आपदाओं के न्यूनीकरण हेतु वेदर नेटवर्कस्टेशनों की स्थापना हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर #जिलाधिकारी ने जिला दिव्यांग पुनर्वास प्रबन्धन समिति के कार्याे की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की #धाद के कोना कक्षा का अभियान के अंतर्गत पहाड़ दिवस पर हुआ आयोजन  

 

-अरुणाभ रतूड़ी

आपदाओं के न्यूनीकरण हेतु वेदर नेटवर्कस्टेशनों की स्थापना हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

राज्य में वर्षा तथा मौसम संबंधी आपदाओं के जोखिमों से बचाव तथा आपदाओं के न्यूनीकरण के लिए वेदर नेटवर्क स्टेशनों की स्थापना तथा  वास्तविक समय मौसम सूचना प्रणाली (रियल टाइम वेदर इन्फॉर्मर सिस्टम) के विकास हेतु पूर्व में किए गए एमओयू (समझौता ज्ञापन) को उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (यूएसडीएमए)  तथा मौसम विज्ञान केन्द्र (आईएमडी) के मध्य सोमवार को सचिवालय में आगामी पांच वर्षो के लिए बढ़ा दिया गया है। सचिव आपदा प्रबन्धन डा0 रंजीत कुमार सिन्हा तथा मौसम विज्ञान केन्द्र के निदेशक श्री बिक्रम सिंह ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। केन्द्रीय एजेंसी आईएमडी तथा उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) के मध्य यह एमओयू राज्य में आपदा पूर्व, आपदा के दौरान तथा आपदा के बाद किए जाने वाले सहयोग, समन्वय और सहायता की दिशा में पहल है।

एमओयू के तहत आईएमडी द्वारा चयनित ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, ऑटोमेटिक रेन गेज, ऑटोमेटेड स्नो गेज तथा कॉम्पेक्ट डॉप्लर राडार के स्थल चयन, इंस्टॉलेशन, परीक्षण तथा संचालन हेतु मार्गदर्शन तथा दिशा-निर्देश उपलब्ध करवाए जाएगे। यूएसडीएमए की सहायता से स्थापित इस पूरे तंत्र के अंतिम निरीक्षण में आईएमडी सहायता करेगी। उक्त उपकरणों की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी यूएसडीएमए की होगी। इन उपकरणों से प्राप्त डाटा को प्रोसेसिंग के लिए सीधे आईएमडी के सर्वर में भेज दिया जाएगा। इसके साथ ही यूएसडीएमए को उत्तराखण्ड में आईएमडी द्वारा स्थापित अन्य मौसम सम्बन्धित उपकरणों तक रियल टाइम ऑनलाइन एक्सेस मिल जाएगा।
एमओयू के तहत आईएमडी तथा यूएसडीएमए शोध तथा प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोग एवं सहायता को प्रोस्ताहित करेंगे। इसके तहत सूचनाओं तथा अनुभवों को भी आदान-प्रदान किया जाएगा।
इस अवसर पर सचिव आपदा प्रबन्धन डा0 रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा उत्तराखण्ड एक आपदा संवेदशील राज्य है। यहां पर मुख्यतः वर्षा सम्बन्धित आपदाओं भूस्खलन, बाढ़, बिजली गिरने जैसे जोखिमों की अधिकता है। आईएमडी (मौसम विज्ञान केन्द्र) केन्द्र सरकार की एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसका नेटवर्क पूरे देश में फैला है। पिछले कुछ वर्षों में आईएमडी का नेटवर्क उत्तराखण्ड में सघन किया गया है। केन्द्र सरकार के मौसम विज्ञान केन्द्र तथा उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के मध्य यह एमओयू एक नई पहल है। यह माननीय प्रधानमंत्री जी के विचारों के अनुरूप कॉपरेटिव फेडरलिज्म का उदाहरण है। इसमें एक केन्द्रीय एजेंसी राज्य के साथ राज्य की जरूरतों के अनुसार आपदा प्रबन्धन हेतु प्रभावी व्यवस्था बनाने हेतु भागीदारी कर रही है। हाल ही में मौसम विज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रगतिशील कार्य हुए है। सेटेलाइट सिस्टम एवं राडार सिस्टम में और भी अधिक प्रगति हुई है। अब आईएमडी का पूर्वानुमान  लगभग सटीक होता है। लेकिन इसमें और अधिक सटीकता की आवश्यकता है। हम इसे एक चरण आगे लेकर जाना चाहते हैं। हमें अब लोकेशन स्पेसफिक सूचना की आवश्यकता है। ताकि जहाँ पर कोई आपदा होने की आंशका है वहाँ पर आपदा प्रबन्धन का तंत्र पहले ही सर्तक एवं तैयार हो जाए। राज्य में दो राडार सिस्टम सुरकंडा देवी तथा मुक्तेश्वर में स्थापित हो चुके हैं तथा एक अन्य राडार सिस्टम लैंसडाउन में स्थापित किया जा रहा है। राज्य में राडार सिस्टम को सघन करने से लोकेशन स्पेसफिक सूचनाएं प्राप्त हो सकेंगी। लाइटनिंग राडार तथा ऑटोमेटेड डॉप्लिंग राडार को मिलाकर भी लोकेशन स्पेस्फिक सूचनाएं प्राप्त हो सकेंगी।
इस अवसर पर अपर सचिव श्री सविन बंसल भी उपस्थित थे

