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गलत ढंग से किया गया योगासन शरीर में विकार पैदा कर सकता है।
-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
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अभी अभी योग महोत्सव के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय योग सप्ताह भारत में विशेष कर उत्तराखण्ड में बहुत धूम धाम से मनाया गया ।मंत्रियों से लेकर संत्रियों ने इस योग महोत्सव मे योगासन किये हैं।मैंने ऐसे ही योगासन करने की एक फोटो देखी जिसमें सुखासन या पद्मासन में बैठ कर होने वाले आसन को एक व्यक्ति अर्द्ध सुखासन में कर रहा था।याने उसकी दोनों जंघाएं जमीन से ऊपर उठी हुई थीं।ऐसी छोटी छोटी गलतियं इन आसनों से शरीर को दुष्प्रभाव भी मिलते हैं। जिनका मैं भुक्तभोगी हूँ।
मैं 27 फरवरी सन्1975 को जनपद पौड़ी गढवाल में बेसिक शिक्षा का अध्यापक बना ।शरीर से बहुत ही दुबला-पतला।जाड़ों मे कितने की कपड़े पहन लेता था बदन कांपता ही रहता था।तब हिन्द पाकेट बुक्स प्रकाशन की एक योजना चलती थी घरेलू लाईब्रेरी।मैं उपन्यास पढने का शौकीन था।जिससे मैं उस योजना का सदस्य बन गया।हर महीने वीपीपी से पुस्तकें आ जाती थीं।एक बार योग पर एक पुस्तक आयी।जिससे मैंने पुस्तक से पढकर योगासन करना प्रारम्भ कर दिया।
हिन्द पॉकेट बुक्स से मंगाई गयी इस योग की पुस्तक से सीख कर मैंने लगातार योगासन करने लगा जिससे मेरे शरीर में जहां नवऊर्जा का संचार हुआ और जाड़ों में मुझे ठंड लगनी बन्द हो गयी ।अब शरीर में शक्ति का अनुभव भी होने लगा।शरीर के अंग सुडौल व मांसपेशियां आनुपातिक हो गये। शरीर लचीला हो गया।चक्रासन को छोड़कर उस पुस्तक के लगभग सभी आसन मैं रोज करता था।
कुछ वर्षों तक सब कुछ ठीक चलता रहा।परन्तु पुस्तक से सीख कर किए आसनों में अनजाने ही कुछ गलतियां मेरे द्वारा होती गयीं।इन गलतियों से मेरे एक घुटने में असहनीय दर्द रहने लगा। उतराई नहीं उतर पाता था।कुछ दिनों बाद दूसरे घुटने में भी टीस उठने लगी चलना- फिरना दूभर हो गया।पहाड़ी आदमी,हर जगह पैदल ही आना जाना होता है। चढाई उतार चढना उतरना पड़ता है। जरा सा चलने पर असहनीय दर्द होता था।तब मेरे बड़े भाई स्व.के.पी.रतूड़ी जी ने एक उपचार बताया जिसे अपनाने पर के मेरे घुटने ठीक हो गये।
योगासन चलते रहे।कुछ समय बाद मेरी कमर पर दाहिने ओर दर्द हो ने लगा था जो पैर तक पहुचने लगा। चिकित्सकों के अनुसार यह सायटिका रोग था।जो कि सायनस नस के रीढ की हड्डी में दबने से होता है। कई ऋषिकेश,हरिद्वार,कोटद्वार के कई ऐलोपैथिक,आयुर्वेदिक चिकित्सकों से उपचार करवाया पर दवा का सेवन करता तो दर्द बन्द हो जाता।दवा बन्द तो दर्द शुरू हो जाता।
तब मेरे ममेरे भाई श्री सुभनेश कुकरेती ने जो स्वामी राम हॉस्पीटल जोलीग्रांट में कार्यरत हैं ने मुझे स्वामी राम हॉस्पीटल बुलवाया।वहां के न्यूरो सर्जन ने मेरा परीक्षण करने के बाद मुझे बताया कि यदि यह दवा से ठीक नहीं हुआ तो इसका अंतिम इलाज ऑपरेशन है चूंकि ऑपरेशन रीढ की हड्डी का होना है इसलिए हो सकता है कि ऑपरेशन के बाद दूसरी जटिलताएं उत्पन्न हो जाएं।योगासन करना मैंने स्वयं ही बंद कर दिया।
उनकी सुझाई दवा सेवन से मेरी सायटिका काफी हद तक ठीक हो गयीं।लाठी के सहारे चलने वाला मैं अब अपने पैरों पर चलने लगा।आज 70 वें वर्ष में भी काफी पैदल चल लेता हूँ।
मैं योगासनों को दोष नहीं दे रहा हूँ। मेरा कहने का अर्थ इतना ही है कि आप जो आसन करते हैं उसे सही ढंग से करिए। योग के आसनों में सांसों के उतार चढाव व अंग संचालन का बहुत महत्व होता है।यह जानना जरूरी है कि हमें आसनों के साथ कब साँस अन्दर खींचनी है कब रोकनी है और कब छोड़नी है। यह जानना भी जरूरी है कि आसन में हाथ, पैर, कमर, गरदन कितनें अंश पर कहां मुड़ेगी।अगर जरा भी गलती हम किसी आसन में करेंगे तो वह गलती हम हर बार ,जब हम आसन करेंगे, दोहराएंगे।ऐसी गलती का दुष्परिणाम धीरे -धीरे किसी समस्या में बदल जाएगा।
योगासन करें पर उसमें आवश्यक सावधानी अवश्य बरतें। योग्य गुरू से सीखें।योगासन खाली पेट करने चाहिए।स्नान से पहले करना चाहिए।हर आसन के बाद शवासन करना चाहिए।ऐसा मैंने इस पुस्तक में पढा था।आसन के स्थान में शान्ति हो।आसनों के बाद आधे घंटे तक ठंडे पानी या जूस से बचना चाहिए। हर आसनों के ठीक से करने पर अच्छे व गलत करने पर बुरे प्रभाव होते हैं उनके बारे में भी जान लेना चाहिए।उदाहरण के लिए-यदि कमर दर्द व गर्दन दर्द वाले व्यक्ति आगे झुकने वाले योगासन करेंगे तो उनका दर्द बढेगा।चिकित्सक कहते हैं कि उन्हें भुजंगासन आदि करने चाहिए।
सही ढंग से किया गया योगासन रोग ठीक करें या न करें पर वह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढाते हैं।जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करतें हैं।जीवन शक्ति,आत्म विश्वास व आत्मबल बढाते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है।ऐसा मेरा अनुभव है
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