17 दिसम्बर पेंशनर दिवस पर विशेष
पेंशनर्स के स्वाभिमान का प्रतीक : पेंशनर दिवस
लेख-जबरसिंह पंवार
पेंशन का इतिहास लगभग 150 वर्ष से भी अधिक पुराना है । यूँ तो राजतंत्र में सेवा के लायक न रहने पर अपने चहेतों ओर वफादारों सेवकों को इनाम स्वरूप एक राशि गुजारे के रूप में दी जाती थी ।
भारत मे पेंशन प्रणाली 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश की गई जो ब्रिटिश में प्रचलित पेंशन प्रणाली का एक प्रतिबिंब के रूप में थी ।
जिसे इंडियन पेंशन एक्ट 1871 के द्वारा अंतिम रूप दिया गया ।
कभी कभी मुद्रा स्फीति के प्रभाव को बेअसर करने के लिए पेंशन में वृध्दि एक मुआवजा के रूप में दी जाती थी ।
लेकिन 1 जनवरी 1922 से प्रभावी होने वाले इस नियम को मौलिक नियमो में शामिल नही किया गया जिससे यह अपना असली रूप नही ले सका न ही इसका सही लाभ मिल सका ।
रक्षा मंत्रालय में वितीय सलाहकार डी एस नकारा सितम्बर 1972 में रिटायर हुवे उन्हें भी अन्य पेंशनरधारियों की तरह पेंशन प्राप्त करने की समस्या का सामना करना पड़ा और इसलिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की ।
एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 17 दिसम्बर 1982 को माननीय न्याय मूर्ति यशवन्त चंद्रचूड़ ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया ओर उन्होंने अपने फैसले में कहा …. ” पेंशन न तो उपहार है ओर ना ही इनाम । पेंशन एक सेवानिवृत्त कर्मचारी का अधिकार है जिसने देश व सरकार की लंबे समय तक सेवा की थी और सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि उसके कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद एक शांतिपूर्ण ओर सम्मानजनक जीवन जिये ।”
उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर पेंशनर्स के कई संगठन सक्रिय हुए ओर सरकार ने वेतन आयोग गठित किया ।
देश का पेंशनर समाज इस फैसले के बाद इसे अपने स्वाभिमान दिवस के रूप में पेंशनर दिवस के नाम से मनाने लगा।
राजस्थान में भी राजस्थान पेंशनर समाज प्रदेश स्तर,किजिला स्तर व तहसील स्तर पर इस दिन आयोजन करता है और वरिष्ठ पेंशनरो का सम्मान करता है ।
उतर प्रदेश में इस बार सरकार हर जिला स्तर व तहसील स्तर पर पेंशनर्स के सहयोग से आयोजन करने जा रही है जिसमें जिला कलक्टर या उसका प्रतिनिधि ओर खण्ड स्तर पर उप खण्ड अधिकारी उपस्थित रहेंगे । और सभी विभागों के अधिकारियों को भी कार्यक्रमो में उपस्थित रहने के लिए निर्देशित किया गया है ।
राजस्थान राज्य में कोरोना महामारी के कारण वरिष्ठ नागरिकों के घर से बाहर न निकलने के निर्देशों को देखते हुवे और आयोजनों पर प्रतिबंध को मध्ये नजर रखते हुवे पेंशनर दिवस सीमित रूप में मनाया जा रहा है ।
पेंशनरो को इस दिन विशेष रूप से आत्म मंथन करना चाहिए । सामाजिक क्षेत्र में अपना योगदान, नई पीढ़ी को मार्गदर्शन, अपनी एकता , संगठन को मजबूत करने पर विचार, वरिष्ठ साथियों का सम्मान पेंशनर्स को ओर अधिक संगठित करने व उनकी समस्याओं पर मंथन कर निराकरण के प्रयासों पर चर्चा करनी चाहिए तभी पेंशनर दिवस का महत्व बढ़ेगा ।
राज्य के सभी पेंशनर्स को आज 17 दिसम्बर, पेंशनर दिवस पर बधाई व हार्दिक शुभकामनाएं।
लेखक सेवानिवृत राजकीय पेंशनर्स एसोसिएशन नरेन्द्रनगर में कोषाध्यक्ष हैं।