श्रीमती सुषमा स्वराज एक प्रखर वक्ता,एक भावुक नेता,असामायिक मृत्यु।पढिए Janswar.com में.

सुषमा स्वराज का असामायिक जाना

लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूडी़
भारतीय जनतापार्टी की एक स्तम्भ के रूप में कार्यरत् रही 67 वर्षीय पूर्व विदेशमंत्री व प्रखर वक्ता तथा राजनीति में कई कीर्तिमान बनाने वाली श्रीमती सुषमास्वराज के संबंध में कल रात समाचारों में यह आया कि वे बीमार हैं और एम्स में भर्ती है.अभी यह समाचार पूरी तरह लोगों तक पहुंचा भी नहीं था कि अचानक समाचार आया कि सुषमा जी नहीं रहीं.पहले तो इस समाचार पर विश्वास नहीं हुआ पर होनी को कौन टाल सकता है कुछ समय बाद पुष्टि हो गयी कि श्रीमतीसुषमा स्वराज नहीं रही।
सुषमा जी उन भारतीय नेताओं में हैं जिनके प्रशंसक भारत की विरेधी पार्टियों में ही नहीं अपितु विदेशों में भी हैं उन्होंनेे राजनीति से ऊपर उठ कर कार्य किया है। वे उत्तरप्रदेश से राज्यसभा सदस्य चुनी गयी पर उत्तराखण्ड बनने के बाद वे उत्तराखण्ड से राज्यसभा की सदस्य भी रहीं।ऋषिकेश में ऐम्स स्वीकृति उन्हीं की देन है।
सुषमा जी का जन्म 14 फरवरी 1952 को अम्बाला छावनी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम श्री हरदेव शर्मा था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्यों में से एक थे तथा इनकी माता का नाम श्रीमती लक्ष्मीदेवी था।सुषमा जी ने स्नातक तक की शिक्षा सनातन धर्म.कालेज अम्बाला छावनी से किया। इसके बाद उन्होंने कानून की डिग्री पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ से पूरी की। छात्र जीवन में उन्हे सर्वश्रेष्ठ छात्रा ,सर्वश्रेष्ठ एनसीसी कैडेट व सर्वश्रेष्ठ वक्ता का पुरस्कार मिला। 
सन् 1973 में उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में अपना कैरियर प्रारंभ किया, इसके दो वर्ष बाद 13 जुलाई 1975 को उन्होंने अपने साथी वकील स्वराज कौशल से विवाह कर लिया।अब वे सुषमा शर्मा से श्रीमती सुषमा स्वराज बन गयीं। इनके पति श्री स्वराज कौशल राज्य सभा सदस्य व बाद में मिजोरम के राज्यपाल भी रह चुके हैं। इनकी बेटी बांसुरी ब्रिटेन के इनर टेम्पल में वकालत करती हैं। 

छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े होने के कारण और पति श्री स्वराज कौशल के समाजवादी श्री जार्ज फर्नानडिस के नजदीकी होने के कारण वे श्री जार्ज फर्नानडिस की विधिक टीम की हिस्सा बन गयीं।

श्रीमती सुषमा स्वराज ने सन् 1974-75 में श्री जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में भाग लेकर और बाद में आपत्काल का विरोध कर राजनीति में प्रवेश किया।आपत्काल के बाद जनतापार्टी के गठन के बाद उन्होंने जनतापार्टी की सदस्यता ग्रहण की।और अपनी राजनैतिक जीवन प्रारंभ किया।

सन्1977 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में वे विधायक चुनी गयीं और चौधरी देवीलाल कैबिनेट में 25 वर्षीय श्रीमती सुषमा को राज्य का श्रम मंत्री बनाया गया। सन्1979 में उन्हें जनतापार्टी का हरियाणा का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया। उस समय उनकी उम्र केवल 27 वर्ष थी।
जनता पार्टी के पराभव व टूट के बाद भारतीय जनता पार्टी के गठन होने पर सुषमा स्वराज उसमें शामिल हो गयीं। सन्1987 से1990 तक वे हरियाणा विधानसभा की अम्बाला छावनी सीट पर पुन:विधायक और भाजपा -लोकदल की सरकार में शिक्षा मंत्री रहीं। सन्1990 में वे राज्यसभा की सदस्य बनीं। सन् 1996 में दक्षिणी दिल्ली की सांसद बनीं और श्री बाजपेयी की 13 दिन की सरकार में वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं.सन् 1998 में वे पुन:दक्षिण दिल्ली से सांसद बनी और बाजपेयी सरकार में दूरदर्शन मंत्री व अतिरिक्त प्रभार के रूप में सूचना एवं प्रसारणमंत्री का दायित्व संभाला। इस समय उन्होंने फिल्म निर्माण को उद्योग का दर्जा दिया।जिससे फिल्म निर्माण के लिए बैंक से ऋण मिल पाने की सुविधा हुई।
      अक्तूबर 1998 में केन्द्रीय मंत्रीमंडल से त्यागपत्र के बाद 12अक्तूबर 1998 को श्रीमती सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। 03 दिसम्बर 1998 को उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। सन् 1999 में वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध कर्नाटक के बेल्लारी संसदीय सीठ से चुनाव लड़ीं,पर हार गयीं। सन् 2000 को वे उत्तरप्रदेश से राज्यसभा सदस्य बनीं। 09 नवम्बर 2000 को उत्तराखण्ड बनने पर उनकी सीट उत्तराखण्ड को दे दी गयी। इस प्रकार वे उत्तराखण्ड की प्रथम राज्यसभा सांसद बनीं।बाजपेयी सरकार में सुषमा जी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। वे सितंबर 2000 से जनवरी 2003 तक मंत्री रहीं। 
सन् 2003 में उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों में मंत्री बनाया गया, और मई 2004 तक राजग की हार तक वह केंद्रीय मंत्री रही।
अप्रैल 2006 में श्रीमती स्वराज को मध्यप्रदेश राज्य से राज्यसभा सदस्य चुना गया।यह राज्यसभा में उनका चौथा कार्यकाल था। सन् 2009 में वे मध्यप्रदेश की विदिशा सीट से विजित होकर लोकसभा सांसद बनीं,15वीं लोकसभा में वे नेता विपक्ष रहीं.
1914 की 16 वीं लोकसभा में विदिशा से जीत हासिल करने के बाद वे भारत की पहली विदेशमंत्री बनीं (यद्यपि उनसे पूर्व श्रीमती इंदिरागांधी दो बार कार्यवाहक विदेश मंत्री रह चुकीं थीं)।
जीवन भर संघर्षरत रहने के कारण उनका स्वास्थ्य खराब रहने से उन्होंन राजनीति से संन्यास ले लिया 6 अगस्त को दिल का दैरा पड़ने से उन्हें एम्स दिल्ली में भर्ती कराया गया।जहां डाक्टरें की टीम व अत्यन्त आधुनिक उपकरण व जीवनरक्षक दवा उनका जीवन नहीं बचा सकींऔर उन्होंने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया। एक दयालु व प्रखर प्रवक्ता  सुषमा स्वराज जिन्होंने राजनीति में कई कीर्तिमान बनाये, की कमी देश को लम्बे समय तक महसूस होती रहेगी।

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