आखिर जो अंदेशा था, वही सही साबित हुआ। मुख्यमंत्री से काफी उम्मीदें थी लेकिन अपनी तीन दिन की पिकनिक मनाकर लखनऊ से वापस आ गये। राज्य पुनर्गठन आयोग के तहत उत्तराखण्ड और उत्तरप्रदेश के बीच पिछले 21 सालों से चल रहे परिसंपत्तियों के विवाद को सुलझाने की बात फिर एक बार शुरू हुई है। सरकार का कहना है कि इस बार केंद्र और दोनों प्रदेशों में भाजपा की सरकार है, इस वजह से यह मामला सुलझ रहा है। हालाँकि आपको याद दिला दूँ, उत्तराखण्ड राज्य में सर्वप्रथम भाजपा की ही सरकार रही है, उस दौरान उत्तरप्रदेश में भी भाजपा सरकार थी और देश में भी भाजपा की ही सरकार थी। यह भाजपा की ही नाकामी है कि यह विवाद इतने लंबे समय से चल रहा है।इन 21 वर्षों में कई बार इसको सुलझाने की बात हुई है और हर बार उत्तराखंड का मुख्यमंत्री पिकनिक मनाकर वापस आता है और अपनी पीठ थपथपा कर समाधान होने की बात करता है। इस बार इस विवाद का उपयोग सिर्फ चुनावो से पूर्व उत्तराखंड की जनता की आँखों में धूल झोंकने के लिये हो रहा है।
मुख्यमंत्री जी परिसंपत्ति विवाद पर सहमति बताकर अपनी उपलब्धि प्रचारित कर रहे हैं लेकिन हकीकत में वो अपने हाईकमान के आदेशों का पालन करते हुए उत्तर प्रदेश के हितों की रक्षा का समझौता कर आये हैं। परिसंपत्तियों पर विवाद न्यायालय में भी विचाराधीन है, वहां मजबूत पैरवी करने के बजाय सभी मामले वापस लेने की सहमति उत्तराखंड के साथ धोखा है क्योंकि सभी मामलों में जीत उत्तराखंड की तय थी। उत्तर प्रदेश के साथ हल निकालने के लिए कमेटी बनाकर सयुक्त सर्वे करना समाधान नहीं अपितु सोचा समझा षड्यंत्र है। आगामी चुनावों के मध्यनजर ये सिर्फ लीपापोती और कोरी बयानबाजी है ताकि जनता का ध्यान बाँटा जा सके। मुख्यमंत्री परिसंपतियों के बटवारे को लेकर ढोंग कर रहे है, इनकी मंसा साफ नहीं है। मैं परिसंपत्तियों के समाधान पर मुख्यमंत्री जी से श्वेत पत्र जारी करने की मांग करता हूँ ताकि उत्तराखंड की जनता को पता चल सके कि किन संपतियों पर विवाद था और समाधान के तहत हमने क्या पाया और क्या खोया।
जय भारत, जय उत्तराखंड।