पार्टी व सरकार में अपनी महत्ता स्वीकार करवानें में सफल रहे डा.हरक सिंह रावत।Janswar.com

पार्टी व सरकार में अपनी महत्ता स्वीकार करवानें में सफल रहे डा.हरक सिंह रावत।

– नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
              उत्तराखण्ड के राजनीतिक गलियारों में एक नाटकीय घटनाक्रम बड़ी तेजी से घटित हुआ।जिसके नायक बने वनएवं विद्युतमंत्री डा.हरक सिंह रावत ।घटनाक्रम इस प्रकार घटित हुआ।वन एवं विद्युत मंत्री डा. हरकसिंह रावत 24 दिसम्बर को कैबिनेट की बैठक में सम्मिलित होते हैं ।बैठक में उन्होंने आम आदमी पार्टी के मुफ्त बिजली देने के लोक लुभावनी घोषणा के प्रत्युत्तर में वे जनता को फ्री बिजली देने की अपनी घोषणा को कैबिनेट में रखते हैं।जिसपर तीखी बहस होती है।डा.रावत ने इससे व्यथित होकर कैबिनेट से यह कह कर कि वे कैबिनेट छोड़ देते हैं कि वे  त्यागपत्र दे रहे हैं। सारा घटनाक्रम फिल्मी अंदाज में घटित हो जाता है।डा. रावत इस बात से भी व्यथित थे कि उनके चुनाव क्षेत्र में पिछले पांच सालों से मेडिकल कॉलेज खोलने की उनकी मांग को भी अनसुना कर दिया गया है।
                     डा.रावत के त्यागपत्र का समाचार इलैक्ट्रानिक व सोशल मीडिया में तैरने लगा।कई चैनलों से यह समाचार प्रसारित होने लगा कि वनमंत्री ने त्यागपत्र दे दिया।उनके साथ ही रायपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक उमेश शर्मा काऊ ने भी विधायकी से त्यागपत्र दे दिया।रात को प्रसारित इस समाचार का न तो वनमंत्री ने न विधायक काऊ ने,न सरकार ने और न ही पार्टी ने पुष्टि की न खण्डन किया। रात भर मनाने का दौर चलता रहा होगा सुबह पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक ने मीडिया के सामने आकर कहा कि ऑल इज वेल,किसी ने त्यागपत्र नहीं दिया यह सब मीडिया की उपज है।स्वास्थ्यमंत्री धनसिंह रावत ने कहा कि पार्टी में सब चकाचक है।
             सरकार की ओर से यह  समाचार आया कि कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज स्वीकृत हो गया और मुख्यमंत्री ने उसके लिए 5 करोड़ रुपये अवमुक्त कर दिए हैं।विधायक उमेश शर्मा काऊ ने भी मीडिया के सामने उपस्थित होकर बयान दिया कि डा.रावत अब मान गये हैं।
            इस उच्च स्तरीय त्यागपत्र ड्रामे को बहुत सोच समझकर सही समय पर  ऐन चुनाव पूर्व खेलने में सबसे अधिक फायदा डा.रावत का ही है। सरकार व पार्टी उनको मनानेपर जुट गयी है।अगर उनका इस्तीफा मंजूर होता तो वे शहीदी अंदाज में अपने चुनाव क्षेत्र में जाते और कहते कि देखिए आप लोगों के लिए मैंने त्यागपत्र दे दिया।अब जब सरकार ने उनकी बात मान ली है तो वे बहुत मजबूती से उभरेंगे।वे अपने लोगों को पार्टी से टिकट दिलाने में सक्षम होंगे।उनकी बात हर स्तर पर सुनी जाएगी।
डा.रावत का यह कहना कि उनकी बात नही सुनी जा रही है किसी हद तक सही है।क्योंकि जैसे ही उनके त्यागपत्र की खबर मीडिया में प्रसारित हुई कोटद्वार के लिए मेडिकल कॉलेज की स्वीकृत हो गया तथा उसके लिए 5 करोड़ रुपये भी स्वीकृत हो गये हैं।यह पहले भी हो सकता था।इससे यह लगता है कि उत्तराखण्ड में बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं है।
           वनमंत्री डा.रावत का राजनैतिक इतिहास देखें तो यह पाते हैं कि उन्हें दल बदलने में कोई देर नहीं लगती। वे सबसे पहले भाजपा से उत्तरप्रदेश में विधायक बने। राज्यमंत्री भी रहे।बाद में उन्होंने भाजपा छोड़ दी और बसपा की सदस्यता ले ली। बसपा में रह कर उन्होंने मुख्यमंत्री  मायावती से रुद्रप्रयाग  जिले की घोषणा करवायी। कुछ समय बाद बसपा छोड़कर वे कांग्रेस में आ गये।राज्य बनने के बाद वे पं.नारायणदत्त तिवारी की कैबिनेट में खाद्यमंत्री बने।पर जेनी कांड में नाम आने से उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। बाद में वे न्यायालय से निर्दोष साबित हुए।सन् 2012 में कांग्रेस के विजय बहुगुणा की सरकार बनने पर वे कैबिनेट मंत्री बनाये गये।विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद वे हरीश रावत सरकार में भी यथावत् कैबिनेट मंत्री रहे परन्तु कुछ समय बाद विजय बहुगुणा सहित नौ असंतुष्ट विधायकों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली, जिनमें डा हरकसिंह रावत भी थे।
          सन् 1917 में भाजपा के त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सरकार में  वे कैबिनेट मंत्री बने।त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद  2021 इसी पार्टी के तीरथसिंह रावत मुख्यमंत्री बने।उनके अल्पकालिक कार्यकाल  व उनके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कैबिनेट में डा.रावत वनमंत्री व विद्युतमंत्री बने।
           राजनीति में बहुत वरिष्ठ होने कै बावजूद जिस प्रकार पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी मुख्यमंत्री नहीं बन पाये उसी प्रकार डा.हरक सिंह रावत भी मुख्यमंत्री दौड़ में हमेशा पिछड़ते रहे।राजनीति में उनसे कनिष्ठ मुख्यमंत्री बनते रहे।मुख्यमंत्री न बन पाने की यह टीस भी उनके मन में रही होगी।
        डा.रावत के मौखिक त्यागपत्र देने की घोषणा के बाद अटकल लगाई जा रही थी कि वे कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।उत्तराखण्ड के अब तक के चुनाव परिणामों के अनुसार यहां की जनता एक बार बीजेपी व एक बार कांग्रेस को सत्ता सौंपती है के अनुसार अगर इस बार भी जनता ने यही दोहराया तो आगामी चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने की संभावना  देखते हुए और प्रदेश के मुखिया बनाये जाने के के आश्वासन पर ही वे कांग्रेस मे शामिल हो सकते थे। यह भी संभव थी कि वे अपनी पार्टी बना लेते या किसी क्षेत्रीय पार्टी को अपना लेते। राजनाति में कुछ भी असंभव नहीं।

            फिलहाल इस हाईवोल्टेज ड्रामे का डा.रावत के मुख्यमंत्री के साथ डिनर करने के बाद पटाक्षेप हो गया है।

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