क्या है नवरात्रि रहस्य? पढिए Janswar.com में।

पंडित जयकृष्ण सेमवाल

नवरात्रि विशेष

लेख- पंडित जय कृष्ण सेमवाल

फलित ज्योतिषाचार्य
प्रधानाचार्य श्री नन्दा देवी संस्कृत विद्यालय
कमेडा नन्दप्रयाग जनपद चमोली।


नवरात्र का रहस्य
…..चान्द्रमास के अनुसार चार नवरात्र होते है – आषाढ शुक्लपक्ष मे आषाढी नवरात्र , आश्विन शुक्लपक्ष मेँ शारदीय नवरात्र , माघशुक्ल पक्ष मेँ शिशिर नवरात्र एवं चैत्र शुक्ल पक्ष मे बासिन्तक नवरात्र ।
तथापि परंपरा से दो नवरात्र – चैत्र एवं आश्विन मास मे सर्वमान्य है ।
….. चैत्रमास मधुमास एवं आश्विनमास ऊर्ज मास नाम से प्रसिद्ध है जो शक्ति के पर्याय है …,
…अतः शक्ति आराधना हेतु इस काल खण्ड को नवरात्र शब्द से सम्बोधित किया गया है …,…नवानां रात्रीणां समाहारः अर्थात् नौ रात्रियो का समूह …..
….. रात्रि का तात्पर्य है विश्रामदात्री , सुखदात्री के साथ एक अर्थ जगदम्बा भी है,।
..,रात्रिरुपयतो देवी दिवरुपो महेश्वरः …..
तंत्रग्रन्थोँ मेँ तीन रात्रि कालरात्रि (महाशिवरात्रि ) फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी महाकाली की रात्रि , मोहरात्रि आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी महासरस्वती की रात्रि , महारात्रि कार्तिक कृष्णपक्ष अमावश्या महालक्ष्मी की रात्रि ……
… एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है । सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है .,,
…,इससे परे ब्रह्म है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है .अस्तु नवमी तिथि के आगमन पर शिव शक्ति का मिलन होता है ।
शक्ति सहित शक्तिमान को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पडता है , जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर(शरीर) का स्वामी है – नवछिद्रमयो देहः . इन छिद्रो को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है .-…,
अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियो द्वारा नियत किये गये है ….
प्रतिपदा – इसे शुभेच्छा कहते है । जो प्रेम जगाती है प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है , अस्तु प्रेम को अविचल अडिग बनाने हेतु शैलपुत्री का आवाहन पूजन किया जाता है । अचल पदार्थो में पर्वत सर्वाधिक अटल होता है ।
द्वितीया – धैर्यपूर्वक द्वैतबुद्धि का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए ।
तृतीया – त्रिगुणातीत (सत , रज ,तम से परे) होकर माँ चन्द्रघण्टा का पूजन करते हुए मन की चंचलता को बश मेँ करना चाहिए ।
चतुर्थी – अन्तःकरण चतुष्टय मन ,बुद्धि , चित्त एवं अहंकार का त्याग करते हुए मन, बुद्धि को कूष्माण्डा देवी के चरणोँ मेँ अर्पित करेँ ।
पंचमी – इन्द्रियो के पाँच विषयो अर्थात् शब्द रुप रस गन्ध स्पर्श का त्याग करते हुए स्कन्दमाता का ध्यान करेँ ।
षष्ठी – काम क्रोध मद मोह लोभ एवं मात्सर्य का परित्याग करके कात्यायनी देवी का ध्यान करे ।
सप्तमी – रक्त , रस माँस मेदा अस्थि मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओ से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए कालरात्रि देवी की आराधना करेँ ।
अष्टमी – ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश मन बुद्धि एवं अहंकार से परे महागौरी के स्वरुप का ध्यान करता हुआ ब्रह्म से एकाकार होने की प्रार्थना करे ।
नवमी – माँ सिद्धिदात्री की आराधना से नवद्वार वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाता हुआ आत्मस्थ हो जाय ।
……. पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं तथा तन्त्रग्रन्थोँ मेँ आठ शक्तियाँ है…,
1 ब्राह्मी – सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है ।
2 माहेश्वरी – यह प्रलय शक्ति है ।
3 कौमारी – आसुरी वृत्तियोँ का दमन करके दैवीय गुणोँ की रक्षा करती है ।
4 वैष्णवी – सृष्टि का पालन करती है ।
5 वाराही – आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते है ।
6 नारसिंही – ये ब्रह्म विद्या के रुप मेँ ज्ञान को प्रकाशित करती है
7 ऐन्द्री – ये विद्युत शक्ति के रुप मेँ जीव के कर्मो को प्रकाशित करती है ।
8 चामुण्डा – पृवृत्ति (चण्ड) निवृत्ति (मुण्ड) का विनाश करने वाली है ।

आठ आसुरी शक्तियाँ –
1 मोह – महिषासुर
2 काम – रक्तबीज
3 क्रोध – धूम्रलोचन
4 लोभ – सुग्रीव
5 मद मात्सर्य – चण्ड मुण्ड
6 राग द्वेष – मधु कैटभ
7 ममता – निशुम्भ
8 अहंकार – शुम्भ

,… अष्टमी तिथि तक इन दुगुर्णो रुपी दैत्यो का संहार करके नवमी तिथि को प्रकृति पुरुष का एकाकार होना ही नवरात्र का आध्यात्मिक रहस्य है ।नौ ही क्यो ?
………..
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहंकार इतीयं मे प्रकृतिरष्टधा ।
कहकर भगवान ने आठ प्रकृतियोँ का प्रतिपादन किया है इनसे परे केवल ब्रह्म ही है अर्थात् आठ प्रकृति एवं एक ब्रह्म ये नौ हुए जो परिपूर्णतम है।

नौ देवियाँ , शरीर के नौ छिद्र , नवधा भक्ति ,नवरात्र ये सभी पूर्ण हैँ।
नौ के अतिरिक्त संसार मे कुछ नहीँ है इसके अतिरिक्त जो है वह शून्य (0) है ।
इसीलिए तुलसी जी ने नौ दोहो चौपाईयो में नाम वन्दना की है ..
किसी भी अंक को नौ से गुणाकरने पर गुणन फल
का योग नौ ही होता है .,….

अतः नौ ही परिपूर्ण है ।

जनस्वर डाट कॉम (janswar.com) की ओर से आप सभी पाठकों नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं।मां के नव रूप आपको अष्ट सिद्धि व नव निधि प्रदान करे।


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