वीर प्रसवा माता हीरा बेन को नमन-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी

वीर प्रसवा माता हीरा बेन को नमन

-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी(स्वतंत्र पत्रकार)

अभी हाल ही में भारत के वर्तमान यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सौ वर्षीय माता जी श्रीमती हीरा बेन का देहान्त हो गया।उनको पिछले मंगलवार को सांस लेने में परेशानी हो रही थी जिससे उनको यूएन मेहता नामक अहमदाबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ 30 दिसम्बर 2022 को प्रात:3:30 बजे इस महान माता ने अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया।

हीरा बा का जन्म 18 जून 1922 को उनके ननिहाल गुजरात पालनपुर गाँव में हुआ था जहां प्रथम प्रसव मायके में होने की उस समय की प्रथा के अनुसार उनकी माँ ससुराल से मायके गयी थी। हीरा बा जब छ: माह की थीं तो इनकी माँ की मृत्यु हो गयी। बिन माँ की इस बच्ची को पढने का अवसर नहीं मिल पाया। वे गुजरात के मोधी-घांची समुदाय की थीं जो पिछड़े वर्ग में घोषित है।
उस समय की प्रथा के अनुसार इनका विवाह किशोर अवस्था में ही श्री दामोदरदास मूलचन्द मोदी के साथ हो गया। श्री दामोदरदास मोदी आजीविका के लिए चाय की दुकान लगाते थे। जिससे बहुत कम आय होती थी। जो कि इनके बड़े परिवार के लिए पर्याप्त नहीं होती थी। इनके परिवार के लोगों के अनुसार गरीबी इतनी थी कि सब्जी खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे इसलिए हफ्ते में केवल पांच दिन बाजरे की रोटी व कढी बनती थी।तब छाछ बिना दाम के मिल जाती थी।
श्रीमती हीराबेन के पाँच बेटे व एक बेटी हैं। सबसे बड़े बेटे का नाम सोमा मोदी है।सोमा मोदी गुजरात के स्वास्थ्य विभाग मेंअधिकारी की नौकरी कर सेवानिवृत हो गये हैं। दूसरे बेटे का नाम अमृत मोदी है जो खराद मशीन ऑपरेटर थे। तीसरे बेटे का नाम नरेन्द्रमोदी है जो एक सामान्य परिवार से भारत के प्रधानमंत्री पद पर पहुँचे हैं और अपने दूसरे कार्यकाल पर कार्यरत हैं। तथा संसार के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक हैं। चौथे बेटे का नाम प्रह्लाद मोदी है जो एक दुकान चलाते हैं तथा पाँचवें बेटे का नाम पंकज मोदी है जो गुजरात के सूचना विभाग में कार्यरत हैं।हीरा बा इन्हीं के साथ रहती थीं
यद्यपि हीराबेन का परिवार गरीबी के दिन जी रहा था तब भी तब भी उन्हें अपने बच्चों को पढाने की ललक थी।
प्रधानमंत्री श्री मोदी के एक पत्र के अनुसार बा परिवार की आय बढाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन मांजती थी तथा समय मिलने पर वे चरखा चलाती थीं।वे कपास के छिलके से रुई निकालती थीं।आर्थिक कमी के बाद भी उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण कराने की भरसक कोशिश की।
कल उनके निधन पर उनका अन्तिम संस्कार गुजरात के गाँधीनगर स्थित सेक्टर 30 श्मशान घाट पर एक सामान्य परिवार की महिला की तरह किया गया। उन्हें मुखाग्नि सबसे बड़े बेटे व उनके प्रधानमंत्री बेटे ने दी।यह इन्हीं की शिक्षा है कि बेटा भारत का प्रधानमंत्री होते हुए भी उन्हें सामान्य शव गाड़ी में ले गये। और एक आम श्मशान घाट पर उनका सामान्य महिला की तरह अन्तिम संस्कार किया गया।जो कि इस देश में एक नयी बात है।इतने बड़े नेता की माँ की मृत्यु पर न जनता की मीलों लंबी कतारें न गाड़ियों का काफिला। जब कि अब तक तो ऐसे मामलों में देश के धन का दुरुपयोग होता रहा है। धन्य है हीराबेन जिन्होंने एक ऐसे “नरसिंह” बेटे को जन्म दिया है जो देश से उतना ही लेता है जितना इसको संवैधानिक अनुमति है।जो देश के लिए जीता है,जो भी करता है देश के लिए न कि अपने परिवार के लिए।ऐसी वीर प्रसवा माता को सादर नमन।

**********