हास्य के युग का अंत: ‘अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर’ असरानी नहीं रहे।
मुंबई:- हिंदी सिनेमा के सबसे चहेते और दिग्गज हास्य अभिनेता **गोवर्धन असरानी** अब हमारे बीच नहीं रहे। अपनी बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग और यादगार किरदारों से लाखों चेहरों पर मुस्कान लाने वाले असरानी ने 84 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम साँस ली। उनके निधन की खबर से पूरी फिल्म इंडस्ट्री और उनके प्रशंसकों में शोक की लहर दौड़ गई है।
50 साल का बेमिसाल सफ़र:- असरानी ने पाँच दशकों से अधिक लंबे करियर में लगभग 350 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनका जन्म 1 जनवरी 1941 को जयपुर में हुआ था। पुणे के प्रतिष्ठित फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से अभिनय की शिक्षा लेने के बाद उन्होंने 60 के दशक के मध्य में फ़िल्मों में कदम रखा।
शुरुआती संघर्ष के बाद, ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्मों ने उन्हें पहचान दी। **’गुड्डी’**, **’बावर्ची’**, **’अभिमान’** और **’चुपके-चुपके’** जैसी फ़िल्मों में उनकी भूमिकाओं ने उन्हें हिंदी सिनेमा का एक अनिवार्य हिस्सा बना दिया। राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गजों के साथ उनकी कॉमिक केमिस्ट्री हमेशा सराही गई।
शोले’ का अमर किरदार:- गोवर्धन असरानी का नाम सुनते ही सबसे पहले जिस किरदार की याद आती है, वह है 1975 की कल्ट क्लासिक **’शोले’** का जेलर। तानाशाह हिटलर की पैरोडी पर आधारित इस भूमिका ने उन्हें घर-घर तक पहुँचा दिया। उनका मशहूर संवाद, **“हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं!”** आज भी भारतीय पॉप कल्चर का एक अटूट हिस्सा है।
उन्होंने ‘आज की ताज़ा ख़बर’ और ‘बालिका वधू’ जैसी फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी जीता। बाद में उन्होंने **’चला मुरारी हीरो बनने’** जैसी फ़िल्मों के साथ लेखन और निर्देशन में भी हाथ आजमाया। 2000 के दशक में, **’हेरा फेरी’, ‘मालामाल वीकली’, ‘धमाल’** और **’भूल भुलैया’** जैसी सफल कॉमेडी फ़िल्मों में भी उनकी उपस्थिति ने नई पीढ़ी के दर्शकों का दिल जीता।
परिवार और अंतिम इच्छा:- असरानी पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। रिपोर्ट्स के अनुसार, फेफड़ों से संबंधित समस्या के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
दिवंगत अभिनेता ने हमेशा एक सादगीपूर्ण जीवन जिया और उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार बिना किसी शोरगुल और सार्वजनिक हलचल के किया जाए। उनके परिवार ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए सोमवार शाम सांताक्रूज़ श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया।
हँसी के इस सम्राट का जाना भारतीय सिनेमा के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनका सहज, सरल और हँसाने वाला अंदाज़ सिनेमा के पर्दे पर हमेशा ज़िंदा रहेगा।
ॐ शांति।