विधानसभा सीट पर वर्चस्व स्थापित करने की लड़ाई है विधायक रावत व मंत्री डा. रावत के बीच
– नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
स्वयं को वैचारिक और अनुशासित कहलाने वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी के अनुशासित विधायक अपनी पार्टी के मंत्री पर ही आरोप लगाये और उन आरोपों की जांच की मांग करे और जांच न होने पर विधानसभा के सम्मुख धरने पर बैठने की धमकी दे तो यह क्यों न समझा जाये कि पार्टी में बहुत कुछ ठीक नहीं हैं। केवल उसपर एक परदा पड़ा था। लैंसडौन के विधायक दिलीप रावत के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में जो आरोप वन विभाग पर व विद्युत विभाग पर लगाये उसका सार तो यही निकलता है।
वैसे आरोपों का और मंत्री डा. हरक सिंह रावत का पुराना नाता है।कांग्रेस की पहली सरकार(2002-07) में मंत्री बने तो उन पर एक युवती ने यौन शोषण का आरोप लगाया।अन्त में न्यायालय से दोष मुक्त हुए,कांग्रेस के दूसरे कार्यकाल(2012-17) में उन पर अपने रिस्तेदार महिला को प्रधानाचार्य से दूसरे विभाग का निदेशक बना देने का आरोप लगा। अब उनका त्यागपत्र देने की धमकी।
राजनीतिक शतंरंज के धुरंधर खिलाड़ी होने के नाते डा. हरकसिंह रावत जानते हैं कि कब और कहाँं क्या करना है।जब वे यह देख लेते हैं कि पार्टी में उनकी नहीं सुनी जाती तो वे पार्टी ही बदल लेते हैं वे भाजपा,बसपा,कांग्रेस और भाजपा का सफर तय कर चुके हैं। इसी की बदौलत वे 2012 से 2021 तक राज करने वाली दो अलग अलग पार्टियों में मंत्री पद पा चुके हैं।
विधायक दिलीप रावत जो कि लैंसडौन विधान सभा सीट से विधायक है वे स्व.भारत सिंह रावत के पुत्र और उत्तराधिकारी हैं। उ.प्र. के समय उनके पिता स्व.रावत लैन्सडौन विधान सभा सीट से ही लखनऊ पहुंचते थे।ऐसे में यह सीट विधायक दिलीप रावत के लिए परंपरागत सीट हुई। इस सीट पर उन्होंने अपने पिता के समय से ही कार्य किया है। ऐसे में यहां उनके समर्थकों की कमी नहीं है।
दोनों रावतों की इस वर्चस्व की लड़ाई ने आलाकमान व मुख्यमंत्री के सामने जो समस्या उत्पन्न कर दी है उसका वे क्या समाधान निकालते हैं यह समय के गर्भ में है। कौन पार्टी छोड़ता है,कौन कांग्रेस में जाता है यह आने वाला समय ही बताएगा।