
आज पूर्व मुख्यमंत्री के ओएसडी श्री सुरेन्द्र कुमार द्विवेदी उर्फ सोहन उर्फ एस.के.द्विवेदी, आज पंचतत्व में विलीन हो गये हैं। वे स्वास्थ्य मंत्री श्री रमेश निशंक, श्री तिलकराज बेहड़ और मुख्यमंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक ’के ओएसडी रहे हैं।
जनपद पौड़ी गढवाल के यमकेश्वर ब्लाक के ग्रामसभा खोबरा में एक साधारण परिवार में जन्म लेने वाले सुरेन्द्र कुमार अपने चार भाइयों में तीसरे नम्बर के थे। उनके बड़े भाई श्री भास्करानद द्विवेदी ओएनजीसी से सेवानिवृत, दूसरे भाई श्री देवेन्द्र द्विवेदी बैंक सेवानिवृत और इनसे छोटे भाई प्यारेलाल द्विवेदी जलसंस्थान में कार्यरत हैं। इनकी दो बड़ी बहिनें भी थीं। एक का कुछ समय पूर्व देहांत हो गया।
एस.के.द्विवेदी गढवाल मंडल विकास निगम लखनऊ में पी.आर.ओ.रहे हैं। उत्तर प्रदेश के समय राजधानी लखनऊ में गढवाल मंडल विकास निगम जैसी व्यवसायिक संस्था का पीआरओ होना बहुत बड़ी बात होती थी। स्वाभाविक है कि इस पद के व्यक्ति की उत्तराखंड के विधायकों, मंत्रियों से बहुत गहरी रही होगी।
सुदर्शनीय, मृदुभाषी और हमेशा चेहरे पर मुस्कराहट रखने वाले लम्बे चौड़े डीलडौल वाले एस.के.द्विवेदी से जो एक बार मिल लेता था वह उसका आत्मीय बन जाता था यही कारण है कि उत्तराखण्ड बनने के बाद वे दो मंत्रियों के ओसडी रहे हैं।जब श्री रमेश निशंक मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपना ओएसडी बनाया।उन्होंने अपना कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया।
सुरेन्द्र कुमार द्विवेदी मेरी पत्नी की जेठी (बड़ी मौसी) के पुत्र होने के कारण मेसे साले थे। उनका कुछ सानिध्य्य मुझे भी मिला है।प्रारम्भ में मैं उन्हें पहचानता नहीं था पर उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की।जब मिले तो तो जीजा जी प्रणाम कर पैर छूते थे। चूँकि कई वर्षों में मुलाकात होती थी इसलिए मैं उन्हें भूल जाता था कि यह कौन हैं। कई बार उनसे परिचय पूछने के बाद ही मुझे याद हो पाया कि वे हमारे साले साहब हैं।
बरसों बाद जब वे गमंविनि के पीआरओ थे वे एक बार सपरिवार चीला आये तो मुझे भी मिले। तब मैं अमरउजाला का संवाददाता था।शायद किसी ने उन्हें मेरे बारे में बताया कि यह सबसे पंगे लेते रहते हैं जो कि उनके लिए खतरनाक होगा।जब वे मेरे फ्लैट में आये तो उन्होंने मुझसे अपनी चिन्ता व्यक्त की।जबकि मेरी दृष्टि में ऐसा नहीं था। । फिर एक बार वे गमंविनि के चीला गेस्ट हाउस में लगे वायरलेस पर ऑनलॉईन थे तो किसी से मेरे बारे में पूछा संयोग से मैं वहीं था। तो उन्होंने बताया कि मैं वहाँ हूँ तो मुझसे बात करते हुए फिर अपनी चिन्ता व्यक्त की। मुझे झुंझलाहट हुई और बात अधूरी छोड़ बाहर निकल गया।
जब वे स्वास्थ्य मंत्री के ओएसडी थे।मैंने उन्हें कहा कि भृगुखाल में एक बड़ा अस्पताल खुलवा दो तो उन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मंजूर करा लिया। लेकिन नियमानुसार यह पीएचसी में ही बन सकता था तो बाद में यह यमकेश्वर में ही बना। इसी अवधि में मेरा भतीजा दुर्घटना में घायल हो गया था। मैंने उन्हें फोन किया तो ये देखने सीएमआई पहुंची वहां डा.महेश कुड़ियाल से उन्होंने उसका ध्यान रखने को कहा जिससे उसका बहुत अच्छे से ईलाज हुआ और उसका अच्छे से ध्यान रखा जाने लगा।
गत वर्ष मेरे साले स्व.किशोरीलाल बडोला फोटो जर्नलिस्ट बेनेट कोलमैन कंपनी (टाईम्स ऑफ इंडिया ग्रुप दिल्ली) के तीसरे बेटे के विवाह पर, जो व्योमप्रस्थ में हुई थी में हम फिर मिले। दो दिन तक खुब बैठक हुई।खूब गप्पें लगीं। शिकवा शिकायतें हुईं। शादी के बाद मैं फिर उनसे नहीं मिल पाया।
उस शादी के कुछ ही दिन बाद वे अपने बेटे के पास विदेश चले गए थे।अभी कुछ ही समय पूर्व वह लौटे थे।मृत्यु के कुछ समय पूर्व वे बिल्कुल स्वस्थ थे,दैनिक दिनचर्या भी निर्धारित रूप से कर रहे थे,वे शाम के समय अपना दैनिक व्यायाम कर रहे थे कि अचानक उनका ही दिल उन्हें दगा दे गया और उसने धड़कना बंद कर दिया। और वे हमें बहुत दूर चले गए। अपने पीछे अपनी पत्नी, बेटा और बेटी को और हम सबको बिलखता छोड़ गए।
एक सामान्य परिवार में जन्मे सुरेन्द्र कुमार द्विवेदी ने अपनी लगन व मेहनत से शीर्ष पर पहुंच कर यह दिखा दिया कि मनुष्य अपनी लगन, परिश्रम व ईमानदारी से कुछ भी प्राप्त कर सकता है
सच में सोहन आपकी बड़ी याद आएगी।ईश्वर आपको अपने चरणों में स्थान दे,यही प्रार्थना है।
-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी