बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इनसेफिलाइटिस सिंड्रोम (एइस) की वजह से मरने वाले बच्चों का आंकड़ा करीब 156 तक पहुंच गया है। दुखद यह है कि यह आंकड़ा बढ़ने की ओर बताया जा रहा है। क्योंकि अभी हालात काबू में नहीं बताए जा रहे। हालात चाहे जो भी हो लेकिन इस घटनाक्रम के केंद्र में लीची की जो भूमिका है उससे फलों की रानी कहे जाने वाले इस फल की अस्तित्व पर संकट बन आया है।
अब देखिए ना, चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ साथ बिहार सरकार के मंत्रियों तक कह रहे हैं कि बच्चों की मौत के पीछे उनका लीची खाना भी एक कारण हो सकता है.
लीची के बीज में मेथाईलीन प्रोपाइड ग्लाईसीन (एमसीपीजी) की सम्भावित मौजूदगी को पहले से ही कम ग्लूकोस स्तर वाले कुपोषित बच्चों को मौत के कगार पर ला खड़ा करने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है.
हालांकि लीची के लिए सुखद यह है कि इस मुद्दे पर चिकित्सा विशेषज्ञ बंटे हुए हैं और हर बार वह यह भी जोड़ते हैं कि इस मामले में अभी कुछ निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता. अभी तक हुए शोधों के अनुसार लीची को बच्चों की मौत के पीछे छिपे कई कारणों में से सिर्फ एक सम्भावित कारण माना गया है।
लेकिन इस पूरे विवाद का असर मुजफ्फरपुर की शान मानी जाने वाली लीची के व्यपारियों और इस रसीले फल के किसानों पर भी पड़ रहा है। लीची से होने वाली कमाई पर पूरी तरह आश्रित मुजफ्फरपुर क्षेत्र के किसानों को लगता है कि बिना निर्णायक सबूत के उनकी फसल की इस बदनामी से उनकी बिक्री पर बुरा असर पड़ेगा। शहर की आम जनता भी मानती है कि मासूमों की मौत का असली कारण न ढूंढ पाने वाली बिहार सरकार लीची पर ठीकरा फोड़ रही है।
स्थानीय लोग शाही लीची को अपने शहर की शान मानते हैं.
कुछ लोग कहते हैं कि हमारी लीची ही तो हमारी शान है. सारी जिंदगी यहीं लीची खाते हुए गुजार दी। लोग भले ही कहने को जो मर्जी कहें लेकिन सच तो यही की यहां के बच्चों सदियों से लीची खाते हुए ही बड़े हो रहे हैं. धूप की वजह से बच्चे बीमार पड़ सकते हैं क्योंकि मुज्जफरपुर में ऐसी 45 डिग्री वाली धूप कभी नहीं देखी. लीची को बिना वजह बदनाम किया जा रहा है जबकि मुजफ्फरपुर का मतलब ही लीची है और लीची का पर्याय मुजफ्फरपुर।
यहां के लीची विक्रेता मानते हैं कि लीची को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि इनसेफिलाइटिस की वजह से बच्चों के जान गंवाने और लीची की फसल का समय और मौसम लगभग एक है।
एक नजर बिहार की लीची कारोबार पर
प्राप्त आंकड़ों से ज्ञात होता है कि बिहार के बीचों-बीच से बहने वाली गंडक नदी के उत्तरी भाग में लीची का उत्पादन होता है। यहां के आसपास समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण, वैशाली, और मुजफ्फरपुर जिलों की कुल 32 हजार हेक्टेयर जमीन पर लीची का उत्पादन किया जाता है. मई के आख़िरी और जून के पहले हफ्ते में होने वाली लीची की फसल से सीधे तौर पर इस क्षेत्र के 50 हजार से भी ज्यादा किसान परिवारों की आजीविका जुड़ी है। गर्मियों के 15 दिनों में ही यहां ढाई लाख टन से ज्यादा की लीची का उत्पादन होता है.
बिहार से बाहर भारत के अन्य राज्यों में भेजी जाने वाले लीची 15 दिनों की सालाना फसल में ही गंडक नदी के क्षेत्र वाले बिहार के किसानों को अनुमानित 85 करोड़ रुपए तक का व्यवसाय दे जाती है. ऐसे में लीची की हो रही इस बदनामी से यहां के किसानों के पेट पर हमला हो रहा है. इससे आनी वाली फसल में हमें बहुत नुकसान होगा। लीची उगाने वाले एक स्थानीय कुछ इस तरह से भी कहते है कि लीची को बदनाम करने के पीछे प्रतिस्पद्र्धा रखने वाले आम के व्यापारियों की लॉबी का हाथ हो सकता है।