लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
(शेष भाग)
उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण की गाथा
4 सितम्बर 94 को आन्दोलनकारी इंद्रदत्त शर्मा ने मेरे व कुछ युवकों के साथ मिल कर गढवाल मंडल विकास निगम के बंगले को बंधक बनाया.और वायरलैस सेट पर नारे लगा कर कमिश्नर से बात करने की मांग की. जिससे चीला में सायंकाल सी.ओ.लक्सर के नेतृत्व में एक बटालियन सी.आर.पी.एफ तैनात हो गयी.याने चीला की उन दिनों की आबादी से अधिक पुलिस.दूसरे जिन सीआरपीएफ की उपस्थिति में गंगाभोगपुर गांव के बाल युवा युवती,वृद्ध,वृद्धाओं द्वारा ग्राम प्रधान व संघर्ष समिति के नेतृत्व में शान्तिपूर्वक जलूस निकाला गया और गढवाल सिंचाई उपखंड के परिसर में सभा की गयी.शान्तिपूर्ण स्थिति देख तीसरे दिन सीआरपीएफ वापस चली गयी.
01 व 02 अक्तूबर की रात को मुलायमसिंह के इशारे पर जिलाधिकारी अनन्तकुमारसिंह व डीआईजी बुआसिंह के नेतृत्व में दिल्ली रैली में जारहे आन्दोलनकारियों पर अचानक गोलीबारी कर दी.महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया.पुलिस की गोली से सूर्यप्रकाश थपलियाल,राजेश लखेड़ा,रविन्द्रसिंह रावत,राजेश नेगी,सत्येन्द्र चौहान,गिरीश भद्री, अशोक कुमार कौशिक शहीद हो गये.लगभग साठ से अधिक लोग घा़यल हो गये.उधर दिल्ली पहुचे आन्दोलनकारियों पर दिल्ली पुलिस ने लाठी भांजी और कई लोगों को जेल में ठूंस दिया.याने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के जन्मदिन को अपने सत्तामद में रक्तरंजित कर दिया. दो अक्टूबर के मायने उत्तराखंडियों के लिए हमेशा के लिए बदल गये.वे उसे दमन का दिवस मानने लगे हैं.
तीन अक्तूबर के बाद पुलिस ने उत्तराखंडियों पर दमनचक्र चला दिया.पूरे उत्तराखंड मे कर्फ्यू व धारा 144की आड़ पर खूनी होली खेली गयी.03अक्तूबर94 व उसके बाद देहरादून में बलवंतसिंह,दीपकवालिया,राजेशरावत आदि को देहरादून में राकेश डेवरानी व पृथ्वीसिंह बिष्ट कोट्द्वार,प्रतापसिंह नैनीताल,राजेश रावत और यशोधरबेंजवाल को श्रीयंत्र टापू श्रीनगर में मार डाला ग़या.1996 के विधानसभा चुनाव का बहिष्कार यूकेडी द्वारा लिया गया अव्यावहारिक निर्णय सिद्ध हुआ.
इतने सारे बलिदानों के बाद जब केन्द्र में 1996 में देवीगौड़ा की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री के रूप में देवीगौड़ा ने 15 अगस्त96 को लाल किले की प्राचीर से अपने राष्ट्रीय संबोधन में केन्द्र सरकार के द्वारा उत्तराखंड राज्य बनाया जाएगा की घोषणा से जनता आंदोलन को छोड़कर अपने काम धंधों में लग गयी.बस यूकेडी आन्दोलन करती रही.
लगभग 42 शहादतों और भारी दमन सहने के बाद अंतत: 20 जुलाई2000 को प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेई ने उत्तरप्रदेश पुनर्गठन विधेयक का प्रस्ताव लोकसभा मे रखा.जो पारित होने के बाद राज्यसभा को भेजदिया गया.10 अगस्त 2000 को इसे राज्यसभा नें मंजूरी दी तथा 28 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति के.आर.नारायणन ने अपनी मंजूरी दे दी.और इस प्रकार 09 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड झारखंड और छत्तीसगढ तीन राज्य अस्तित्व में आ गये.
9 नवंबर 2000 को उ.प्र विधान परिषद के अध्यक्ष नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व में उत्तराखंड में भाजपा की अंतरिम सरकार अस्तित्व में आई.प्रदेश की अस्थाई राजधानी देहरादून में व हाईकोर्ट नैनीताल में स्थापित किए गये,नित्यानंद स्वामी की सरकार 29-10 2001 तक चली.भाजपा नेता भगतसिंह कोश्यारी और उनके समर्थकों की असंतुष्टि देख कर 30अक्तूबर2001को भगतसिंह कोश्यारी को राज्य का मुख्यमंत्री घोषित किया गया.सरल मगर जिद्दी कश्यारी से कर्मचारी व आम जनता नाराज हो गयी.जिससे राज़्य के प्रथम आम चुनाव में भाजपा बहुमत नहीं मिल पाया.कोश्यारी 01मार्च2002 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे.इस दौर में भाजपा की उपलब्धि यही रही कि राज्य को दो मुख्यमंत्री मिले.जनपक्ष में कोई फैसला न होने से लोग भाजपा से निराश हो गये.
