ऋषिकेश के कवियों ने की ऑन लाईन कवि गोष्ठी ।पढिए janswar.com में

आनलॉईन कवि गोष्ठी में शहर के कवियों ने बांधा समांं।

ऋषिकेश: कोरोना वायरस को हराने के लिए सब डटे हैं। वहीं साहित्य सर्जकव भी कविताओं के माध्यम से जागरूकता का संदेश दे रहे हैं ।लॉकडाउन में कवियों की भी लेखनी मुखर होकर खूब चल रही है। इसी को लेकर आवाज साहित्यिक संस्था ऋषिकेश के तत्वावधान में मौजूदा विषयों पर ऑनलाइन गोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें कवियों ने कोरोना महामारी व सामाजिक चेतना को लेकर अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। सभी कवियों ने जहां इस संकट से बचने के लिए उम्मीद के रास्ते सुझाये तो वहीं इस लड़ाई को जीत जाने के लिए संकल्प भी दृढ़ता से दोहराया।
शहर की साहित्यक संस्था द्वारा वैश्विक महामारी मे जन चेतना सुरक्षा अभियान एवंअपने जीवन की परवाह न करते हुए लगातार सतत प्रहरी की भाँति मानव जीवन को बचाने मे लगे हुए कर्मवीरों को समर्पित ओन लाइन काव्यांजलि,
आवाज़ संस्था के समस्त कवियों ने अपनी रचनाओं की काव्यांजलि मे कोरोना संकट मे लगे कर्मवीरों -डॉक्टर्स,मेडिकल स्टाफ, स्वच्छता उन्नायक,पुलिस प्रशासन, एवं उन सामाजिक संस्थाओं कुबेर पुत्रों का नमन वंदन किया जो समाज मे तन, मन,धन से सेवाएं दे रहे हैं।
कवि गोष्ठी का शुभारंभ सुनील थपलियाल ने किया। उन्होंने उम्मीद जताई और कहा कि अरे सुनो !उपचार इसका
हर घर में होगा
कोई माँ जलायेगी दीपक
कहीं यज्ञ प्रारंभ होगा’

रामकृष्ण पोखरियाल ने अपनी पंक्तियों से कुछ इस तरह संदेश दिया-
‘ सफर बहुत लंबा है,
होशियारी से रहना होगा
थम जाएगा शोर ये
सन्नाटों से लड़ना होगा’

कोरोना वायरस ने जहां विश्व की एटमी हथियारों से लैस दुनिया को तहस-नहस कर दिया वहीं हमारा देश भारत इसका डटकर मुकाबला कर रहा है। शब्दों में यही बात कवि धनेश कोठारी ने कुछ इस तरह कही-
‘ मैं इसी में खुश हूं कि
मेरा देश रुका नहीं ,चल रहा है
खाई दर खाई के बीच
देश बैठा नहीं,चल रहा है-‘

वर्तमान परिदृश्य में मजबूर मजदूरों की हालत पर प्रबोध उनियाल ने कहा कि-
‘भूख की ये बेबसी देखिए
चल दिए पाव,गांव देखिए
धूप सर में, बच्चा कंधे पर
कभी ट्रॉली पर लदा देखिए’

महेश चिटकारिया ने कहा कि-
‘ख़्वाबों को ना देख तू
अब जाग जा
हकीकत के यूँ सवाल
तू ना टाल जा.
बुरा वक्त नहीं होता, हमेशा साथ -साथ
दिया उम्मीदों का जले,
ये ख्वाब पाल जा-‘

सत्येंद्र चौहान ने कहा कि-
‘जितना बड़ा सेठ
उतना मोटा पेट,
आखिर पापी पेट का
सवाल है’ पंक्तियों से वर्तमान व्यवस्था पर तंज कसा।

आलम मुसाफिर अर्ज करते हैं-
‘ किसी का दर्द भला कोई पत्थर क्या जाने,
हुआ है जख्मी किसी का सर क्या जाने?’

धनीराम ऐसे समय में सभी से आव्हान करते हुए कहते हैं कि-
‘रहें घर में सुरक्षित,
स्वीकार करें अपनों का प्यार-‘

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