मकर संक्रांति के स्वागत में मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार।
-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
भारत भूमि त्यौहारों की भूमि है।अपनी व्यस्त जिन्दगी में से कुछ समय अपने लिए निकाल कर पर्वों व त्यौहारों को मनाकर अपने जीवन में पुन: शक्ति का संचार करने वाले हिन्दू व उससे उपजे अन्य धर्मों की जनता मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व लोहड़ी का त्यौहार मनाता है।
हर्ष,उल्लास व कृतज्ञता का यह त्यौहार पंजाब में प्रमुखता से मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह हरियाणा, हिमाचल, कश्मीर, उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश में भी मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाये जाने के पीछे एक पौराणिक कहानी बताई जाती है। शिवजी की पत्नी सती बिना बुलाये अपने अपने पिता के यज्ञ में जाती हैं। जहां उन्हें पिता व बहनों से उपेक्षा व तिरस्कार मिलता है। वे इस को सहन करती हैं परन्तु जब उनके पिता दक्ष प्रजापति भगवान शिव की निन्दा करते हैं तो वे सहन नहीं कर पातीं और कुपित हो कर हवन कुण्ड में कूद कर अपने प्राण दे देती हैं। उन्हीं की याद में आग जला कर लोहड़ी मनायी जाती है।
एक दूसरा भौगोलिक कारण भी है कि यह दिवस मकरसंक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है उसका कारण यह है कि शीत से ठिठुरते उत्तर भारत में सूर्य के मकर रेखा पर संक्रमण होने के बाद सूर्य भूमध्य रेखा की ओर बढता है जिससे धीरे धीरे उत्तर भारत के मौसम में गर्माहट बढने लगती है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मकर संक्रमण(मकर संक्रांति) से सूर्य उत्तरायण हो जाता है और दक्षिणायन में जो धार्मिक कार्य नहीं हो पाते वे संपन्न होते हैं। उत्तरायण का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है। लोहड़ी मकर संक्रांति के स्वागत में मनायी जाती है।
लोहड़ी के दिन किसी खुले स्थान पर आग जला कर उसमें तिल,धान का लावा,मूंगफली,गुड़,रेवड़ी डाले जाते हैं। परिवार के सभी सदस्य आग के चारों ओर घूमते हैं और गीत गाते हैं और परस्पर लोहड़ी की बधाई देते हैं। इस अवसर पर गिद्दा व भंगड़ा नृत्य किया जाता है। नवविवाहित दम्पत्ति अपने सफल विवाह की कामना करते हैं। नवजात बच्चों के के दीर्घजीवन की कामना की जाती है।
पंजाब में इसे प्रमुखता से मनाने के की एक कथा है कहते हैं कि मुगल सम्राट अकबर के समय एक मुस्लिम व्यापारी पंजाब की लड़कियों को पकड़ कर बेच देता था।यहां तक कि वह घर में घुस कर भी सुन्दर लड़कियों को जबरदस्ती उठाकर ले जाता।उसका कोई विरोध नहीं कर पाता था।उसके बढते अत्याचार को रोकने के लिए दुल्लाभाटी नामक एक युवक आगे आया उसने व्यापारी को किसी प्रकार बंदी बना कर उसकी हत्या कर जनता को उसके अत्याचार से बचाया।कहते हैं कि उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करने हेतु लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है और उस समय ‘सुन्दर मुन्दरिए- हो,तेरा कौन बिचाराय-हो,दुल्ला भट्टी वाला- हो—।’
लोहड़ी मांगने पर न देने वालों पर मांगने वाले यह छींटाकशी करते हैं -‘हुक्के उते हुक्का यह घर भुक्का।’ लड़कियां ‘पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढेगा हाथी’ व गीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। वे ‘दे माई लोहड़ी तेरी जीवे जोड़ी’ व कंडा कंडा नी लकड़ियो कंडा सी’ गा कर बधाई भी देती हैं।।मन मुताबिक लोहड़ी न मिलनेपर लड़कियां नाराजगी व्यक्त करते गाती हैं ‘साढे पैरां हेट रोड़,सानूं छेती-छेती तोरा—।’ हिमाचल में लोहड़ी पर अंबिया पे अंबिया-अंबिया, लाल कणक जीमिया-अंबिया,गीत गाया जाता है। कई जगह शावा–शावा गीत भी गाया जाता है।