जब मैं 02अक्तूबर को देहरादून के मुख्य नगर आयुक्त से भिड़ बैठा।
• नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी राज्य आन्दोलनकारी
बात सन् २०१४ या २०१५ की है।मैं यूकेडी के श्री त्रिवेंन्द्र पंवार धड़े का केन्द्रीय प्रेस प्रवक्ता था। केन्द्र में मोदी जी आ चुके थे।भारत में स्वच्छता आन्दोलन छिड़ा हुआ था। मेरा राजनीति में आने का उद्देश्य केवल इतना ही था कि यूकेडी के दोनों तीनों धड़ों को एक किया जा सके। हमारे धड़े के मुख्य महासचिव पत्रकार शशि भूषण भट्ट जी थे जो चम्बा में रहते थे,बहुत सज्जन व शांन्त। उन्होंने शायद श्री राजेन टोडरिया के साथ अमर उजाला में भी कार्य किया था। राजेन टोडरिया अमर उजाला में मेरे बाद आये थे। मैं १९८७ यमकेश्वर से में अमरउजाला में आया था वे सन् १९८८ या १९८९ में अमर उजाला के लिए टिहरी से बाद में नयी टिहरी से कार्य करते थे।
हमारे कई महासचिवों में से एक महासचिव थे दैनिक जन लहर के स्वामी श्री मनमोहन लखेड़ा। प्रेम कॉम्पलेक्स धर्मपुर की तीसरी मंजिल पर दो कमरों में हमारा कार्यालय हुआ करता था।
श्री हरीश रावत मुख्यमंत्री थे।सरकार का मुख्य कार्यक्रम गांधी पार्क में था। हमने शहीदों को न्याय दिलवाने के लिए वहां पर प्रदर्शन करने का निश्चय किया। पार्क के अन्दर प्रवेश द्वार पर के निकट हमने दरी बिछायी अपने बैनर पोस्टर लगा दिए और लगभग १५-२० लोग श्रीं पंवार के नेतृत्व में वहां बैठ गये।हमारे बैठने के बाद वहां पर एक पुलिस की टुकड़ी एक अधिकारी के नेतृत्व में आयी ।अधिकारी ने धरना हटाने को कहा।हमारे नेताओं विरोध किया अन्त में यह तय हुआ कि हम लोग वहां पर बैनर पोस्टर नहीं लगाएंगे।हमारे नेताओं ने उनकी शर्त मान ली।
धीरे धीरे मुख्यमंत्री के आगमन का समय निकट आता गया।अचानक एक सूट बूट पहने टाई लगाए एक युवक वहां आया और वहां से हटने को कहने लगा। मैं उन्हें जानता नहीं था।वे हमारी दरी खींचने लगे।इस पर मैंने उनसे कहा कि यहां बैठने की अनुमति हमने पुलिस से ले ली है।उन्होंने कहा कि नहीं यहाँ कोई नहीं बैठेगा। मैं उन्हे पुलिस का बड़ा अधिकारी समझ रहा था। मेरे सभी साथी उठ गये पर मैं बैठा रहा। उन्होने मुझे भी उठने को कहा पर मैं एक तो पत्रकार ऊपर से राज्य आन्दोलनकारी मैॆं अकड़ गया। मैंने कहा मै राज्य आन्दोलनकारी हूँ ।राज्य निर्माता।यहां बैठना मेरा अधिकार है। आप अधिकारी हैं अगर आपको मेरा यहां बैठना बर्दाश्त नहीं तो गोली मार दीजिए। आपकी पुलिस ने आज ही के दिन१९९४ को हमारे आन्दोलनकारियों को गोलियों से भूना था। मुझे भी गोली मार दीजिए।वह थोड़ा नम्रता से बोले आप लोग कार्यक्रम में आईए।इस पर मैंने कहा आपने हमें विधिवत् निमंत्रण नहीं भेजा है। याद रखिए हम आन्दोलन नहीं करते तो आज यह राज्य नहीं होता। मेरे शब्दों का असर हुआ।और वह दरी छोड़ कर चले गये।शायद उन्होंने सोचा होगा कि कौन लगे इनसे।उनके जाने के बाद मैंने अपने साथियों से पूछा कि वे उठ क्यों गये तो उन्होंने बताया कि ये मुख्य नगर आयुक्त श्री हरक सिंह रावत हैं।हमारा धरना कार्यक्रम स्थगित हो गया एक प्रकार से असफल।
लगभग एक डेढ वर्ष बाद जब मैं जिला चिह्नीकरण समिति पौड़ी गढवाल के रूप में डीएम की अध्यक्षता वाली बैठक में सम्मिलित होकर श्री धीरेन्द्र प्रताप जो तत्समय राज्य आन्दोलनकारी कल्याण परिषद के उपाध्यक्ष थे के साथ वापस लौटते हुए सर्किट हाउस पौडी में खाना खाने अन्दर जा रहा था तो अपरआयुक्त गढवाल श्री हरक सिंह रावत से मुलाकात हो गयी।नमस्कारों के आदान प्रदानों के बाद वे मुझसे बोले कि आपको कहीं देखा है। मै हंसते हुए बोला -सर आपकी और मेरी मुलाकात देहरादून के गांधी पार्क में हुई थी जब आपने २ अक्तूबर को धरने से जबरदस्ती उठाया था। गजब की बात कि उन्हें याद आगया और बोले जब आपने कहा था कि गोली मार दो। हाँ याद आया।कह कर हँसते हुए अपनी गाड़ी में बैठ कर चले गये।
हर दो अक्तूबर को मुझे दो बातें याद आती हैं पहली मुज्जफ्फर नगर के रामपुर तिराहे पर प्रशासन द्वारा निहत्थे आन्दोलनकारियों पर अत्याचार व गोली मार कर हत्या।व श्री हरकसिंह रावत मुख्यनगर आयुक्त से भिड़ना। मन दुखी हो जाता है यह सोच कर कि देश की सर्वोच्च जांच ऐजेंसी सीबीआई भी ढाई दशक बीतने पर भी हमारे शहीदों को न्याय नहीं दिला पायी है। शहीदोंको श्रद्धांजलि देते हुए मुंह से यही निकलता है “शहीदो हम शर्मिंदा हैं तुम्हारे कातिल जिंदा हैं।”