बिना किसी प्रत्याशा के परोपकार करते हैं जननायक।पढिए Janswar.com में।

बिना किसी प्रत्याशा के परोपकार करते हैं जननायक।

लेख – नागेन्द्र प्रसाद रतूडी

सौभाग्य से मैं एक ऐसे गांव में पैदा हुआ जिसके पड़ोस के गांव कांडी का एक लाल उस समय गढवाल का नेतृत्व कर रहा था और उत्तर प्रदेश की विधान सभा में आधे गढवाल का नेतृत्व कर रहा था। लैन्सीडौन विधान सभा क्षेत्र से वे विधायक रहे हैं स्व.जगमोहनसिंह नेगी उत्तरप्रदेश में कांग्रेस सरकार चन्द्रभानु गुप्त की सरकार में मंत्री रहे हैं।ठीक से याद नहीं पर वे 1965-66के आम चुनाव में एक साप्ताहिक समाचार पत्र के सम्पादक भैरव दत्त धूलिया से हार गये संयोग से कभी जगमोहन सिंह नेगी व भैरव दत्त धूलिया ने मिल कर कर्मभूमि की स्थापना की थी। जगमोहन सिंह नेगी इस हार के बाद कुछ समय बाद परलोक सिधार गये ।उसके बाज उनके सुपुत्र चन्द्रमोहन सिंह नेगी ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया वे प्रदेश में प्रवतीय विकास राज्यमंत्री भी रहे। यूपी में पर्वतीय विकास मंत्री का मतलब इन आठ पर्वतीय जिलों का मुखमंत्री होना। वे सांसद भी रहे।इसके अलावा इस लैंसडौन वि.स.निर्वाचन क्षेत्र से भारत सिंह रावत व सुरेन्द्र सिंह नेगी क्रमश:विधायक रहे। हमारी दृष्टि में तब यही जन नायक थे।
सन् 2000 में उत्तराखण्ड राज्य बना। राज्य बनने से पहले उत्तर प्रदेश की विधानसभा में जो उत्तराखण्ड के हितें के विरुद्ध संशोधन हो रहे थे वे एक प्रकार से उत्तराखण्ड के हितों पर डाका डालना था।उसका विरोध किसी भी तत्कालीन बड़े बड़े नाम वाले विधायकों नहीं ने किया पर एक विधायक ऐसा था जिसने इन संशोधनों का विरोध किया वह था मुन्नासिंह चौहान.वे शायद पहली बार विधायक बने थे। जहां तक याद आता है वे निर्दलीय विधायक थे यूपी वि.स.में।चूंकि मै राज्य आन्दोलकारी हूं इसलिए मुन्नासिंह चौहान का यह विरोध मन को छू गया और वह उत्तराखण्ड के हितैषी के रूप में दिल पर अंकित हो गये थे, एक हीरो के रूप में। राज्य बनने पर उनसे आशा थी कि वे मूल उत्तराखण्डियों के हितैषी बन कर उभरेंगे पर व जाने क्यों उनके तेवर ठंडे पड़ गये वे उत्तराखण्ड के नेता के बजाय केवल अपने ही क्षेत्र के नेता बन कर रह गये।शायद सत्तासुख के लिए। पहाड़ व पहाड़ियों की बात वे भूल गये।
वे लोग जो राजनीति में होते हुए भी लीक से हट कर जनहित का कोई अच्छा काम करे तो वही सच्चा जननायक होता है। मुख्यमंत्री के रूप में निशंक ने जाते जाते नये जिलों का सृजन किया तो वे उन क्षेत्रो के जन नायक बन कर उभरे। जब उनके उस कृत्य को मुख्यमंत्री खण्डूड़ी ने पलट दिया तो जनता की नजर में वे खलनायक बन कर उभरे और जनता में उनकी अच्छी छवि धूमिल हो गयी और वे चुनाव हार गये। निशंक आज केन्द्रीय मंत्री है।

