मां की ममता दिखती है, पिता की चिंता महसूस होती है.. एक पिता.. अपनी नहीं, हमेशा अपनों की फिक्र करता है।
(अरुणाभ रतूड़ी ):- मां की ममता को हम सब महसूस कर सकते हैं — वो स्पर्श करती है, सुलाती है, दुलारती है। लेकिन पिता की ममता वो दिखाई नहीं देती, बस कहीं न कहीं दिल की गहराइयों में महसूस होती है। शायद इसलिए कि पिता कभी दिखावा नहीं करते, बस हर लमहें अपनों की फिक्र में उलझे रहते हैं।बचपन में जब हम गिरते हैं, तो मां पास आकर हमें उठाती है। पर दूर खड़ा पिता… बिना कुछ कहे, आंखों से देख लेता है कि चोट कहां लगी है। वो उसके बाद चुपचाप डॉक्टर के पास ले जाता है और खुद को काबू में रखता है, ताकि तुम्हारे आंसू जल्दी रुक जाएं।
पिता काम से देर से लौटते हैं, थके होते हैं, भूखे होते हैं लेकिन चेहरा ऐसा रखते हैं जैसे दिन भर कुछ हुआ ही नहीं। जब बच्चा पूछता है “पापा आप थक गए होंगे?”, तो मुस्कुरा कर जवाब आता है — “नहीं बेटा, जब तुझे हँसते देखता हूँ, सारी थकान दूर हो जाती है।”
पिता वो होता है जो अपनी ज़रूरतों को टाल कर अपने बच्चों की खुशियाँ खरीदता है। उसे नई घड़ी लेनी है, लेकिन पैसे से पहले बच्चे की फ़ीस भरता है। उसे ठंड लगती है, पर पहले बच्चे को कम्बल देता है। उसकी पूरी जिंदगी ‘अपनों’ के लिए होती है – बिना शिकायत, बिना अपेक्षाएं।
कभी-कभी लगता है पिता कठोर हैं — डांटते हैं, नियम बनाते हैं, सीमाएं तय करते हैं। पर उस कठोरता की भी अपनी एक ममता होती है — जो तुम्हें गिरने से पहले संभालना सीखाती है।
मां ममता की प्रतिमा है, तो पिता भी उसी ममता का मौन संस्करण हैं — जो चुपचाप अपना सब कुछ देकर सिर्फ ये देखता है कि उसके बच्चे अपने जीवन में तरक्की करें।
पिता सिर्फ छांव नहीं है, वो वो पेड़ है जिसकी जड़ें ज़मीन में गहराई तक जाती हैं — बिना किसी को दिखे, मजबूत आधार बनाते हुए। मां की ममता सजीव होकर सामने आती है, लेकिन पिता की ममता… वो चिंता बनकर हर रोज़ हमारे आस-पास होती है — महसूस तो होती है, पर कहां दिखाई देती है?
एक पिता अपनी नहीं, हमेशा अपनों की फिक्र करता है।और ये फिक् ही तो उनकी सबसे बड़ी “ममता” है।अगर चाहो तो मैं इसे सोशल मीडिया पोस्ट या कविता के रूप में भी बदल सकता हूँ।