छ: प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया स्व.रामविलास पासवान ने।
लेख- नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
राज्य मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार
केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री स्व.रामविलास पासवान ने 74 वर्ष की आयु में इस संसार 08 अक्तूबर को अंतिम सांस लेकर विदा ली। वे सचमुच प्रतिभाओं के धनी थे।बुद्धि चातुर्य उनमें कूट कूट कर भरा था। तभी तो वे दशकों तक केन्द्रीय राजनीति में छाये रहे। बिहार पुलिस में डीएसपी के पद पर चुनाव होने व एमएलए के चुनाव का परिणाम लगभग साथ साथ आने के पर उन्होंने अपना कैरियर राजनीति चुना।उनका यह निर्णय बिल्कुल सही निकला उन्होंने राजनीति में आकर एक इतिहास बनाया।
श्री रामविलास पासवान का जन्म 05 जुलाई 1946 को बिहार राज्य में खगड़िया जिले के शहर बन्नी में एक दलित परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम स्व.जामुन पासवान तथा माता का नाम स्व श्रीमती सीया देवी था।
इनकी शिक्षा कोसी कॉलेज पिल्खी और पटना विश्व विद्यालय से हुई।जहां से उन्होंने लॉ स्नातक व एम.ए.किया।
इनकी मृत्यु केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रहते हुए 08 अक्तूबर 2020 को लम्बी बीमारी के कारण दिल्ली में हुई।
सन् 1960 में इन्होंने राजकुमारी देवी से विवाह किया।राजकुमारी देवी से ऊषा पासवान व आशा पासवान दो बेटियां हैं।जिसको इन्होंने 1981 में तलाक दे दिया।पुन:इन्होंने 1983 में एक पंजाबी एयर होस्टेस रीना शर्मा से विवाह किया।इनके रीना शर्मा से चिराग पासवान बेटा व एक बेटी हैं।
इन्होंने अपने जीवन में लो.स.के 11 चुनाव लड़े जिनमें यह केवल दो बार हारे हैं।इन्होंने वीपीसिंह,एचडी गौड़ा,आईके गुजराल,ए.बी.बाजपेयी एम.एम.एस.सिंह और नरेन्द्र मोदी सहित छ: प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है।सत्रहवीं लोकसभा में वे मोदी मंत्रिमंडल में वे उपभोक्ता मामले और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री बने। दो बार वे राज्य सभा के सदस्य भी रहै हैं। वर्तमान में वह राज्य सभा के सदस्य थे।
श्री रामविलास पासवान ने सन् 1969में बिहार विधान सभा का चुनाव संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में पहली बार अलौली विधान सभा चुनाव में अपना भाग्य अाजमाया। वे विधान सभा चुनाव 700 मतों से जीतकर विधान सभा सदस्य बन गये। इसी समय उनका यूपीएससी की परीक्षा का परिणाम भी आया वे डीएसपी पद के लिए चुन लिए गये थे पर काल ने उनके भाल पर राजनीति लिखी थी तो उन्होंने राजनीति का चयन किया और वे राजनेता बन गये।
सन् 1984 में जब लोकदल का गठन हुआ तो ये उसमें शामिल हो गये।और उसके केन्द्रीय महासचिव बने।सन् 1975 में आपत्काल का मुखर विरोध करने पर इन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।सन्1977 में आपत्काल हटाये जाने के बाद कहीं का गारा कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा की कहावत चरितार्थ करते हुए कई दलों के विलय से जनतापार्टी का गठन हुआ। जिनमें लोकदल भी शामिल था।श्री पासवान हाजीपुर संसदीय सीट से जनता पार्टी के सदस्य के रूप में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए।उन्हें 4.25 लाख वोट मिले जो विश्व रिकार्ड था। पहली बार केन्द्र में कांग्रेस की हार हुई और कांग्रेस के स्थान पर पहली बार अन्य पार्टीयां जनतापार्टी के रूप में सत्ता में आयीं।इस जीत से पहली बार देश का ध्यान श्री पासवान की ओर आकृष्ट हुआ।इसके बाद तो उन्होंने केन्द्रीय राजनीति में पीछे मुड़ कर नहीं देखा।वे सन् 1981में लोक सभा का चुनाव जीत गये, सन्1984 में इंदिरागांधी की हत्या की सहानुभूति में रामविलास पासवान चुनाव हार गये।परन्तु राजीव गाँधी के कार्यकाल समाप्ति के बाद 1989 के चुनाव में उन्होंने पुन: सफलता हासिल की और अपना पिछला विश्व रिकार्ड तोड़ते हुए उन्होंने 5.05 लाख मत प्राप्त किये।इसके बाद वे 1996, 1998, 1999, व 2004 के चुनाव में लगातार विजय हासिल करते रहे सन् 2009 के चुनाव मे वे हार गये परन्तु 2014 के निर्वाचन में उन्हें पुन सफलता मिल गयी।
आर्थिक रूप से कमजोर दलित घर में जन्म लेते हुए भी श्री रामविलास पासवान ने राजनीति में अपना एक स्थान बनाया है और जिस प्रकार उन्होंने चुनाव जीतने में सफलता मिलती रही वह उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है। वे 1989में विश्वनाथ प्रताप सिंह की कैबिनेट में केन्द्रीय श्रम और कल्याण मंत्री बने।सन्1996 में प्रधानमंत्री के राज्यसभा सदस्य होने के कारण श्री रामविलास पासवान नेता सदन के साथ साथ रेल मंत्री बने जिसपर वे सन् 1998 तक रहे।इस समय उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में रेलवे का क्षेत्रीय कार्यालय भी खोला।सन् 1999 में वे केन्द्रीय समचार मंत्री बने।जिस पर वे 2001 तक रहे।2001से केन्द्रीय खनिज मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
मनमोहनसिंह सरकार में वे केन्द्रीय रसायन व उर्वरक मंत्री रहे 2009में चुनाव हार गये। 2015 से 8अक्तूबर 2020 तक वे उपपोक्ता मामलों के मंत्री रहे हैं। सन् 2000 में उन्होंने जदयू से अलग होकर नयी पार्टी गठन किया जिसका नाम रखा गया लोक जनशक्ति पार्टी।
स्वर्गीय रामविलास पासवान राजनीति में जीतने वाली पार्टी का रुख भांप लेते थे और हमेशा जीतनेवाली पार्टी के साथ हो कर सत्ता में रहते थे।उनके आलोचक उनको राजनैतिक मौसम के वैज्ञानिक कहते है।जिसे साधारण भाषा में गंगा गये गंगादास जमुना गये जमुनादास कहते हैं।
उनके परिवार से उनके दो भाई व बेटा सांसद हैं इसीलिए आलोचक उनपर वंशवाद का आरोप लगाते रहे हैं हैं और उनकी पार्टी को उनके परिवार का राजनैतिक प्लेटफार्म बताते हैं पर उन्होंने कभी आलोचकों की परवाह नहीं की।
उनका वन नेशन वन राशनकार्ड की सोच की सभी ने सराहना की जो अगर सफल हो जाय तो जाली राशनकार्डो पर अंकुश लग जाएगा।
दुनिया कुछ भी कहे पर स्व रामविलास पासवान ने अपने बुद्धिचातुर्य से छ: प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर इस कहावत को चरितार्थ किया कि “ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर।”वे एनडीए के अंग भी रहे तो यूपीए के भी अंग भी रहे है।उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई उत्तराधिकारी उनके राजनैतिक रिक्तता को भर सकेगा या नहीं यह समय ही बताएगा। उन्हें एक श्रद्धांजलि।