि विक्रमादित्य ने शकों को हरा कर राज्यारोहण किया और अपने नाम से संवत्सर चलाया।जो विक्रमी संवत् के नाम से जाना जाता है।और जो चैत्र शुक्लपक्ष पड़वा (प्रतिपदा) से 2081वें विक्रमी संवत् में प्रवेश करेगा।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में जहां दिवसों का नाम ग्रहों के नाम पर रखे गये हैं वहीं माहों के नाम नक्षत्रों के नाम पर रखे गये हैं जैसे चित्रा से चैत विशाखा से बैशाख। इसी प्रकार जेष्ठा से जेठ, पूर्वाषाढ से आषाढ,श्रवण से सावन पूर्व भाद्रपदा से भादों,अश्वनि से असूज,कृतिका से कार्तिक पुष्य से पौष,उत्तरा फाल्गुनी से फाल्गुन इसका अर्थ है कि जिस माह पूर्णिमा के दिन जो नक्षत्र होगा वह माह उसी नक्षत्र के नाम से पुकारा जाएगा।जैसे जिस पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र होगा उस माह का नाम चैत्र होगा।सौर माह में सूर्य जिस दिन दूसरी राशि को संक्रमित करेगा उस दिन से नया मास प्रारम्भ होगा। जिस दिन सूर्य मीन राशि को त्याग कर मेष राशि को संक्रमित करेगा उस दिन को मेष संक्रांति होती है। संक्रांति से ही सौर मास प्रारंभ होता है। इसी प्रकार संवत्सरों (वर्षों)की संख्या साठ मानी गयी है जिसे षष्ठीनाम संवत्सर कहते हैं।इन संवत्सरों के नाम इस प्रकार से हैं

(1) प्रभव,(2)विभव,(3)शुक्ल,(4)प्रमोद,(5)प्रजापति,(6)अंगिरा,(7)श्रीमुख,(8)भाव,(9)युवा,(10)धाता,(11)ईश्वर, (12)बहुधान्य,(13)प्रमाथी,(14)विक्रम,(15)विषु,(16)चित्रभानु,(17)स्वभानु,(18)तारण,(19)पार्थिव,(20)व्यय,(21)सर्वजित्,(22)सर्वधारी,(23)विरोधी, (24)विकृति,(25)खर,(26)नंदन,(27)विजय,(28)जय,(29)मन्मथ,(30)दुर्मुख,(31)हेलंब,(32)विलंम्ब,(33)विकारी,(34-शर्वरी,(35)प्लव,(36)शुभकृत,(37)शोभन,(38)क्रोधी,(39)विश्वावसु (40)पराभव (41)प्लवंग (42)कीलक(43)सौम्य(44)साधारण,(45)विरोधीकृत,(46)परिधावी,(47)प्रमादी,(48)आनन्द,(49)राक्षस,(50)नल,(51)पिंगल,(52)काल,(53)सिद्धार्थ,(54)रौद्री,(55)दुर्मति,(56)दुंदभी,(57)रुधिरोद्गारी,(58)रक्ताक्ष,(59)क्रोधन,(60)अक्षय,

प्रत्येक संवत्सर क्रमश: हर साठ साल बाद वापस लौटता है।बीत रहा संवत्सर भी साठ साल बाद वापस आयेगा।
इस वर्ष के राजा मंगल हैं और मंत्री शनि हैं।दोनों ग्रह क्रूर ग्रह मानें जाते जाते हैं।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का महत्व भारतीय जनमानस में बहुत अधिक है। जहां इसदिन ब्रह्मा जी न सृष्टि की रचना की वहीं इस दिन विक्रम संवतसर के प्रवर्तक सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था।इसी दिन गुरु अंगददेव जी का जन्म हुआ।वरुण देवता के अवतार भगवान झूलेलाल जी का जन्मदिन भी इसीदिन है स्वामी दयानन्द जी ने इसी दिन आर्य समाज की रचना की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा.हेडगेवार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। साथ ही मां दुर्गा की पूजा भी इसी दिन से प्रारम्भ होती है।

नव संवत्सर देश के लगभग प्रत्येक भाग में मनाया जाता है। सबके मनाने का ढंग भी अलग अलग है।उत्तरी राज्य जम्मू कश्मीर में नववर्ष नवरेह के रूप में मनाया जाता है यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिन को मनाया जाता है मणिपुरी लोग नववर्ष को सजीबू नोंग्मा पनबा या मीती चेरेबा या सजीबू चेरबा कहा जाता है।असम में इसे बिहाग बहू के नाम से मनाया जाता है सिंधी समाज इसे चेटीचन्द के रूप में मनाते हैं।वे इस दिन को भगवान झूलेलाला जिन्हें जल का देवता माना जाता है के जन्मदिवस के रूप में मनाते है। गोवा,महाराष्ट्रक्षेत्र में इस दिन को गुड़ी पड़वा,वर्ष प्रतिपदाया उगादि के रूप में मनाया जाता है इस दिन ब्रह्माजी व विष्णु जी की पूजा की जाती है।

नवसंवत्सर का महत्व आयुर्वेद में भी है। आयुर्वेद के अनुसार-
शतायुर्वज्रदेहाय सर्वसंपत्कराय च,सर्वारिष्टविनाशाय निम्बकं दल भक्षणम् ।

अर्थात् सौ वर्ष की आयु चाहने,सभी प्रकार की संपत्ति चाहने वाला व सभी अरिष्टों का नाश चाहने वाला नीम के पत्ते अवश्य खायें।इस दिन नीम की कोंपलें व गुड़ खाने वाला सालभर तक रोग मुक्त रहता है।
इसी प्रकार जनकवि घाघ कहते है कि स्वस्थ रहने के लिए हमें निम्न माहों में निम्न वस्तुएं नहीं खानी चाहिए
चैते गुड़ बैशाखे तेल जेठे पंथ अषाढे बेल सावन साग भादौं दही,क्वार करैला कार्तिक महीअगहन जीरा,पूष धना माघे मिश्री फागुन चना।जो कोई इतने परिहरे। ता घर वैद पैर नाहिं धरे।
जो निम्न माहों में निम्न वस्तुओं का सेवन करता है वह सदा स्वस्थ रहता है।

चैते चना,बैशाखे बेल, जेठे शयन,आषाढे खेल, सावन हर्रे, भादौं तिल,
क्वार गुड़,कार्तिक मूली, अगहन तेल, पूष दूध,माघ घी,खिचड़ी खाय।फागुन उठ नित प्रात:नहाय।
जो कोई यह नियम अपनाय,ताहि घर क्यों वैद आय।

नव संवत्सर पर सबको शुभकामनाएं।