पुलिस की अनदेखी से ही पनपता है विकास दुबे सा दुर्दांत अपराधी।पढिएJanswar.com में

(फोटो- अन्तर्जाल से साभार)

पुलिस की अनदेखी से ही पनपता है विकास दुबे सा दुर्दांत अपराधी।

नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी स्वतंत्र पत्रकार

उत्तर प्रदेश कानपुर के चौबेपुर थाना के बिकरू गाँव में तेरह पुलिस वालों पर कहर बरपाने ​​वाले 60 एफआईआर वाले बाहुबली विकास दुबे पर पुलिस ने अगर समय पर अंकुश लगा दिया तो आज उसे अपने आठ जवानों सहित, एक सीओ स्तर का अधिकारी भी था, नहीं गंवाना पड़ता है और पांच युवा अस्पतालों में नहीं पड़ते हैं। यह उन तमाम पुलिस वालों को एक शोरूम है जो अपने स्वार्थ के कारण या अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर ऐसे दुर्दांत अपराधियों के अपराधों की अनदेखी करते हैं इसका फल जनता को भुगतना ही पड़ता है पर कभी कभी पुलिस को भी भुगतना पड़ता है। काशन कि ऐसी अपराधी अपने को कानून व्यवस्था से ऊपर समझने लगता है और अपनी समानान्तर सरकार चलाने जा रही है।
ऐसे अपराधी को यह मालूम होता है कि पहले तो पुलिस उसको पकड़ने का साहस नहीं करेगी अगर किसी सिरफिरे अधिकारी ने पकड़ भी लिया तो उसके राजनीतिक आका उसे थाने से ही छुड़वा देंगे। अगर तब भी वह नहीं माना और उसने कोर्ट मे पोस्ट कर ही दिया तो उसके खिलाफ गवाही देने का साहस कौन करेगा। भारत में विदेशों की तरह गवाह सुरक्षा कानून अगर हो भी तो, गवाहों को सुरक्षा दी नहीं जाती। गवाहों का बयान खुली अदालत में लिया गया है जिससे उनकी पहचान उजागर हो जाती है।इससे भारत में लोग गवाही देने से कतराते बच्चों।दूसरी तरफ ऐसे लोगों के खिलाफ गवाही देने का साहस अगर कोई कर भी ले ते अपराधी के पक्ष के पुलिस के साथ उसकी। मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं।सामान्य पुलिस भी गवाहों के प्रति अपमानजनक व्यवहार ही अपनाती है। बस इसी से अपराधी अपराध दर अपराध आगे और आगे बढ़ता जाता है।
अगर यह सत्य है कि उस पर 60 एफआईआर हैं तो दाद देनी पड़गी कानून और न्याय व्यवस्था को जो इतना निरीक्षणह और लाचार है कि ऐसे दुर्दांत हत्यारे को जिस पर एक राज्यमंत्री को थानेे के अंदर भून देने का आरोप है, खुली छूट दी गई है। दशक में उत्तराखण्ड में एक ऐसा ही बाहुबली हुआ था जिसके आगे पुलिस बौनी पड़ कर सलाम ठोकती थी।जिसने मद्यनिषेध क्षेत्र घोषित पहाड़ों में अपने आतंक व राजनीतिक संरक्षण के कारण शराब की नदियां बहा दी थी, अगर वह अपने ही साथियों के धोके का शिकार न होता। तो आज शायद वह या उसकी खास सिपहसलर उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री भी बन जाता है तो कोई बड़ी बात नहीं थी। एक पत्रकार की हत्या के सिलसिले में सीबीआई जांच में भी वह बरी हो गई थी।
जान से मारने की धमकी पर हुई एफआईआर के लिए हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की गिरफ्तारी के लिए भोर में पुलिस दल की सूचना विकास को कैसे शुरू हुई यह जांच का विषय होना चाहिए। निश्चित ही पुलिस महकमें के किसी कर्मी का ही काम होगा। यह सूचना उसे इतनी पहले मिल गयी थी कि उसे अपना व्यूह रचने का समय मिल गया।एसटीएफ ने इस संदेह के आधार पर चौबेपुर के निलंबित एसओ विनय तिवारी को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है। है। न्यूज़ों के अनुसार उस समय उस गांव की बिजली काट दी गयी थी जो कि विकास के समानान्तर सत्ता का प्रतीक है। हालांकि प्रशासन ने विकास दुबे कार्ट्स हाउस हाउस ढहा दिया है पर मेरा मानना ​​है कि सरकार को ऐसे रिसॉर्ट्स में सिग्मा हाउस बनाने की ओवरड्राफ्टिंग चाहिए।
तेरह लोगों की पुलिस टीम पर मारक हमला करना हर किसी के बस की बात नहीं चाहे वह गुण्डा ही क्यों न हो। निश्चित रूप से उसके ऊपर ऐसे बड़े राजनीतिक पहुँच वाले लोगों का हाथ है जिन पर उसे विश्वास है कि वे उसे बचाएंगे। शायद ले भी ले।
विकास दुबे इस हत्याकांड के बाद फरार पर कहां है? क्या उ.प्र.का खुफिया तंत्र इतना निर्बल हो गया है कि वह विकास दुबे को नहीं देख पा रही है। इसी खुफिया तंत्र की नाकामी इस बात से प्रकट हो गयी है कि उसे पुलिस के खिलाफ रचने वाली व्यूह रचना का आभास तक नहीं किया गया।
अब देखना यह है कि पुलिस अपने सहयोगियों की सामूहिक निर्मम हत्या का बदला ले पाती है या नहीं।

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