
समाचार प्रस्तुति-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
आजकल सोशल मीडिया में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हटाये जाने व नये मुख्यमंत्री के शीघ्र शपथ लेने की अटकलें छायी हुई हैं। इस अभियान के चलाए जाने के पीछे पार्टी के कुछ असंतुष्ट लोगों का वरदहस्त हो सकता है या कांग्रेस की एक चाल,यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है पर आजकल यह अफवाह बहुत जोरों पर है कि दिल्ली चुनाव में पार्टी की हार के कारण राज्यों के मुख्यमंत्रियों को हटाया जायेगा। बहुत से कथित सोशल मीडिया पत्रकारों ने तो एक कैबिनेट मंत्री के उनका उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया है।
यद्यपि मुझे राजनीति की इतनी समझ नहीं जितनी एक राजनैतिक विश्लेषक को होनी चाहिए फिर भी कुछ बिंदुओं पर विचार कर के किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है।
मुख्यमंत्री के रूप में वर्तमान मुख्यमंत्री की नौकरशाही यद्यपि इतनी पकड़ नहीं रही है कि नौकरशाही उनके इशारों पर नाचे,फिर भी जब भी नौकरशाही पर भ्रष्टता के आरोप लगे उन्होंने कार्यवाही करनेमें कोई कसर नहीं उठाई।इसका उदाहरण है दो आईएएस का निलंबन।भले ही आज वे बहाल हो गये हों। नौकरशाहों को जनहित में निलंबित कर उन्होंने अपनी ताकत का परिचय दे कर भ्रष्ट नौकरशाही को यह संदेश दिया कि उनके राज में भ्रष्ट नौकरशाही को जगह नहीं है।मुख्यमंत्री के इस कठोर निर्णय से भले ही यह जानकारी नहीमिल पायी हो कि इससे कितने नौकरशाहों व निचले तबके के अधिकारियों ने कोई सबक लिया होगा पर उनके इस कदम से निश्चित ही केन्द्र में उनके नंबर बढे होंगे।
अब आते हैं चुनावों पर।मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रसिंह रावत ने पंचायत चुनावों,नगरपालिका,नगर निगमों में उनकी पार्टी के अधिकांश उम्मीदवारों की जीत के कारण केन्द्रीय संगठन में उनका कद बहुत नहीं तो कुछ तो बढा ही होगा। सबसे बड़ी बात लोकसभा की पाँचों सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों को शतप्रतिशत जीत दिलाना तो उन्हें पूरे नम्बर दिलाते हैं। विधान सभा उपचुनाव2018 व 2019 में भी पार्टी प्रत्याशियों की जीत ने उन्हें शतप्रतिशत नम्बर दिलाये हैं।
वर्तमान में प्रत्यक्षत: उनके नेतृत्व से पार्टी व सरकार में किसी प्रकार की उद्विग्नता नहीं है। पार्टी व सरकार कहीं से भी उन्हे खुली चुनौती नही मिल रही है। प्रदेश में अपने ही नियम चलाने वाले एक मंत्री भी नियंत्रण में है।बाह्य दृष्टि में उन्हें पार्टी,विधायकों व मंत्रियों का पूरा पूरा सहयोग मिलता दिखाई दे रहा है ऐसी स्थिति में केन्द्र की सरकार उनके बदलने का जोखिम उठाएगी तो यह केन्द्रीय नेतृत्व की अपरिपक्वता ही होगी।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव की हार से अगर पार्टी मुख्यमंत्रियों के कामकाज का आकलन करेगी तो नैसर्गिक न्याय के आधार पर उसे दिल्ली चुनाव में हर उस स्टार प्रचारकों के कामकाज की समीक्षा करनी होगी जिन्होंने दिल्ली चुनावों में प्रचार किया है ऐसी स्थिति में केवल मुख्यमंत्रियों के ही कामकाज का आकलन करना शायद उचित नहीं होगा। कुछ लोग यह भी तर्क दे सकते हैं कि दिल्ली चुनावों में सरकार के कामकाज पर वोट मिली है तो दिल्ली में यूपी के मुख्यमंत्री ने भी प्रचार किया तो क्या पार्टी उन्हें भी हटा सकेगी।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर अभी तक कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। एक पत्रकार के स्टिंग ऑपरेशन की भी हवा फुस्स हो गयी है।हां उनके कार्यकाल में पत्रकारों के उत्पीड़न की घटनाएं जरूर हुई हैं और पत्रकारों को सुरक्षा देने के लिए उनके द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।मुख्यमंत्री पर रूखा व्यवहार करने का आरोप लगाते हैं पर यह कारण उनको हटाने का पर्याप्त कारण नहीं है।
अब आते हैं हम पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के ट्वीट पर तो वे जब-जब उत्तराखण्ड की सत्ता से बाहर रहे उन्हें कुछ न कुछ लिखने की आदत रही है।उनकी लिखी बात की परवाह उनकी पार्टी वालों ने ही नहीं किया है तो बीजेपी वाले उनके लिखने का क्या संज्ञान लेंगे। वैसे भी उनकी बात गले नहीं उतरने वाली है भला बीजेपी अपने मुख्यमंत्री बदलने की जानकारी विपक्ष के नेता को क्यों देगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके मन में उनके मंत्रीमंडलीय साथियों का विद्रोह तो नहीं साल रहा है?
वैसे भाजपा क केन्द्रीय नेतृत्व क्या सोचता है यह तो वही जाने पर मेरे अपने आकलन से अभी मुख्यमंत्री को हटाने का जोखिम पार्टी नहीं लेगी।