आम चुनाव में अधिक सीट मिलने और गठजोड़ सरकार बनाने की संभावना देख कर ‘मेरी लाश पर बनेगा उत्तराखंड’कहने वाले नारायणदत्त तिवारीउत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री चुने गये.उनकी अगुवाई में सरकार बनी.यूकेडी व बसपा के गठजोड़ से बनी सरकार के मुखि़या ने 02मार्च2002 से 07 मार्च2007 तक चली.रंगीले स्वभाव के मुख्यमंत्री ने दिल खोल कर लाल बत्तियां बांटी.कर्मचारियों को केन्द्र के समान वेतन दिया.तहसील उप तहसीलों का गठन किया.आन्दोलनकारियों का चयन किया गया उन्हे 10% का क्षैतिज आरक्षण दिया गया.राज्य में सूचना का अधिकारअधिनियम लागू कराया.असंतुष्टों का दृढता से दमन किया.पहली बार प्रदेश हित में कार्य हुए.पर 2007के आमचुनाव में काग्रेस को कम सीटें मिली भाजपा ने यूकेडी और बसपा की मदद से सरकार बनाई.यूकेडी के विधायक दिवाकर भट्ट मंत्रीमंडल में शामिल किए गये.पर अपने कार्यकाल में वे कोई उल्लेखनीय कार्य न कर पाए.बीजेपी ने इस गठजोड़ का मुखिया सांसद मे.ज.(रि)भुवनचन्द्र खंडूडी़ को बनाया.ईमानदार व कड़क छवि के इस मुख्यमंत्री के द्वारा एक आईएएस को विशेष महत्व दिए जाने, लोगों से न मिलने,रूखा व्यवहार करने.अपने ही विधायकों की उपेक्षा करने का आरोप लगाकर 23जून 2009को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया और रमेश पोखरियाल ‘निशंक‘को मुख्यमंत्री बना दिया गया.निशंक पर दर्जनों घोटालों का आरोप लगा.उन्होंने अपने हटाए जाने के पहले चार जिलों की घोषणा की.निशंक10-09-2011 तक मुख्यमंत्री रहे।
दिनाँक11-09-2011को पुन:खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया.उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही निशंक द्वारा घोषित जिलों को समाप्त किया.तीसरे विधानसभा चुनाव में खंडूड़ी जरूरी का नारा दिया गया पर खंडूड़ी कोट्द्वार विधानसभा सीट से विधायक का चुनाव हार गये.वे 13मार्च 12 तक मुख्यमंत्री रहे.भाजपा आलाकमान ने इस विधान सभा पर तीन मुख्यमंत्री थोप दिए.भाजपा सरकार ऐसा कोई कार्य नहीं कर पायी कि उसे याद रखा जाय.आम चुनाव में कांग्रेस को अधिक सीट मिली. बसपा,यूकेडी व निर्दलियों के सहारे सांसद विजय बहुगुणा को 14-03-12 मुख्यमंत्री बनाया गया.पूर्व जज व पेशे से वकील बहुगुणा से बहुत उम्मीद थी जनता को.पर केदारनाथ आपदा को गंभीरता से न लेने वाले और राहत कार्य में असफल रहने वाले बहुगुणा से लोगों का मोह भंग हो गया.इधर आन्दोलनकारियों को मिलने वाले क्षैतिज 10%आरक्षण को हाईकोर्ट नैनीताल द्वारा बंद किए जाने के आदेश से आन्दोलनकारी मुख्यंमंत्री व महाधिवक्ता उमाकान्त उनियाल को हटाने की मांग करने लगे.अंततः जनता के आक्रोश को देखते हुए कांग्रेस हाई कमान ने 01-02-2014 को इन्हें हटा कर राज्य की कमान हरीशरावत को सौंप दी.
बहुगुणा ने अपने पुत्र साकेत बहुगुणा को लोकसभा चुनाव जिताने की कोशिश की पर असफल रहे.कहते हैं कि विजय बहुगुणा जनता को मिलने में कतराते थे.विजय बहुगुणा के राज में हरकसिंह रावत ऐसी शक्ति के रूप में उभरे जो अपने रिश्तेदारों को किसी भी पद पर बिठा देते थे बिना नियम कानून के.विजय बहुगुणा ने गैरसैण में विधानसभा भवन निर्माण की पहल की.
सांसद से मुख्यमंत्री बने हरीश्चन्द्रसिंह रावतसांसद से मुख्यमंत्री बने हरीश्चन्द्रसिंह रावत ने कई जनहितकारी घोषणाएं की सस्ता भोजन उपलब्ध कराने को इंदिराम्मा कैंटीन खोली,65 साल के बुजुर्गों को रोड़वेज की बसों में फ्री बस सेवा प्रारंभ की.मेरे बुजुर्ग मेरे तीर्थ आदि योजनाएं गैरसैंण विधानसभा सत्र आहूत करना.आन्दोलनकारियों को पेंशन जैसे काम उन्होंने किए.पर उनके नौ साथियों के द्वारा उनके खिलाफ बगावत करने के बाद 18 मार्च16 से 28-04-16 तक प्रदेश को राष्ट्रपति शासन झेलना पड़ा 29अप्रैल को विस में शक्तिपरीक्षण के बाद हरीशरावत पुन: मुख्यमंत्री बन गये.इसके अलावा मुख्यमंत्री ने जगह जगह बहुत सी घोषणाएं की पर 80%घोषणाएं केवल ढपोरशंखी ही रही हैं।
(लेखक राज्य निर्माण सेनानी व राज्य स्तरीय मान्यताप्राप्त पत्रकार हैं।)