बाबा कांशी राम: कलम के सिपाही, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी।
(अरुणाभ रतूड़ी जनश्वर):- आज हम बाबा कांशी राम जी की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन करते हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं और लेखन के माध्यम से न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया, बल्कि समाज में व्याप्त **छुआछूत, शोषण और अन्याय** के खिलाफ भी बुलंद आवाज उठाई। उन्हें “पहाड़ी गांधी” और “पहाड़ां दा बुलबुल” (पहाड़ों का बुलबुल) जैसे उपनामों से भी जाना जाता है, जो उनके जन-आंदोलन और साहित्यिक योगदान को दर्शाते हैं।
साहित्यिक क्रांति के अग्रदूत:- बाबा कांशी राम का जन्म 11 जुलाई 1882 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के डाडासीबा गाँव में हुआ था। वे केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक प्रख्यात कवि, लेखक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपनी कलम को तलवार बनाकर सामाजिक कुरीतियों और ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ जंग लड़ी। उनकी कविताओं में न केवल देश प्रेम का जज्बा था, बल्कि **दलितों, वंचितों और शोषितों** के दर्द और संघर्ष को भी मार्मिकता से व्यक्त किया गया था।
उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक किया। वे सरल और सुबोध भाषा में लिखते थे ताकि आम आदमी भी उनकी बातों को समझ सके और उनसे जुड़ सके। उनकी रचनाएँ लोगों को अन्याय के खिलाफ खड़े होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करती थीं। छुआछूत जैसी गहरी जड़ें जमा चुकी सामाजिक बुराई के खिलाफ उन्होंने लगातार अपनी कविताओं और लेखों से प्रहार किया, समाज में समानता और भाईचारे का संदेश फैलाया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:- बाबा कांशी राम केवल कवि बनकर नहीं रहे, बल्कि उन्होंने सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वे महात्मा गांधी के विचारों से गहरे प्रभावित थे और उन्होंने असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार गिरफ्तार किया और उन्हें जेल की यातनाएं सहनी पड़ीं, लेकिन उनकी भावना कभी कमजोर नहीं पड़ी।
कहा जाता है कि उन्होंने 1931 में प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाता, वे रंगीन कपड़े नहीं पहनेंगे। इस प्रतिज्ञा का उन्होंने आजीवन पालन किया और हमेशा काले कपड़े पहने, जो उनकी दृढ़ता और स्वतंत्रता के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का प्रतीक बन गया।
बाबा कांशी राम जी का निधन 1943 में हुआ, यानी देश की आजादी से पहले। लेकिन उनकी कविताएं और उनके विचार आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं। उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि कलम की ताकत कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है। उन्होंने दिखाया कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और क्रांति का एक शक्तिशाली हथियार भी है।
आज जब हम सामाजिक असमानता, शोषण और अन्याय के विभिन्न रूपों का सामना कर रहे हैं, बाबा कांशी राम जी के विचार हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें इन बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। उनकी जयंती हमें याद दिलाती है कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए साहस, प्रतिबद्धता और मानवीय मूल्यों पर आधारित संघर्ष कितना आवश्यक है।
बाबा कांशी राम जी को उनकी अदम्य भावना, उनके साहित्यिक योगदान और समाज के प्रति उनके समर्पण के लिए हम सदैव याद रखेंगे।