कोरोना संकट से उत्तराखण्ड के गांवों में युवा बेरोजगार,रोजी-रोटी का संकट।पढिएJanswar.ComRमें।

लेखक-महावीर सिंह जगवाण।

भारत के गाँवों मे जो भीड़ कभी होली दीपावली पर दिखती थी वह आज आम हो गई,फर्क तब खुशियों से चेहरे चमकते थे और अब रोजी रोटी के संकट ने चेहरों को मायूस कर रखा है,

गांव के गुलजार रहने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी उस गांव के युवा दूर शहर और देशों मे अपनी प्रतिभा के अनुरूप रोजी रोटी के संबल विकल्प पर निर्भर थे,इनके श्रम की परिणति गांव की ओर धन का प्रवाह था एवं गांवो की जिन्दगी का अभाव संघर्ष छुप जाता था,

छोटी कृषि जोत,सीमांत किसान,विकट और दुरूह जीवन जी रहे ग्रामीणों की करेंसी युग मे मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति का यह अदृष्य रोजगार ही बड़ी हिस्सेदारी रखता है ,जिस ओर देखने की सरकारों ने कभी इमानदार पहल न की,

उत्तराखंड के परिदृष्य मे यह एक बड़ी चुनौती है ,यहां की प्रति ब्यक्ति आय की हिस्सेदारी मे राज्य की बहुत बड़ी भूमिका नहीं है,इससे यह स्पष्ट हो जाता है,पलायन का प्रतिशत बढ़ा है,

हमें इस बात को बारीकी से समझने का साहस करना चाहिए पलायन एवं प्रवासी को आज भी शाब्दिक रूप से भावार्थ तो निकाला जा रहा है लेकिन शब्द की पकड़ और ब्यवहारिक समझ अभी भी विकसित नहीं हो पाई है जो बदलाव के लिए सबसे अधिक असहज करता है,

पलायन का अर्थ है स्थाई रूप से स्थान परिवर्तन,दूसरा प्रवासी से तात्पर्य है,जो स्थाई रूप से परिवर्तन कर चुके हैं मूल रूप से उत्तराखंडी हैं और विभिन्न शहरों मे देशों मे बस चुके हैं,

यहां यह स्पष्ट करना इसलिए भी जरूरी है कोरोना संकट मे प्रवासी घर लौटे इनका प्रतिशत एक फीसदी है,उत्तराखंड के गाँव मे रहने वाले युवा कोरोना संकट के कारण अस्सी फीसदी तक अपने घरों मे बेरोजगार हैं क्योंकि इनको रोजगार के लिए देश के विभिन्न शहरों मे जाना पड़ता है,वर्तमान संकट की वजह से इनको रोजगार देने वाले क्षेत्र प्रमुख रूप से हाॅटल ब्यवसाय ,औद्योगिक इकाइयां ,सेवा दाता कंपनियां ,मांग की कमी के कारण छटनी और बंदी के कगार पर हैं,

आज एक गांव के सुधी मित्र से वार्ता कर रहा था,पूछा क्या स्थिति है युवाओं और गांव की ,बोले लगभग अकेले हमारे गांव मे 150युवा और प्रौढ़ बेरोजगार हो गये,जब बारीक पड़ताल की तो बेहद चिंता हुई इनकी बेरोजगारी से अमुख गांव को हर माह बीस से पच्चीस लाख रूपये का नुकसान हो रहा है,जो कोरोना से पहले इनकी हर माह की बचत होती थी जिसे यह अपने घरों एवं नजदीकी बैंकों मे भेजते थे,औसत यही हाल हर गांव का है,

पिछले कई दिनों से एक पड़ताल जारी थी,शिक्षा स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए गांव के नजदीक पनप रहे छोटे छोटे कस्बे मे यही गांव के लोग किराये पर या भवन बनाकर रह रहे थे,जिससे स्थानीय अर्थब्यवस्था को ऑक्सीजन मिल रही थी ,पिछले पांच महीनों मे साठ फीसदी से अधिक लोग इन कस्बों से पूर्णतः गांव लौट चुके हैं, जिसका प्रमुख कारण आर्थिक अनिश्चितता,इन कस्बों मे छोटे मंझले दुकानदारों भवन स्वामियों,मजदूरों और दूध बेचने वालों की आय मे भारी गिरावट आई है,यहां तक गांवो मे एलपीजी गैस सिलैंडर की खपत मे कमी आई है,यानि लकड़ी पर निर्भरता बढ़ी है,अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण भी इस संकट की कीमत चुकायेगा,

सरकारों की स्वरोजगार नीतियों से बहुत बड़ा चमत्कार होगा यह भी स्पष्ट नहीं दिखता,इसके पीछे सबसे बड़ी शंका या चुनौती यह है स्वरोजगार के लिए जबाबदेह सिस्टम और ढांचा एक लंबे समय से अपनी उत्पादकता खो चुका है,इससे चमत्कार की आस न्यून है,वर्तमान मे चल रही सभी योजनाओं के क्रियान्वयन की जबाबदेही उन्हीं के पास है जो दशकों से इस जबाबदेही की बदौलत कागजी लक्ष्य प्राप्त करते हैं, इनमें न साहस है न इच्छा और न ही जुनून,कभी मिलो तो ठहाके लगाते कहते हैं ,इनके लिए क्या करना यह तो बस भाग जायेंगे,इन जवाबदेह महाशयों से आगे कैसे संवाद करें आप जानो,

