13साल में हाई स्कूल,17 वर्ष में वकालत पास की थी राम जेठमलानी ने।
लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
स्वतंत्र पत्रकार
14 सितम्बर 1923 को संयुक्त भारत के सिंध प्रांत के शिकारपुर में जन्में देश के मंहगे वकीलों में से एक 95 वर्षीय राम भूलचन्द जेठमलानी की 8सितम्बर को हुयी मृत्यु से देश ने एक महान कानूनविद् खो दिया है।
धारा के विपरीत जाकर स्मगलरों,अपराधियों का मुकदमा लड़ने वाले राम जेठमलानी भारतीय संविधान के इस बात के द्योतक थे कि जब तक अपराध साबित नहीं हो जाता तब तक हर व्यक्ति बेगुनाह है। कुछ लोगों की यह बात कि स्मगलरों,अपराधियों का मुकदमा लड़ने से मनमानी फीस मिलती है,अगर सच भी हो तो भी हमारा संविधान इजाजत देता है कि प्रत्येक आरोपी अपना बचाव कर सकता है।उसे अपना पक्ष रखने का अधिकार है।इस बात को ध्यान में रखते हुए उनका यह कार्य जन भावनाओं के विपरीत होकर भी कानून सम्मत था।
वरिष्ठ कानूनविद् रामजेठमलानी बचपन में इतने कुशाग्र थे कि एक साल में दो-दो कक्षा पास कर इन्होंने 13 वर्ष की आयु में ही हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली थी। 17 साल में उन्होंने एल.एल.बी.की डिग्री प्राप्त कर ली।उनके लिए एक बार ऐसोसिएशन द्वारा एक विशेष प्रस्ताव लाया गया जिसके तहत उन्हें 18 साल की आयु में प्रेक्टिस प्रारंभ करने की अनुमति दी गयी। जब कि सामान्य रूप से प्रैक्टिस करने की आयु 21 वर्ष थी।
राम जेठमलानी ने दो शादियां की जिनमें पहली का नाम दुर्गा व दूसरी का नाम रत्ना था जिनसे दुर्गा से तीन रानी,शोभा,महेश व रत्ना से जनक चार संतानें हुई।दुर्गा पहली तथा रत्ना दूसरी पत्नी थी।
1947 में शरणार्थी बनकर भारत आये और मुबई की अदालत में साठ रुपये किराए पर एक मेज कुर्सी रखने की जगह पाने वाले
प्रसिद्ध कानूनविद् जेठमलानी ने अपना पहला प्रसिद्ध केस 1969 में यशवन्त विष्णु चन्द्रचूड़ (जो भारत के प्रधान न्यायधीश भी रहे) के साथ, केएम नानवती बनाम महाराष्ट्र सरकार केस था जिसमें नानवती जूरियों के बहुमत से निर्दोष छूट गये थे। उन्होंने के.एम. नानवती का मुकदमा पुन:प्रारंभ करा कर उसे सजा दिलवायी।इस मुकदमें के बाद जूरियों द्वारा फैसला देने का कानून समाप्त कर दिया गया।इसी मुकदमे से उन्हें खूब ख्याति मिली।और वे एक क्रीमनल लॉयर के रूप में विख्यात हो गये।
उन्हों ने हमेशा ऐसे लोगों के मुकदमे लडे़ जिन्हे जनता सजा के योग्य मानती थी जिनमें सें वे सीपीआई विधायक कृष्णा देसाई हत्याकांड में शिवसेना के वकील रहे,प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के हत्यारों की के वकील बने,
जेसिका मर्डर केस में मनुशर्मा के वकील रहे,माफिया डॉन हाजी मस्तान पर तस्करी मामले की पैरवी की,इसके अतिरिक्त सोहराबुद्दीन एनकाउण्टर केस में अमितशाह,अवैध खनन मामले में बी एस येदुरप्पा,हर्षद मेहता व केतन पारेख,2जी घोटाले में यूनिटेक लि.के प्रबन्धनिदेशक संजय चन्द्रा,रामअवतार जग्गी हत्याकांड में अमित जोगी का बचाव तथा बाबा रामदेव के रामलीला मैदान धरना केस,राजीव गांधी की हत्या के दोषी वी हरन,चारा घोटाले में लालू यादव,मनीलांड्रिंग मामले में वाई एस जगमोहन रेड्डी,नाबालिग लड़की ब्लात्कार केस में आशाराम, आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता ,निवेशकों के पैसे लौटाने के केस में सहारा सुप्रीमो सुब्रतो राय के पक्ष में,हवाला डायरी कांड में लालकृष्ण आडवाणी, तथा वार रूम लीक में नेवी अधिकारी रहे कुलभूषण के वकील के रूप में भूमिका निभाई।
वे देश के उन कुछ एक वकीलों में थे जिनकी एक दिन की फीस लाखों में होती थी।अरविंद केजरीवाल पर अरुण जेटली के मानहानि मुकदमें में उन्होंने अरविंद केजरीवाल को तीन करोड़ रुपये से अधिक का बिल देते हुए यह भी कहा कि अगर उनके पास फीस चुकाने को पैसे न हों तो वे मुफ्त में ही उनका केस लड़ेंगे।
78 साल की वकालत का अनुभव रखने वाले रामजेठमलानी को दस माह का निर्वासन भी झेलना पड़ा।
आपत्काल में श्रीमती इंदिरा गांधी की आलोचना करने के कारण केरल की एक अदालत ने उनके विरुद्ध गैरजमानती वारंट जारी कर दिए थे।गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्हें देश छोड़कर 10 महीने तक कनाडा में रहना पड़ा। लगभग 300 वकीलों ने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट निकाले जाने पर विरोध प्रकट किया तब बाम्बे हाईकोर्ट ने उनके वारंट रद्द कर दिए।
कनाडा में रहते हुए उन्होंने 1977 में लोकसभा का चुनाव बाम्बे उत्तर पश्चिम से जीता।1980 में भी वे इस सीट से सांसद बने।1984 में सिने अभिनेता सुनीलदत्त (कांग्रेस) से वे चुनाव हार गये।1988 में वे राज्यसभा सदस्य चुने गये ।
सन्1996 व 1999 वे अटलबिहारी बाजपेयी सरकार में कानून मंत्री बने पर सालीसीटर जनरल से मतभेद के कारण इन्हें त्यागपत्र देना पड़ा।अपनी एक टिप्पणी के कारण इन्हे बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया। 2004 में वे अटलबिहारी बॉजपेयी के विरुद्ध लखनऊ से चुनाव लड़ेपरन्तु हार गये। 7 मई 2010 को वे सुप्रीम कोर्ट के बारएसोसिएशन के अध्यक्ष बने तो भाजपा ने इन्हें पार्टी में वापस ले लिया और राजस्थान से राज्यसभा सदस्य बनाया।
काफी दिनों से बीमार इस न्यायविद् की कोई दलील सफल होती न देख कर अन्तत:इन्होंने मौत के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया