हरेला पर्व: प्रकृति प्रेम और समृद्धि का प्रतीक। WWW.JANSWAR.COM

हरेला पर्व: प्रकृति प्रेम और समृद्धि का प्रतीक।

(अरुणाभ रतूड़ी) उत्तराखंड की हरी-भरी वादियों में आज पारंपरिक हरेला पर्व बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व हर साल श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने, अच्छी फसल की कामना करने और सुख-समृद्धि के आगमन का प्रतीक है।

हरेला, जिसका शाब्दिक अर्थ “हरा दिन” है, मुख्य रूप से कुमाऊं क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से नौ दिन पहले घरों में, विशेष रूप से मंदिरों और पूजा स्थलों में, जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों और भट्ट जैसी सात प्रकार के अनाजों को मिट्टी के छोटे-छोटे बर्तनों या टोकरियों में बोया जाता है। इन नौ दिनों में हरेले को पानी दिया जाता है और उसकी देखभाल की जाती है, जिससे वे अंकुरित होकर हरे-भरे हो जाते हैं।

आज, हरेला पर्व के अवसर पर, इन हरे-भरे पौधों को काटा गया और परिवार के सभी सदस्यों, विशेषकर बड़ों द्वारा छोटों को आशीर्वाद के रूप में सिर पर रखा गया। यह परंपरा अच्छी फसल और परिवार में खुशहाली की कामना का प्रतीक है। मान्यता है कि हरेले के जितने अच्छे अंकुर निकलते हैं, उतनी ही अच्छी फसल होती है।

इस अवसर पर, लोग अपने इष्ट देवताओं की पूजा करते हैं, पारंपरिक गीत गाते हैं और लोक नृत्यों का आयोजन करते हैं। घरों में पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं और परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर भोजन करते हैं। कई स्थानों पर वृक्षारोपण कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया, जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों की जागरूकता को दर्शाता है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व के अवसर पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दीं और कहा, “हरेला पर्व हमारी संस्कृति और प्रकृति के साथ हमारे गहरे जुड़ाव का प्रतीक है। यह हमें पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के महत्व की याद दिलाता है।”

हरेला पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह किसानों के लिए नई फसल चक्र की शुरुआत का भी प्रतीक है। यह पर्व हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने और उसके प्रति सम्मान व्यक्त करने का संदेश देता है, जो उत्तराखंड जैसे कृषि प्रधान राज्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जनश्वर परिवार की ओर से प्रदेशवासियों को उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।