हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर अंतिम छोर के पत्रकार के कल्याण की योजना बने।
लेख- नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
हिन्दी पत्रकारिता दिवस किसी नेता या पत्रकार,सम्पादक या महान व्यक्ति के जन्मदिन के रूप में नहीं मनाया जाता बल्कि यह हिन्दी के प्रथम अखबार उदंत मार्तण्ड के प्रथम प्रकाशन की याद में मनाया जाता है या हम कह सकते हैं कि हम पत्रकार लोग उस अखबार व उसके संपादक जुगुल किशोर शुक्ल के बारे में अपनी कलम घसीटी कर लेते हैं। हमारे नेता मंत्री,सांसद,विधायक आदि पत्रकारिता दिवस की बधाई देने की रस्मअदाईगी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।चलिए हम भी हिन्दी समाचार पत्र के उस आदि पुरखा को व उस आदि संपादक को स्मरण कर नमन कर लेते हैं।
यह समाचार पत्र तब ईस्ट इंडिया कंपनी के गुलाम हो चुके भारत के एक भाग की राजधानी कलकत्ता में 30मई1826 को एक वकील पंडित जुगुलकिशोर शुक्ल ने उदन्त मार्तण्ड के नाम से निकाला।जो इसके स्वयं ही संपादक,प्रकाशक और मुद्रक भी थे। पंडित जी बंगाल के रहने वाले नहीं थे वे कानपुर के थे।जो रोजी रोटी के चक्कर में कलकत्ता चले गये थे।
उस समय बंगाल में अंग्रेजी,फारसी,बांग्ला और उर्दू के अखबार तो निकलते थे पर हिन्दी के नहीं। यह देख कर पंडित जुगलकिशोर ने हिन्दी में पुस्तकाकार 12″X8″आकार का एक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।जो प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित होता था।
अब भला बंगाल में इन्हें हिन्दी पाठक कहां से मिलते इसलिए वे उसे हिन्दी भाषी क्षेत्रों में डाक द्वारा भेजते थे। पर अन्य अखबारों की तरह उनके अखबार को कम्पनी सरकार ने डाक शुल्क में रियायत नहीं दी गयी जिससे 79 अंक निकालने के बाद आर्थिक कठिनाइयों के कारण दिसम्बर1827 ई० को उदन्त मार्तण्ड का अस्त हो गया।
भले ही हिन्दी का यह समाचार पत्र लगभग बीस इक्कीस महीने चला हो पर इसने इतिहास रचने का कार्य तो कर ही दिया था और यह सभी हिन्दी समाचार पत्रों का पुरखा बन गया। हिन्दी में भी पत्रकारिता हो सकती है और हिन्दी में भी समाचारपत्र निकल सकता है यह उसने दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया।
सरकार को इस दिवस को केवल बधाई तक ही सीमित न रखकर इसदिन पत्रकारों और विशेषकर उन पत्रकारों के बारे में योजनाएं बनानी चाहिए जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार संकलन तो करते हैं,जिनके समाचार छपते भी हैं पर जिन्हें पत्रकार का दर्जा नहीं मिलता।पत्रकारों की समस्याओं के निदान के लिए जिले की प्रेस की स्थाई समिति की बैठक हर महीने हों और उनमें इनको भी आमंत्रित किया जाय।तभी इस दिवस की की सार्थकता है। इनको भी बीमारी,आर्थिक कठिनाइयों के समय आर्थिक पैकेज मिलना चाहिए। अगर हम अपने पत्रकारों का हित नहीं कर सकते तो केवल रस्म अदायगी मात्र रह गयी है पत्रकारिता दिवस मनाना।