नहीं रहे मेरे चाचा पूर्व प्रधानाचार्य आर डी रतूड़ी।-www.janswar.com/

नहीं रहे मेरे चाचा पूर्व प्रधानाचार्य आर डी रतूड़ी ।
  –  नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
यमकेश्वर विधानसभा के अंतर्गत दयाकाटल में 13 दिसम्बर 1928  को पंडित ईश्वरीदत्त रतूड़ी(मेरे बड़े दादा जी) के दूसरे बेटे के रूप में जन्मे श्री रुपेंद्र दत्त रतूडी जी आज हमारे बीच नही रहे हैं उनके निधन से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर छा गयी है। उच्च व्यक्तित्व के धनी श्री रतूडी जी एक शिक्षाविद थे। वे  96 वर्ष के थे।उनका अन्तिम संस्कार आज शवदाह गृह खड़खड़ी हरिद्वार में किया गया।
उन्होंने अपना कैरियर बी.ए.बी.टी.कर के श्रद्धानन्द इंटर कॉलेज भृगुखाल में एलटी अध्यापक के रूप में प्रारम्भ किया।तत्पश्चात समाजशास्त्र में एम ए करने के बाद वे प्रवक्ता समाजशास्त्र के रूप में प्रोन्नत  हुए। और वरिष्ठता के आधार पर वे उप प्रधानाचार्य रहे सन् 1972में वे प्रधानाचार्य बने।उनके प्रधानाचार्य  बनने के लगभग पांच वर्ष बाद  विद्यालय का राजकीयकरण हुआ और इसका नाम राजकीय इंटर कॉलेज भृगुखाल हुआ। कई साल प्रधानाचार्य के पद पर रह कर इस विद्यालय का सर्वांगींण विकास करने बाद तत्कालीन राजनैतिक परस्थितियों से तालमेल न होने कारण और हेमवती नन्दन बहुगुणा की निकटता के कारण  उनका स्थानांतरण राजकीय इंटर कालेज नैनी नौटी में हो गया।वहां की मूलभूत आवश्यकताओं  को समय समय पर पूरा करवाना ओर छात्रों का मार्गदर्शन करना उनकी पहली प्राथमिकता रही है।
1988 में सेवानिवृत्त होकर कुछ वर्ष गाँव मे रहकर उसके बाद देहरादून में अपने बेटे बहुओं के पास अपनी धर्मपत्नी के सहित आकर रहने लगे, उन्होंने अपने गाँव मे एक  सुख सुविधाओं से भरा एक घर बनवाया था जो कि बहुत ही अच्छी लोकेशन पर बना हुआ है।
घर की देखभाल के लिए हर महीने गांव आना कुछ दिन रहकर देहरादून आना जाना लगा रहता था। एक दो साल से अस्वस्थ होने के कारण अब गांव नही आ पा रहे थे।
श्रद्धानन्द इंटर कॉलेज भृगुखाल में 1975 में मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी को अपने व्यक्तिगत प्रभाव से बुलाकर इस स्कूल को राजकीय मान्यता दिलवाने में उनका बड़ा सहयोग रहा।
उनकी कदकाठी से उनका व्यक्तित्व झलकता था हालांकि पहली नजर में हर कोई उनके कदकाठी देखकर थोड़ा झेंपकर समझो या डरकर सामने खड़े भी होने की हिम्मत नही करते थे। लेकिन उनका व्यवहार इतना सरल व अपनत्व से भरा रहता था। कालेज में बेंत हर समय उनके हाथ में रहते हुए भी शायद ही किसी छात्र को उन्होंने उस बेंत से मारा हो।
उनके तीन बेटे व तीन बेटियां है जो कि देहरादून में ही निवासरत है, बड़े बेटा गढवाल मंडल विकास निगम से अधिकारी के रुप में सेवा निवृत्त हैं।दूसरा बेटा सेंट थामस देहरादून में अध्यापन  करते हैं।तीसरे बेटे भी श्री गुरुरामराय  इन्टर कालेज कोटद्वार  में प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत है।बेटियाँ भी शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत है।
ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।