अपने क्षेत्र का विकास करना विधायक,सांसद ,पार्षद का कार्य है वह तो उन्हें करना ही है।सच्चा नेता तो वह होता है जो जनता के पक्ष में हरदम खड़ा रहता है।उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में दिवाकर भट्ट का खैट पर्वत पर अनशन करना, तरुण हिमालय की स्थापना कर पहाड़ियों का संरक्षण करना,तरुण हिमालय के लिए रुड़की जेल जाना,त्रिवेन्द्र सिंह पंवार का जान हथेली पर लेकर संसद में राज्य निमार्ण हेतु पर्चे फेंकना उच्च श्रेणी का जन नायकत्व है। राज्य आन्दोलन के साथ -साथ यूकेडी द्वारा जन हित के लिए संघर्ष करना,वन नीति व खनन नीति का विरोध करना उसे जनता के बहुत निकट ले गया जिसका लाभ उन्होंने सन् 1994 के जनान्दोलन में उठाया।उनके जनहित कार्यों के लिए किया गया संघर्ष की शक्ति से यह राज्य आन्दोलन जन संघर्ष में बदल गया।जिसके कारण 15अगस्त सन्1996 में प्रधानमंत्री देवीगौड़ा को लालकिले की प्राचीर से उत्तराखण्ड राज्य बनाने की घोषणा करनी पड़ी।भले ही देश में राजनैतिक उठापटक के कारण यह कार्य बीजेपी के शासन काल में पूर्ण हुआ हो।
इसी प्रकार मुझे वे लोग जो जनता की भलाई के लिए हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जाते हैं चाहे वह जीतें या हारें । वे जन नायक की श्रेणी में दीखते हैं,वे पत्रकार जो जनहित के लिए सत्ता व शासन प्रशासन से टकराजाते हैं सच्चे अर्थ में जन नायक हैं मुझे रामनगर के पीसी जोशी भी जन नायक लगे जो कुमायुं व गढवाल को मिलाने वाले की प्राचीन कंडी मार्ग के लिए निरंतर संघर्ष करते आरहे हैं।वे इस कार्य के लिए हाईकोर्ट भी गये।ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके मैं नहीं जानता पर उन्होंने जनता के हितार्थ अपने धन से न्यायालय की शरण ली।
पुलिस का कार्य है जनता की रक्षा और शान्ति व्यवस्था करना। पर जब कोई अधिकारी अपनी सीमा से आगे जाकर जनहित का कार्य करता है तो वह भी जन नायक होता है।लॉक डाउन में आई जी गढवाल द्वारा पत्रकारों की रक्षा के लिए और उनको उनके कार्य को करने में सहयोग देने के लिएअपने अधीनस्थों को पत्र लिखना भी जन नायक का ही रूप है।जब कि यह कार्य मुख्यमंत्री या पुलिस महानिदेशक को करना चाहिए था। बिना सरकारी सहायता के इस महामारी में अपने संसाधनों से कार्य करते हुए वह पुलिस की तरह ही अपने कार्य को अंजाम देेता है।उसकी सूचनाओं से ही जनता व सरकार को वास्तविकता का पता चलता है।पत्रकार प्रेस विज्ञप्ति से आगे भी देखता है।वह परदे के पीछे की खबर भी लाता है ।
इसी प्रकार डंडा तो हर पुलिस वाला मार सकता है पर जो रोते हुए के आँसू पोंछे तो वही सच्चा जन नायक है।लॉक डाउन में कई पुलिस कर्मियों व अधिकारियों ने जननायक की भूमिका भी निभाई है।
इसी कड़ी में देहरादून के भाजपा नेता रविन्द्र जुगराण का नाम भी जोड़ रहा हूँ । रविन्द्र जुगराण समय-समय पर जनता के हित के लिए हाईकोर्ट जाते रहते हैं।रविन्द्र जुगराण को मैं प्रत्यक्ष तो मिला हूँ पर उनसे न तो मेरा परिचय है और न उनसे मेरी बात ही हो पायी है।वे देहरादून के शहीद स्मृति भवन में आन्दोलनकारियों की एक बैठक में वक्ता थे,मैं श्रोता। मैंने देहरादून में पहाड़ हितैषी जितने भी नेता देखे उनमें जुगराण मुझे उत्तराखण्ड के सच्चे हितैषी लगे जो न तो बयान वीर हैं पर उत्तराखंडियों के अधिकार के लिए हाईकोर्ट तक पहुंच जाते हैं अपनी ही पार्टी की सरकार की आलोचन करने से पीछे नहीं हटते ।ऐसे लोगों को तो विधानसभा में होना चाहिए था।इसी कड़ी मे अवधेश कौशल को भी जोड़ा जा सकता है।ऐसे ही जनहित कार्य करने के लिए तिमल्याणी गांव के समाजसेवी दर्शन सिंह रावत भी आते हैं जो जनहित कार्यों के लिए किसी भी अधिकारी से टकराने को तैयार रहते हैं आज उन्होंने अपने गांव मे सारी सुविधाएं जोड़ ली हैं।यह सारा कार्य वे अपने धन से करते हैं। अपने खर्चे पर जिला मुख्यालय व राज्य मुख्यालय पहुंचते हैं।जब कि वे कभी भी ग्राम स्तर पर प्रधान भी नहीं चुने गये।
हम उत्तराखण्डियों का दुर्भाग्य कि ऐसे लोगों को टिकट नहीं मिलता,वोट नहीं मिलता। रविन्द्र जुगराण जैसे लोग अगर विधानसभा में चले जायें तो निश्चित ही राज्य के मूल लोगों के हितों का संरक्षण ही होगा पर ऐसा होता नहीं है।

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