प्रदेश के नेता अगर सम्मान चाहते हैं तो सभी उपेक्षितों को एक कर नयी पार्टी बनाओ।
लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
(राज्यआन्दोलनकारी,स्वतंत्रपत्रकार )
उत्तराखण्ड में भारतीय जनतापार्टी की सरकार का मुखिया बदल खेल में जनता को उम्मीद थी कि कांग्रेस से भाजपा में आये श्री सतपाल महाराज आदि को सरकार का मुखिया बनाया जाएगा परन्तु उनकी व उनके समर्थकों को तब निराशा हुई जब इन मंत्रियों में से कोई भी मुखिया न बना कर एक कम चर्चित विधायक को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया।वर्तमान विधानसभा के गठन के समय भी उनको मुख्यमंत्री न बनाकर श्री त्रिवेन्द्रसिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया।जब पार्टी के शीर्ष नेताओं का मन श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से भर गया तो उन्हें दिल्ली बुला कर उनको त्यागपत्र देने को कहा गया।उनके त्यागपत्र देने के बाद उम्मीद थी कि इस बार श्री सतपाल महाराज को जरूर मौका मिलेगा पर उनके स्थान पर गढवाल सांसद श्री तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया।श्री तीरथ सिंह रावत के त्यागपत्र के बाद श्री महाराज का नाम मुख्यमंत्री की दौड़ मे सबसे आगे था पर मुख्यमंत्री बने श्री पुष्कर सिंह धामी। इसे दुर्भाग्य कहें या शीर्ष नेतृत्व का कांग्रेस से आये लोगों पर अविश्वास कि श्री महाराज इस बार भी मुख्यमंत्री बनने से रह गये।
श्री सतपाल महाराज ही नहीं डा.हरकसिंह रावत तो उत्तरप्रदेश के जमाने के भाजपाई हैं । वे उस समय से विधायकी कर रहे हैं वर्तमान भाजपा नेता तब स्कूलों में पढते रहे होंगे । वे उ.प्र.जैसे राज्य में राज्यमंत्री भी रह चुके हैं वरीयता के आधार पर मुख्यमंत्री बनने का अधिकार उनका बनता था पर उनकी दबंगता,दलबदल प्रवृत्ति और सत्ता पाते ही अपने हिसाब से सत्ता चलाने की प्रवृत्ति के कारण शायद भाजपा का आला कमान इन्हें सीएम के योग्य नहीं समझता ।
दरअसल राष्ट्रीय पार्टियों को प्रदेश का विकास करने वाला नेता नहीं चाहिए उन्हें तो ऐसा नेता चाहिए जो उनकी बात आंख मूंद कर मानता रहे।अगर पार्टी की केन्द्रीय सत्ता उन्हें प्रदेश के जनमानस के विरुद्ध निर्णय लेने को कहे तो उसे वह बात तुरंत मान लेनी चाहिए।अर्थात केन्द्रीय आलाकमान जैसा चाहे उसे “यससर” कहने वाला होना चाहिए।राजनीति में ‘यससर’ कहने वाले बहुत से नेता हैं।ऐसी स्थिति में ऊंचे कद के लोग व अपने लोगों की बात करने वाले नेता आलाकमान को कहाँ रास आते हैं।
श्री सतपाल महाराज ने राज्य बनाने के आन्दोलन में बड़ा सक्रिय सहयोग दिया।वे एक सच्चे आन्दोलनकारी हैं।वे आध्यात्मिक नेता भी हैं ।प्रदेश में राजनैतिक अस्थिरता देखते हुए और प्रदेश की राजनीति में नागपुर,दिल्ली का हस्तक्षेप देखते हु्ए,प्रदेश के युवाओं की बेरोजगारी देखते हुए उन्हें भाजपा व कांग्रेस,आम आदमी पार्टी के उन सभी नेताओं जिनको इन पार्टियों ने हाशिये पर डाल दिया है तथा उन नेताओं जो किसी दल में नहीं हैं पर जिनके दिल में उत्तराखण्ड के लिए दर्द है ,इस प्रदेश के विकास के लिए तड़प है,को साथ लेकर एक दल बना कर राज्य की सेवा करने के लिए जनादेश लेना चाहिए। इस राज्य का भला राष्ट्रीय दल नहीं कर सकते।इस राज्य का भला यहां के लोग ही कर सकते हैं।
अगर ये नेता इस राज्य और इसके निवासियों का भला चाहते हैं और चाहते हैं कि भविष्य के इतिहास में इनका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाय तो इनको यह करना पड़ेगा।राष्ट्रीय नेताओं की दासता और उनके थोपे निर्णयों पर चलने की लाचारी को छोड़ कर ये स्वयं निर्णय लेने के स्थान पर आयें तो उनका व इस पहाड़ी प्रदेश का भी भला होगा।जिस दिन ऐसा हो जाएगा उस दिन हर उत्तराखण्डी को इनपर गर्व होगा चाहे व वह पहाड़ी मूल को हो या मैदानी मूल का। अगर हमारे नेता अपनी राजनीति सफल बनाने के साथ-साथ और प्रदेश का सच्चा विकास करना चाहते हैं तो आजनहीं तो कल उन्हें यह सब करना ही होगा, नहीं तो हाशिये पर रहना होगा और लोग यह कहावत कहते रहेंगे कि चौबे जी छब्बे बनने चले थे,दुबे बनकर रह गये।गढवाली में कहें तो-“तिमल क तिमल खत्यैन,नांग क नांग दिख्याय।”