उत्तराखण्ड में भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों पर चलने लगी है लाठी-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी

उत्तराखण्ड में भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों पर चलने लगी है लाठी

-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
(राज्यआन्दोलनकारी व स्वतंत्र पत्रकार)

 

-फोटो- अन्तर्जाल से साभार

आखिर मुख्यमंत्री धामी सरकार की क्या मजबूरी है कि उसकी पुलिस ने उत्तराखण्ड में हो रहे भर्ती घोटाले की जाँच सीबीआई से कराने की मांग करने वाले जनता पर लाठी चार्ज करवा दिया है।सरकार ने आनन फानन में जो नकल विरोधी अध्यादेश बनाया है उसे मुख्यमंत्री की सहमति मिल गयी है परन्तु अभी उसपर राज्यपाल के हस्ताक्षर होने शेष हैं।देर सबेर यह अध्यादेश लागू हो ही जायेगा।परन्तु इससे आगे की प्रतियोगी परिक्षाओं पर नियंत्रण हो पाएगा परन्तु अब तक परीक्षाओं में हुए घोटाले की जाँच अगर सीबीआई जाँच पर इसका असर शायद नहीं पड़ेगा। सरकार द्वारा अब तक की सम्पन्न परिक्षाओं में हुए घोटाले की जाँच सीबीआई से करवाने की सहमति न देने से जनता में यही संदेश जा रहा है कि वह इसमें सम्मिलित तथाकथित बडे़ लोगों और घोटाले से सफल हुए किसी या किन्हीं अभ्यर्थियों को बचाने का प्रयास कर रही है।

लाठी चार्ज का आदेश देने वाले अधिकारी को शायद यह याद नहीं रहा कि राज्य बनने के बाद अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री श्री भगतसिंह कोश्यारी के समय शिक्षक व कर्मचारियों के प्रदर्शन पर पुलिस लाठीचार्ज ने बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया था।इसी प्रकार बाद में कांग्रेसी शासन में बीजेपी के प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठीचार्ज ने आज तक कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बाहर रखा है।अगर उसे याद है तो क्या उसने जानबूझ कर लाठीचार्ज करवाया।
लाठीचार्ज की मजिस्ट्रेटीय जांच के आदेश हो गये हैं परन्तु मजिस्ट्रेटीय जांच तो हर वाहन दुर्घटना के बाद होती है परन्तु उनकी जाँच का नतीजा क्या होता है आजतक जनता जान नहीं पायी है। इस लाठीचार्ज के बाद जाँच के लिए मजिस्ट्रेट की नियुक्ति हो जाएगी।मजिस्ट्रेट अपनी जाँच कर सरकार को रिपोर्ट देंगे।अन्तत:निर्णय सरकार को ही लेना होगा।

सरकार के इस अधिकारी को यह भी याद नहीं रहा कि अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होने हैं और जनता इतनी भी भुलक्कड़ नहीं कि इस घटना को भूल जाएगी। अगर जनता ने इसे याद रख कर मतदान किया तो इसके परिणाम गम्भीर भी निकल सकते हैं।इसलिए सरकार को जिद छोड़ कर सीबीआई की जांच की स्वीकृति दे देनी चाहिए। इससे जनता शायद इस बर्बरता को भूल जाये।
अब आते हैं घटना पर अगर पुलिस को सड़क खाली ही करवानी थी और यह भी मान लिया जाय कि प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी की पहल की जिसके विरोध में पुलिस ने लाठीचार्ज की, के बजाय अगर पुलिस संयम से काम लेती और लाठीचार्ज की जगह अगर पानी की बौछार या अश्रुगैस आदि का प्रयोग करती तो शायद इतने लोग चोटिल नहीं होते।
अगर प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी की पहल की तो उनके इस निन्दनीय कार्य की घोर निन्दा की जानी चाहिए। उन्होंने जिस पुलिस पर पत्थर बरसाये हैं वह भी तो उनकी ही भाई बन्द हैं। यह आयोजकों की असफलता है कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर नियंत्रण नहीं रखा।उनको प्रदर्शन करने की अनुमति थी न कि पुलिस पर पत्थर चलाने की।
उत्तराखण्ड की अस्थाई राजधानी में 09 फरवरी को घटित इस घटना ने 1994में राज्यआन्दोलन के समय पुलिस द्वारा आन्दोलनकारियों पर किये गये लाठीचार्ज व गोली कांडों की याद दिला दी।
एक राज्य आन्दोलनकारी होने के नाते मैंने सोचा भी न था कि उत्तराखण्ड में भी अपनी बात कहने के लिए जनता पर ऐसा बर्बर लाठीचार्ज होगा वह भी गाँधी जी की प्रतिमा के सम्मुख।