लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी

थलनदी गेंद मेले में पट्टी उदयपुर के गिंदेर अपनी ओर गेंद ले जाने में सफल रहे जिससे इस वर्ष उनकी विजय हुई।
प्राचीनकाल से ही उदयपुर अजमीर पट्टियों के मध्य खेले जाने वाले इस गेंद के खेल में जो उदयपुर-अजमीर पट्टियों के मध्य खेले जाने वाले इस खेल में खिलाड़ियों की कोई निर्धारित सीमा नहीं होती है। खेलने के लिए गेंद का निर्माण ग्राम नाली के लोग बनाते हैं ।मकरसंक्राति के दिन अजमीर के लोग अजमीर के ईष्ट देवता महाब का झंडा व ढोल दमाऊं लेकर थलनदी पहुंच कर नाचते कूदते गेंद उछाल कर उदयपुर के लोगों को लुभाते हैं।इधर उदयपुर के लोग भी अपने ढोल दमांऊ की धुन पर नाचते हैं।कुछ समय के बाद वे गेंद छीनने के लिए अजमीर के दल में कूद पड़ते हैं। जिसे गेंद रलना कहते हैं।अजमीर वालों की कोशिश होती है कि गेंद उदयपुर के लोगों के हाथ न लगे।इस छीना झपटी में गेंद वाले लोग नीचे लेट जाते हैं और गेंद अपने पेट के नीचे दबा लेते हैं। इसे गेंद पड़ना कहते हैं। गेंद खेलने वालों को गिंदेर कहते हैं।कभी उदयपुर के पाले में तो कभी अजमेर के गिंदेर कभी उदयपुर के पाले में तो कभी अजमीर के पाले में जाती है।जिस पट्टी के गिंदेर अपने पाले में निर्धारित स्थान पर गेंद ले जाते हैं उस पट्टी की जीत मानी जाती है। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि कोई गिंदेर अपने पाले की विजय सीमा के निकट होते हैं पर तभी दूसरी पट्टी के गिंदेर गेंद छीन कर एक दूसरे गिंदेर की सहायता से गेंद अपनी विजय सीमा तक ले आते हैं और उस पट्टी की विजय हो जाती है। जिसे स्थानीय भाषा में होल कहते हैं। इस खेल में चार पांच घंटे लगते हैं।याने गेंद रलने से होल होने तक चार से पांच घण्टे लगते हैं। इस वर्ष भी लगभग दो बजे गेंद रली और लगभग 6बजे उदयपुर वाले अपने पाले में गेंद ले जाने में सफल रहे। यह खेल किसी नाप या पैमाने मैदान में नहीं खेला जाता है यह लगभग 300×500 मीटर प्राकृतिक मैदान में होता है।


