उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय पार्टियों के मुख्यमंत्री या कठपुतलियां।
लेख- नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
राज्य आन्दोलनकारी
बहुत संघर्ष व बलिदानों के बाद आखिर में 15 अगस्त 1996 को प्रधानमंत्री श्री देवीगौड़ा ने लालकिले की प्राचीर से उत्तराखण्ड स्थापना की घोषणा की। परन्तु इसके बाद देश में केन्द्रीय राजनैतिक अस्थिरता के कारण राज्य की स्थापना नहीं हो सकी।श्री अटलबिहारी बाजपेयी की अगुवाई में जब बीजेपी व उसके सहयोगी दलों की स्थिर सरकार बनी तो 09 नवम्बर 2000 को केन्द्र की सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना कर दी।जिसमें वि.स. की 70 सीटें घोषित की गयीं।

राज्य तो बना पर उसके पहाड़ी राज्य की अवधारणा को समाप्त कर इसमें वे मैदानी भूभाग भी सम्मिलित कर दिये गये जहाँ के निवासी राज्य के घोर विरोधी थे। उत्तराखण्ड बनने के बाद पहाडी़ राज्य की अवधारणा तब खंडित हुई जब इसका नाम उत्तरांचल रख कर इसकी अस्थाई राजधानी देहरादून बना दी गयी। कुल तीस में से 23 विधायक भाजपा के होने के कारण यहां पर भाजपा की सरकार घोषित कर देहरादून निवासी एमएलसी श्री नित्यानन्द स्वामी को जो हरियाणा मूल के थे को मुख्यमंत्री बना दिया गया। मुख्यमंत्री बने श्री नित्यानन्द स्वामी को मंत्री बनने तक का अनुभव नहीं था फलत: राज्य में अधिकारियों की बन आयी।जिससे पार्टी स्तर पर ही मुख्यमंत्री का विरोध शुरू हो गया।
श्री नित्यानन्द स्वामी का विरोध देखते हुए भाजपा पार्टी हाईकमान ने 29 अक्तूबर 2001 उन्हें हटा कर तत्कालीन ऊर्जामंत्री श्री भगतसिंह कोश्यारी (वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल)को राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश दे दिया कि राज्य में विधायकों की नहीं भा.ज.पा. हाई कमान की चलेगी। 30अक्तूबर 2001को दूसरे मुख्यमंत्री बने श्री कोश्यारी को भी शासन का गहन अनुभव न होने से उनकी भी निर्भरता अधिकारियों पर रही।उनके मुखमंत्रित्व काल में अधिकारी निरंकुश से हो गये थे जिससे छोटे कर्मचारियों की समस्या इतनी बढ गयी थी कि उनको आन्दोलन करना पड़ा।जिसपर पुलिस के घोड़े दौड़ाए गये।जिसका बदला कर्मचारियों ने पहले आम चुनाव 2002 में भाजपा को हरा कर लिया।भाजपा को केवल 19 सीटें मिली कांग्रेस 36 सीटों को लेकर विधान सभा में बहुमत पा गयी।
मेरी लाश पर बनेगा उत्तराखण्ड कहने वाले कांग्रेसी नेता पंडित नारायणदत्त तिवारी के नेतृत्व में 02 मार्च 2002 को उत्तराखण्ड की एकमात्र स्थाई सरकार बनी जो पूरे पांच साल चली। श्री तिवारी ने अपने विरोध करने वाले मंत्रियों के भी सत्ताच्युत कर उन्हें यह संदेश दे दिया कि उनका विरोध महंगा पड़ेगा,फलस्वरूप उन्होंने पांच साल तक सरकार चलाई।उत्तरांचल के उत्तराखण्ड नाम दिया।एम्स की स्थापना,तहसीलों ,उपतहसीलों की स्थापना सहित अनेक विकास कार्य हुए।मुख्यमंत्री श्री तिवारी की रसिक प्रवृति जनता को रास नहीं आयी।फलस्वरूप विधानसभा के दूसरे आमचुनाव में कांग्रेस को केवल 22 सीटें मिली भाजपा के 35 सीटें मिली।