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जिलाधिकारी ने जिला दिव्यांग पुनर्वास प्रबन्धन समिति के कार्याे की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की

 

जिला दिव्यांग पुनर्वास प्रबन्धन समिति के कार्याे की समीक्षा को लेकर जिलाधिकारी डॉ0 आशीष चौहान की अध्यक्षता में कलक्ट्रेट सभागार में बैठक सम्पन्न हुई। समीक्षा के दौरान जिलाधिकारी ने डी0डी0आर0सी के नोड़ल अधिकारी को निर्देश दिये कि दिव्यांगजनों को केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाना सुनिश्चित करें। समिति द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव की स्वीकृति को लेकर जिलाधिकारी ने कहा कि कार्याे में प्रगति लाने के उपरान्त ही प्रस्तावों को प्रस्तुत करें।
सोमवार को जिला कार्यालय सभागार में आयोजित डीडीआरसी की बैठक में जिलाधिकारी ने जिला स्तरीय समिति के सदस्यों को निर्देश दिये कि डीडीआरसी में रिक्त पड़े 08 पदों को नियमानुसार प्राथमिकता के आधार पर भरें। दिव्यांगजनों को केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ मिलें इस हेतु उन्होने डीडीआरसी के नोडल अधिकारी को रेखीय विभागों के साथ समन्यव स्थापित करते हुए दिव्यांगजनों तक योजनाओं का प्रचार-प्रसार में एक सेतु के रुप में कार्य करने के निर्देश दिये हैं। जिलाधिकारी ने मुख्य विकास अधिकारी व जिला समाज कल्याण अधिकारी को निर्देश दिये कि डीडीआरसी द्वारा दिव्यांगजनों को वितरित किये जाने वाले उपकरणों के लेखे-जोखे की जॉच कर विस्तृत रिर्पाेट प्रस्तुत करना सुनिश्चित करें। उन्होने कहा कि जो भी डीडीआरसी के केन्द्र बन रहे है उनमें फिजियोथेरेपिस्टो का चयन व तैनाती समय से पूरी करना सुनिश्चित करें। इसके अलावा उन्होने आरबीएसके के साथ समन्वय से दिव्यांगों को लाभ दिलाने के साथ-साथ दिव्यांगजनों को स्वरोजगार से जोड़ने में डीडीआरसी भूमिका सुनिश्चित करने के निर्देश दिये। जिलाधिकारी ने समाज कल्याण अधिकारी को ओल्ड एज होम हेतु भूमि तलाशने के निर्देश दिये।
बैठक में जिला समाज कल्याण अधिकारी विनोद कुमार उनियाल, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी कमलेश भारती, जिला पंचायतराज अधिकारी जितेंद्र कुमार, नोडल अधिकारी डीडीआरसी धर्मेन्द्र पंवार सहित समिति के अन्य सदस्य मौजूद थे।

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पहाड़ के स्कूलों ने दो सदी में समाज को गढ़ा है उन्हें विरासत की तरह सहेजना होगा धाद के कोना कक्षा का अभियान के अंतर्गत पहाड़ दिवस पर हुआ आयोजन

