संपादकीय
निदेशक महिला एवं बाल सशक्तिकरण को पत्र पर संज्ञान ले कार्यवाही करने व पंद्रह दिन में मांगी रिपोर्ट।
पत्रकार ने आयोग का आभार प्रकट किया।
जनपद पौड़ी में कन्याधन न दिये जाने का संज्ञान बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने लिया।
जनपद पौड़ी गढवाल के यमकेश्वर ब्लॉक स्थित सीला ग्राम में मोनिका देवी व गौतम रतूड़ी की पुत्री सारांशी का जन्म 02 दिसम्बर 2015 को जन्म हुआ। नियमानुसार उन्होंने ब्लॉक के कांडी स्थित इकाई के माध्यम से नन्दा देवी कन्या धन के लिए आवेदन किया।ब्लाक कार्यालय ने उनका आवेदन अपनी पंजिका के पृष्ठ 30 क्रम 75 पर अंकित कर स्वीकृति के लिए जनपद मुख्यालय पौड़ी भेज दिया। परन्तु पौड़ी से न तो उस आवेदन पर कोई आपत्ति लगी और न उसका भुगतान ही किया गया।
कन्या धन भुगतान न होने पर जानकारी लेने पर पहले तो बजट नहीं है कहा जाता रहा। बाद में बताया गया कि उक्त योजना का नाम नन्दा गौरा कन्याधन होने से उन्हें भुगतान नहीं होगा।इस बात की जानकारी इसी गांव के निवासी राज्यस्तरीय मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार श्री नागेन्द्र प्रसाद रतूडी जो चिह्नित राज्यआन्दोलनकारी व प्रेसक्लब मुनिकीरेती के अध्यक्ष भी हैं,को माह जून में लगी तो उन्होंने जिला समाज कल्याण अधिकारी के पौड़ी स्थित कार्यालय में फोन किया।वहां जिस सज्जन ने फोन उठाया तो बताया गया कि अधिकारी जी बैठक में हैं। बात करने वाले सज्जन ने अपनी पहचान छिपाते हुए पूरी जानकारी ली और कहा कि इस संबंध में बाल विकास विभाग से मिल सकती है। बाल विकास विभाग में किन्हीं जोशी जी ने बताया कि कन्याधन योजना का नाम बदलने से इसका भुगतान नहीं किया जा सकता। योजना का नाम बदलने से पूरे जनपद में ऐसे लगभग पॉच हजार लोग कन्याधन पाने से वंचित हैं। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अगर शासन से भुगतान का आदेश हो जाय तो यह भुगतान हो सकते हैं।
श्री रतूड़ी ने इस संबंध का एक प्रार्थनापत्र सचिव बाल विकास के ई मेल secy-chdev-ua पर 29 जून 2019 को किया गया परन्तु उसका प्रत्युत्तर न मिलने पर उन्होंने उत्तराखण्ड बाल अधिकार संरक्षण आयोग में ईमेल से निवेदन किया।जिसपर आयोग के मान.अध्यक्ष के निजी सचिव ने अपने पत्र संख्या-136 /scpcr.uk दिनांक O3 सितंबर 2019 में निदेशक महिला एवं बाल सशक्तिकरण विभाग उत्तराखण्ड, देहरादून को श्री रतूड़ी के पत्र का संज्ञान ले कर उस पर आवश्यक कार्यवाही कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
पत्रकार रतूड़ी ने बताया कि जहां देश के प्रधानमंत्री पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पेपरलेस कार्य करने का आवाह्न करते हैं वहीं शासन स्तर पर उत्तराखण्ड के कुछ अधिकारी तो ईमेल का संज्ञान ही नहीं लेते। वे या तो ईमेल को महत्व नहीं देते या उनके अधीनस्थ ईमेल को उनके सामने नहीं रखते हैं जो भी हो पर ईमेल पर शिकायत या पूछताछ पर बहुत कम कार्यवाही होते देखा गया।बहुत से कार्यालयों से तो पावती भी नहीं मिलती।
उन्होंने आयोग के अध्यक्ष द्वारा ईमेल का संज्ञान लेने पर उनका आभार व्यक्त किया है।