एक नजर
अशोक क्रेजी
आज जब आप यह सन्देश पढ़ रहे होंगे तब तक किसानों के आंदोलन को 19 दिन हो चुके होंगे दुर्भाग्य से कई दौर की बात होने के बाद भी दोनों पक्षों के अड़ियल पन से कोई हल नही निकल पाया है।
गौरतलब है कि देश मे 28 स्वतंत्र राज्य और अन्य केंद्र शासित प्रदेश हैं।लेकिन इनमें से 6 या7 प्रदेश के किसान आंदोलित है और उतने ही राज्यों के किसान सहमति व्यक्त कर रहे हैं।लोकतंत्र है इसलिए सब अपनी अपनी बात को जायज ठहरा रहे है। खैर सबकी अलग अलग सोच है।
आंदोलन में नर भेड़ियों ने भी चुपचाप इंट्री कर ली है इनकी काली करतूतें समय समय पर उजागर भी हो रही है।किसी आंदोलन से सहमत होना न होना कोई जरूरी नही लेकिन किसानों के बहाने मोदी जी को व्यक्तिगत रूप से गली देना इंद्रा गांधी व राष्ट्र पिता गांधी जी का अपमान करना किसी भी रूप से सही नही है।अफसोस इस बात का है कि देश के प्रमुख विपक्षी दल इस पर मौन साधे हुए हैं।यह बात चुभती है।अरे कुर्सी के लोलुपों जब देश रहेगा तभी तो सत्ता का मजा लोगे हमारा क्या आज तुम हो कल दूसरा होगा हमे तो सदा मेहनत करके ही खाना है।
जिसका पति बेटा भाई इस ठंड में सड़कों पर बैठा या लेटा हुआ है उसके परिवार वालो को क्या चारदीवारी के भीतर भी नींद आ रही होगी हरगिज नही।एक तरफ ठंड का कहर दूसरी तरफ कोरोना का डर।वही दूसरी ओर कुछ नादान टैंट के नीचे जिम खोलकर कसरत कर रहे है आंदोलन का मखोल उड़ा रहे हैं दिल मे हाथ रखकर कहना क्या एक किसान को किसानी करने के बाद जिम की आवश्यकता होती है क्या उसके पास इतना समय होता है।ऐसे लोगो के कारण ही पवित्र आंदोलन मार्ग से भटक रहा है।इस पर अंगुलियां उठ रही हैं। अंतमें 2 पंक्तियों के साथ अपनी बात को विराम दूंगा।
किसानों के बहाने सभी
निकाल रहे अपने दिलों की भड़ास
कोई ढोंगी मंच हथिया रहा
कोई कर रहा उपवास।।
20 दिनों से मचा हुआ है
दिल्ली में घमासान
आंदोलन की आड़ में
हुआ गांधी जी का अपमान।।
विपरीत परिस्थितियों में भी किसानो के धैर्य की दाद देते हुए वक्त की नाजुकता को देखते हुए सरकार को इस पर शीघ्रता से निर्णय लेना ही चाहिए।
लेखक अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़े होने के साथ- साथ स्थापित कवि,बौद्धिक जगत से जुड़े हैं।-संपादक