पहाड़ में शिक्षित होने की अदम्य इच्छा मौजूद रही है जिसके कारण तमाम दिक्कतों के बावजूद वहां के निवासियों ें ने शिक्षत होकर दुनिया में अपना स्थान बनाया है पहाड़ दिवस के अवसर पर धाद के आयोजन में यह बात उप निदेशक,विद्यालयी शिक्षा शिव प्रसाद सेमवाल ने कही आयोजन के मुख्या वक्त शिक्षाविद शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा की पहाड़ में औपचारिक शिक्षा का  इतिहास  दो सदी पुराना रहा है जिसने पहाड़ में कई पीडियों का अकार देने में काम किया है औपचारिक शिक्षा के रूप में पहला स्कूल राजा  प्रद्युम्न शाह के काल में पौड़ी जिले में 1802 में दुधारखजाल में पहला स्कूल खुला दूसरा स्कूल 1876 में  प्रताप शाह  में टिहरी में स्कूल खुला अनौपचारिक शिक्षा ज्योतिष आदि के रूप में  जारी रही ब्रिटिश गढ़वाल में प्राथमिक और मिडिल स्कूलों की स्थापना की जा रही थी लेकिन ऐसा अन्य स्थानों  पर नहीं था   शिक्षा को आजादी के बाद नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया लेकिन बड़ा बदलाव तब आया जब मौलिक अधिकार के रूप में शामिल करने की एक लम्बी लड़ाई लड़ी गयी है और 2009 में जिसके बाद पहाड़ में बड़ी संख्या में स्कूल सामने आये राज्य बनने के बाद इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी हुई लेकिन पलायन और अन्य कारणों के चलते आज स्कूलों के सामने अपने अस्तित्व का संकट है और बड़ी संख्या में स्कूल बंद होने के कगार  पर है. जबकि पहाड़ों में पढ़ाई हासिल करने की एक इच्छा रही है और तमाम दुश्वारियों के बावजूद पहाड़ के स्कूल तक छात्र पहुचं रहे हैं. सके लिए उन्होंने उदाहरण दिया कि सबसे समृद्ध जिले हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में शिक्षा की ललक सबसे कम है। पूर्व में पर्वतीय जिलों में स्थापित सहायता प्राप्त विद्यालय सम्पन्न लोगों और ट्रस्टों द्वारा कम संशोधन होते हुए भी खोले गए यह शिक्षा के प्रति ललक ही थी। लेकिन पलायन और कम होती छात्र संख्या ने नयी चुनौतोया ख ड़ी कर दी है
शैलेन्द्र अमोली ने कहा की पहाड़ के स्कूल समाज की विरासत हैं उन्हें उसी तरह बचाया जान चाहिए जैसे हमने अपनी सांस्कृतिक विरासत को संभाला है आज शिक्षा क्रय की वस्तु बन गयी है जिसमे हर व्यक्ति अपनी क्रय क्षमता के हिसाब से शिक्षा खरीद रहा है ऐस में राजकीय स्कूल की चुनौती बढ़ गयी है.न्होंने कहा कि राजकीय स्कूलों को अपनी छवि बदलने की आवश्यकता है । आजकल स्कूल वर्ग विशेष के अनुसार संचालित हो रहे हैं और राजकीय स्कूलों में वे बच्चे रह गए हैं जिनके पास कोई विकल्प नहीं है। पहाड़ में शिक्षा की चुनौतियाँ में पलायन के साथ नयी टेकनीक का भी अभाव है राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हाल ही में स्थानीय भाषाओ को पढ़ाई का हिस्सा बनाया है जिसके बहुत  परिणाम देखने में आये है शिक्षक अथक प्रयास कर रहे हैं। इन स्कूलों की दशा बदलने के लिए सरकार, समाज विधायिका, शिक्षक सभी को एकजुट प्रयास करने होंगे।

आयोजन का सञ्चालन तन्मय ममगाईं  ने किया। सभा की अध्यक्षता लोकेश नवनि ने की इस अवसर पर डा. नीलम प्रभा वर्मा, रामेंद्री मंद्रवाल , मधु सिंह, आदि कार्यकर्ता उपस्थित रहे।