शहीद जसवंत सिंह रावत: एक ऐसा वीर जिसकी बहादुरी ने लिखी अमर गाथा। WWW.JANSWAR.COM

शहीद जसवंत सिंह रावत: एक ऐसा वीर जिसकी बहादुरी ने लिखी अमर गाथा।

(अरुणाभ रतूड़ी):- आज हम उस महान सपूत, उस असाधारण योद्धा की जयंती मना रहे हैं, जिसने भारतीय सेना के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में अंकित कर दिया—शहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत। उनकी कहानी केवल वीरता की कहानी नहीं, बल्कि अदम्य साहस, कर्तव्यनिष्ठा और देशप्रेम की एक ऐसी मिसाल है जो पीढ़ियों तक हमें प्रेरित करती रहेगी।

1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, अरुणाचल प्रदेश के दुर्गम क्षेत्र तवांग में, जब भारतीय सेना की 4 गढ़वाल राइफल्स की टुकड़ी को पीछे हटने का आदेश मिला, तब जसवंत सिंह ने अकेले ही चीनी सेना का मुकाबला करने का अविश्वसनीय निर्णय लिया। उन्होंने अपनी पोस्ट, जिसे अब ‘जसवंत गढ़’ के नाम से जाना जाता है, पर अडिग रहकर तीन दिनों तक अकेले दुश्मनों को रोके रखा। स्थानीय महिलाओं, सेला और नूरा की मदद से, उन्होंने विभिन्न चौकियों से फायरिंग कर चीनी सेना को यह भ्रम दिया कि वहां पूरी बटालियन मौजूद है।

इस अद्भुत रणनीति और अकेले किए गए प्रतिरोध ने भारतीय सेना को अतिरिक्त समय दिया। जब तक दुश्मन को उनकी सच्चाई का पता चला, तब तक जसवंत सिंह वीरगति को प्राप्त हो चुके थे, लेकिन उन्होंने भारतीय सेना का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था। उनके बलिदान ने सुनिश्चित किया कि तवांग पर चीनी सेना का कब्ज़ा आसान न हो।

जसवंत सिंह रावत को उनकी असाधारण वीरता और सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत **महावीर चक्र** से सम्मानित किया गया। आज भी, जसवंत गढ़ में उनकी चौकी पर एक मंदिर बनाया गया है, जहाँ सैनिक और यात्री उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह एकमात्र ऐसी सैन्य पोस्ट है जहाँ एक शहीद सैनिक की प्रतिमा की पूजा की जाती है और उन्हें जीवित व्यक्ति की तरह सेवाएँ दी जाती हैं।

जसवंत सिंह की जयंती पर, हम उन्हें न केवल एक सैनिक के रूप में याद करते हैं, बल्कि एक ऐसे प्रतीक के रूप में भी जो हमें सिखाता है कि कुछ भी असंभव नहीं है जब बात अपने देश की रक्षा की हो। उनका जीवन और बलिदान हमें यह संदेश देता है कि दृढ़ संकल्प और साहस से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है।

शहीद जसवंत सिंह रावत को शत्-शत् नमन!