दिल्ली धमाका व लाल किला कांड :सुरक्षा ऐजेंसियों की असफलता।पढिए Janswar.Com में।

दिल्ली धमाका व लाल किला कांड :सुरक्षा ऐजेंसियों की असफलता।

लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी

29 जनवरी को  जब देश के प्रमुख नेता लुटियन जोन में  72वें गणतंत्र दिवस समारोह का समापन कार्यक्रम (बीटिंग रीट्रीट)मना रहे थे तो यहां से कुछ महज एक डेढ किमी दूरी पर अब्दुल कलाम  रोड़ व जिंदल हाउस के मध्य स्थित  इजराइल के दूतावास के बाहर पांच बजकर पांच मिनट पर  हुए कम तीव्रता काआईईडी विस्फोट हुआ जिससे जहां  दिल्ली की सुरक्षा पोल खुली है वहीं देश की जनता की गाढी कमाई पर चलने वाले तथा  ऊंचा-ऊंचा वेतन लेने वाले दिल्ली पुलिस व आंतरिक सुरक्षा में तैनात खुफिया ऐजेंसियों के अधिकारियों  व कर्मचारियों के नाकारापन की पोल खुलती नजर आती है।यह इलाका अति सुरक्षित क्षेत्र में आता है।धमाके बाद भले ही देश की तमाम सुरक्षा ऐजेंसियां सतर्क हो गयी हों पर उन्हें चुनौती देने वाले तत्वों ने यह दिखा दिया कि सुरक्षा में लापरवाही  का फायदा कैसे उठाया जाता है। राहत की बात यह है कि अति सुरक्षित क्षेत्र में हुए इस धमाके से यद्यपि कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ पर इससे यह साबित होता है कि यह देश की राजधानी की सुरक्षा को एक चुनौती है और अपराधी तत्व उस को धता बता सकने में सक्षम हैं।

       दिल्ली में गणतंत्र के दिन किसान आन्दोलन के नाम पर लाल किले की बुुर्जों पर झंडा फहराने,पुलिस को पर हमला करने की घटना को न रोक पाना जहां किसान आदोंलन के नेताओं की असफलता है वहीं केन्द्र सरकार दिल्ली पुलिस व खुफिया तंत्रों की असफलता इस बातका सबूत है कि देश की आंतरिक सुरक्षा में कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमी जरूर है।इसी कड़ी मे 29 जनवरी को इजराइली दूतावास के सामने हुए धमाके ने तो दिल्ली की सुरक्षा की पोल खोल के रख दी हैै।

   परेड के नाम पर लाल किले में  किसानों के घुसने को दिल्ली पुलिस केवल यह कह कर नहीं टाल सकती है कि किसानों ने अपना वायदा तोड़ा है और न ही किसान नेता यह कह कर बच सकते हैं कि जिन लोगों ने पुलिस पर ट्रैक्टर चढाने की कोशिश की और जिन लोगों ने लाल किले पर आतंक मचाया है वे उपद्रवी किसान नहीं थे, न ही दिल्ली पुलिस यह कह कर बच सकती है कि उसे यह उम्मीद नहीं थी कि किसान लाल किले पर हमला कर सकता है।जहां किसान नेताओं को लाल किले पर किसानों के हमले की जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी वहीं दिल्ली पुलिस को जिसे लालकिले पर की व सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए था को अपनी कार्यशैली पर आत्म मंथन करना चाहिए।आन्दोलन व किसानों के नाम पर अराजकता को सहन नहीं किया जाना चाहिए। जो  पैरा मिलेट्री फोर्सदिल्ली पुलिस ने बाद में बुलायी वह उसे पहले ही बुला देनी चाहिए थी।उपद्रवी किसानों के सम्मुख दिल्ली पुलिस का आत्म समर्पण करना उसकी निरीहता को ही प्रकट करता है।

 इसमें कोई शक नहीं कि जहां इस आन्दोलन के पीछे विपक्षी राजनैतिक दलों और तथा कथित बुद्धिजीवियों व समाजसेवियों का हाथ है  ये राजनैतिक पार्टियां व बुद्धिजीवी दल 2014 से भाजपा सरकार बनने के बाद भाजपा सरकार की नीतियों  को नहीं पचा पा रहे हैं। जिसके विरोध में वह भारत की जनता के चुने प्रधानमंत्री  को तक अपशब्द कहने में नहीं चूकते। यह बहुसंख्यक मतदाताओं जिन्होंने अपने मत से भाजपा सरकार बनायी  का अपमान है। ऐसे अराजक तत्वों के लिए सत्ता व सत्ता से लाभ ही स्वीकार्य हैं उन्हें जनता संविधान व कानून से कोई मतलब नहीं वे आन्दोलन के नाम पर अराजकता फैलाने में व सरकार को परेशान करने में विश्वास रखते हैं।

       जिन तीन किसान कानूनों के विरोध में वर्तमान किसान आन्दोलन  चल रहा है उसमें सरकार ने न्यूनतम मूल्य को कानूनी स्वरूप नहीं दिया है न ही कानून में यह व्यवस्था की है कि कंपनियां किसान की उपज न्यूनतम मूल्य पर खरीदने को बाध्य होंगी।और न यह निर्धारित किया है कि कंपनियां उस उपज की वस्तुओं से अधिकतम कितना प्रतिशत लाभ ले सकेंगी। इस कानून के बनने से पहले से भी यही स्थिति है दस रुपये किलो आलू लेकर कंपनियां अपने चिप्स व अन्य उत्पाद  किस मूल्य पर बेचती हैं यह सर्व विदित है।सरकार को अपनी हठधर्मिता छोड़ कर जहां किसानों को न्यूनतम मूल्य मिले, की कानूनी गारंटी देनी चाहिए वहीं सरकार को उपभोत्ता हितों का ध्यान रख कर अधिकतम लाभ भी तय करना चाहिए ताकि जनता उद्योगपतियों की लूट का शिकार न हो।

 सरकारें किसी भी आन्दोलन को या तो सख्ती से कुचलती हैं या बातचीत का नाटक कर आन्दोलनकारियों को थका कर आन्दोलन वापस लेने को मजबूर करती है।यह प्रक्रिया अन्ना आन्दोलन के समय से प्रारम्भ हुई। वर्तमान सरकार उसी  लीक पर चल रही है। जबकि लोकतंत्र के नाम पर बनी सरकार को  आन्दोलनकारियों की बात को समझना और जनहित में फैसला लेना इसे लोकप्रिय बना देता है वहीं आन्दोलनकारियों का सरकार को झुकाने की जिद पर अड़े रहने से सरकार को आन्दोलन को कुचलने का मौका देना होता है।

दिल्ली पुलिस व सुरक्षा ऐजेंसियों को और सतर्क होने की आवश्यकता है विशेषकर खुफियातंत्र के और मजहूत बनाने की आवश्यकता है ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो सके।

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