नील-हरित शैवाल एवं जड़ी बूटी को लेकर आयोजित की गई समीक्षा बैठक।
चमोली:- जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान मण्डल गोपेश्वर में रविवार को मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में नील-हरित शेवाल एवं जड़ी बूटी को लेकर समीक्षा बैठक आयोजित की गई जिसमें भारतीय कृर्षि अनुसंधान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ0 ओ0एम0 तिवारी एवं जड़ी बूटी संस्थान के वैज्ञानिक ए0के भण्डारी ने विस्तार से जानकारियां दी।
निदेशक जड़ी बूटी शोध संस्थान मण्डल/मुख्य विकास अधिकारी डा0 अभिषेक त्रिपाठी ने वैज्ञानिक ओ0एम0 तिवारी को पुष्प गुच्छ एवं शॉल भेंट कर कार्यक्रम की शुरूआत की तत्पश्चात जड़ी बूटी पौधालयों का निरीक्षण किया।
डा0 अभिषेक तिवारी ने बताया कि मनरेगा के तहत विभिन्न औषधीय पौंधों की कृर्षि हेतु किसानों को 03 नाली भूमि हेतु मुफ्त पौध उपलब्ध करवायी जा रहीं है जिसमें किसान औषधीय पौंधों की 26 प्रजातियों जैसे कुटकी, अतीस, कूठ आदि की खेती कर सकेतें हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में 26 हजार से अधिक किसान जड़ी बूटी की खेती हेतु संस्थान के माध्यम से पंजीकृत हैं जो कि इसका लाभ ले रहे हैं। एवं उन्होंने नील-हरित शैवाल की खेती के बारे में जानकारी देते हुये बताया कि नील हरित शैवाल स्पीरूलीना की खेती करना एक अच्छा प्रयास है इससे आमजन तक इसका लाभ पहुॅचेगा साथ ही किसानों की आय में वृद्वि होगी।वैज्ञानिक ओ0एम0 तिवारी ने नील-हरित शैवाल की कृषि के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि नील हरित शैवाल स्पिरुलिना एक मात्र शैवाल है जिसको मानव आहार के रूप में प्रयोग कर सकता है इस शैवाल की विश्व में कुल 09 प्रजातियां पायी जाती हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व में यह अवधारणा थी कि स्पिरुलीना शैवाल केवल समुद्र में पाया जाता है लेकिन लोकटक झील मणिपुर का शोध करने पर पता चला कि यह शैवाल ताजे पानी में भी पायी जाती है जिस कारण इसकी खेती करने की संभावनाएं उत्पन्न हुयी हैं। उन्होंने बताया कि नील-हरित शैवाल की कृषि से किसानों की आय भी होगी। स्पिरुलीना शैवाल को विश्व स्वास्थ्य संस्थान ने वर्ष 1971 में सुपर फूड का दर्जा भी प्राप्त है एवं इसकी एक कैप्सूल में 2 लीटर दूध से अधिक ऊर्जा मिलती है।
वैज्ञानिक ए0के0 भण्डारी ने बताया कि जड़ी बूटी शोध संस्थान मण्डल गोपेश्वर की स्थापना वर्ष 1989 में हुयी थी जिसका उद्देश्य हिमालय क्षेत्र की सभी जड़ी बूटियों का नाप भूमि में खेती करना था ताकि कि वन भूमि में हो रही जड़ी बूटियों का विदोहन रोका जा सके उन्होंने आगे बताया कि वर्ष 2002 में जड़ी बूटियों की खेती करना प्रारम्भ किया गया एवं पूरे प्रदेश में 26 हजार से अधिक किसान जड़ी बूटी की खेती कर इसका लाभ ले रहे हैं।
इस दौरान परियोजना निदेशक आनन्द सिंह एवं संस्थान के अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