पिछले कई सालों एक तुलनात्मक अध्ययन करता हूँ पर्वतीय गांवो मे रहने वाली मातृ शक्ति बारह से सोलह घंटे की दिनचर्या मे जो आय अर्जित करती है वह आज भी 10रूपये से300रूपये तक है जिसमें नब्बे फीसदी की आय का मूल्य चालीस रूपये से कम है,हजारों समूह फैडरेशन हैं लेकिन बाल वही तंगहाली के,इनका काम इतना जोखिम भरा है हर साल सैकड़ों महिलाएं चारा लेने जंगल जाती हैं और फिसलकर अकाल मौत मरती हैं,

यह समझ से परे है इतनी योजनाओं के बाद भी इनकी देहरी तक आर्थिकी का उजियारा नहीं पहुँचा जो हम सबके चेहरे पर खुशी देख रहे थे वह बस इस बात पर टिकी थी उसका लाडला बेटा,पति ,बाप शहरों मे असुरक्षित हाड़तोड़ मेहनत से मनीआर्डर कर परिवार को दूर पहाड़ पर खुशी की आस दिला रहा था,

काश हमारे पास ऐसा विजन होता हम हर घर की गांव मे आज तक 5000तक की आय विकसित करा पाते तो आज युवाओं के लौटने पर यह आय कई गुना बढ़ जाती लेकिन हम न माहौल रोजी का बना पाये और न ही ऐसा कोई ताना बाना बुन पाये जो रोजी रोटी का आधार बन सके,

बैंक अपना रूपया रिजर्व बैंक के पास जमा कर रहे हैं, क्योंकि वह बाजार का जोखिम नहीं लेना चाहते, सरकार के पास एकमात्र राह स्वरोजगार करो,वह भी असुरक्षा के साथ,यह जटिल चुनौती है,

बाजार और मांग सदैव निवेश और ग्राहक की जोखिम की लेने की क्षमता पर निर्भर है,जिसका अभी ह्रास दिख रहा है,यह योजनाकारों और सरकारों को स्पष्ट करना होगा वह कौन से उपाय नीति और उपचार किये जाएं जिससे मांग और निवेश का सुरक्षित जोखिम बढ़े यही मास्टर चाबी होगी नई आर्थिकी की,

सरकारों को चाहिए जमीनी अनुभवी सामाजिक और आर्थिक विशेषज्ञों की कमेटी बनाकर ,अब भारत को आने वाले चंद महीनों मे जैसे ही कोरोना संकट के अंतिम उफान से मुक्ति मिले वह नागरिकों को मिलने वाली हर राहत को बढाये लेकिन उत्पादकता के साथ,

हम आज भी विकास और रोजगार सब्सिडी के नाम पर ब्यय कर रहे धन को पचास फीसदी भी उत्पादन की और दिशा मोड़ पाये तो यह बड़ी संभावना बन सकता है,

समय श्रम और धन के ब्यय की सार्थकता और राष्ट्रीय परिदृष्य मे उत्पादकता से ही गहरी खाई की ढलान पर बढ़ती जीडीपी को वापसी के मुहाने की ओर मोड़ा जा सकता है,

सरकारों को यह स्पष्ट स्वीकार करना चाहिए खामियां बढ़ रही हैं, सिस्टम किसी भी नयें संकल्प और विजन को पुराने ढर्रे पर ही बढ़ा रहा है,जो अब बहुत पुरानी बात और तकनीकी हो चुकी है,

हमें दु:ख और आश्चर्य है हर दिन अनगिनत बैठक और संकल्प का दौर लेकिन जमीनी रूप से हम हमारा सिस्टम और सरकारें फिसड्डी हो रही हैं जो जीडीपी को निगल रही है,इससे सरकारों की छवि से लेकर गरीब का चूल्हा तक संकट की ओर बढ रहा है,

आशा और विश्वास है आने वाले समय मे जीडीपी मे सुधार हेतु क्रान्तिकारी परिवर्तन हों जिससे हर हाथ को काम और उसका उचित दाम मिल सके ,तभी सरकारें राम राज की ओर बढ़ती हुई दिखेंगी और प्रजा संबल नागरिक होने का गौरव,भारत के दो तिमाही हैं जिसमें उसे बेहतर सूझबूझ से निर्णय लेना है,गिरावट को रोकना और समृद्धि के सूचकांक की वृद्धि आज विश्व की जरूरत है,अन्यथा छोटी चूक वैश्विक अर्थब्यवस्था को तबाही के कगार पर खड़ा कर देगी ,इसमें भारत की ही सबसे बड़ी जबाबदेही है,

अभी भी यह आशा है,बैंक पिछले सालों से जिस तरलता के लिए ब्याकुल थे वहाँ धन की उपलब्धता बढ़ी है, आर्थिकी के मोर्चे पर सही समय पर सही निर्णय की प्रतीक्षा मे पूरा भारत टकटकी लगाये बैठा है।आने वाला वक्त कैसा होगा यह अगली दो तिमाही मे स्पष्ट हो जायेगा,यह सुखद और समृद्धि से भरा हो ,इन्हीं शुभकामनाऔं के साथ।


महावीर सिंह जगवाणकी फेसबुक वॉल से साभार-संपादक

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