14 साल बाद ‘शिक्षक बेटा’ घर लौटा: दिवाली पर मझाड़ा गाँव में छलक पड़ी खुशी। WWW.JANSWAR.COM

14 साल बाद ‘शिक्षक बेटा’ घर लौटा: दिवाली पर मझाड़ा गाँव में छलक पड़ी खुशी।

पिथौरागढ़: मेहनत, लगन और अटूट संकल्प जब एक साथ मिलते हैं, तो सफलता खुद रास्ता बनाती है। सीमांत जिले पिथौरागढ़ के झूलाघाट निवासी नीरज जुकरिया की कहानी इसी कहावत को सच साबित करती है। नीरज ने वर्ष 2011 में यह प्रण लिया था कि जब तक उनकी सरकारी नौकरी नहीं लगती, तब तक वे अपने गांव की धरती पर कदम नहीं रखेंगे।

इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद नीरज ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की, लेकिन शुरुआती असफलताओं ने उन्हें गहराई से झकझोर दिया। हार मानने के बजाय उन्होंने पिथौरागढ़ में रहकर तैयारी जारी रखी और अपने संकल्प को अडिग रखा। इस दौरान उनके माता-पिता – पिता रेवाधर जुकरिया और माता देवकी देवी – बेटे से मिलने खुद शहर आते थे। नीरज फोन पर ही परिवार से जुड़ाव बनाए रखते थे, पर गांव नहीं लौटे।

लगातार 14 वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद आखिरकार नीरज को सफलता मिली। वे अब पौड़ी गढ़वाल के एक प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में सेवाएं दे रहे हैं।

दिवाली से पहले जब नीरज अपना वादा निभाते हुए शिक्षक बन गांव लौटे, तो पूरा गांव जैसे उल्लास से झूम उठा। ग्रामीणों ने दीपों, आतिशबाजी और मिठाइयों के साथ नीरज का स्वागत किया। लंबे अरसे बाद घर लौटे बेटे को देख माता-पिता की आंखें भी खुशी से छलक उठीं।

नीरज की यह कहानी न सिर्फ युवाओं के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह भी दिखाती है कि अगर जिद हो कुछ कर दिखाने की, तो परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, सफलता देर से ही सही लेकिन निश्चित रूप से कदम चूमती है।

दिवाली से पहले जब नीरज शिक्षक बन घर लौटे, तो पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। ग्रामीणों ने दीप जलाकर और आतिशबाजी कर उनका स्वागत किया, वहीं माता-पिता की आंखें गर्व और खुशी से भर आईं