भाजपा ने पूर्व मे.ज.,पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा सांसद श्री भुवनचन्द्र खण्डूडी़ को 08मार्च 2007 को मुख्यमंत्री बना दिया। पर उनकी कार्यशैली से असंतुष्ट हो कर उनके कुछ मंत्री व विधायक ही उनके विरोध में उतर गये। पार्टी के आलाकमान ने फिर नेतृत्व परिवर्तन कर जता दिया कि उत्तराखण्डी नेता उनकी कठपुतली हैं। 23 जून 2009 के उनको हटा कर उनके कैबिनेट मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यममत्री बना दिया गया।उन पर कुम्भ निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर उन्हें भी जाना पड़ा। पुन: श्री भुवनचन्द्र खण्डूड़ी को 11 सितंबर 2011 को मुख्यमंत्री बनाया गया।जाते जाते मुख्यमंत्री श्री निशंक ने जो चार जिले घोषित किये थे श्री खण्डूड़ी ने उन्हें समाप्त कर दिया।जिससे उस क्षेत्र की जनता नाराज हो गयी। श्री खंडूड़ी आगामी आम चुनाव में “खण्डूड़ी है जरूरी” के नारे के साथ 2012 में चुनाव में उतरे पर जनता बीजेपी के कुराज से इतना तंग आ चुकी थी वे पार्टी को जीत क्या दिलाते स्वयं भी चुवाव हार गये।हां इस अवधि में लोकपाल बिल बनाना व बाहरी लोगों के लिए निश्चित सीमा में भूमि खरीदने का कानून बनाना उनकी उपलब्धि रही।
तीसरी विधानसभा में भाजपा को 31सीटें,कांग्रेस को 32 सीटें,बसपा के 03,उक्रांद पी के 01 तथा निर्दलियों को 03 सीटें मिलीं। फलस्वरूप कांग्रेस ने उक्रांद पी व बसपा व निर्दलीयों के साथ गठबंधन कर सत्ता प्राप्त कर ली। कांग्रेस ने अपनी नीति के अनुसार पूर्व हाईकोर्ट के जज व गढवाल सांसद श्री विजय बहुगुणा को 13 मार्च 2012 मुख्यमंत्री बना कर प्रदेश पर थोप दिया।राजनीतिक अनुभव न होने के कारण वे अधिकारियों पर निर्भर हो गये फलस्वरूप नौकरशाही निरंकुश हो गयी। 2013 में केदारनाथ आपदाआयी जिसमें हजारों तीर्थ यात्रियों मारे गये व गायब हो गये। बचाव व राहत कार्य में ढिलाई बरतने के आरोप में आला कमान ने उन्हें हटा दिया और केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री श्री हरीश चन्द्र सिंह रावत को 01फरवरी 2014 को उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री के रूप में थोप दिया गया।
श्री हरीश रावत के कार्यकाल में प्रदेश में उनकी पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री श्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में उनके 9 विधायक पार्टी छोड़ गये जिससे सरकार के अल्पमत घोषित कर विधानसभा को निलंबित कर 27मार्च 2016 को प्रदेश में पहली बार राष्ट्रपति शासन घोषित कर दिया गया।जो कि न्यायालय के आदेश पर 21अप्रैल16 को समाप्त हुआ श्री हरीश रावत पुन: सत्ता में आये।परन्तु केन्द्रीय सरकार ने 22अप्रैल16 को पुन: राष्ट्रपति शासन लगा दिया।जो मई 2016 को समाप्त हुआ।यह एकमात्र ऐसे मुख्यममत्री रहे हैं जिनके शासनकाल में राष्ट्रपति शासन लगा वह भी दो बार। अन्तत: चौथी विधानसभा का चुनाव हुआ।मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत किच्छा व हरिद्वार दोनों जगहों से चुनाव हार गये।इस अवधि में गैरसैंण में विधान सभा भवन बना और पू.मु.मं.श्री खंडूड़ी का बनाया लोकपाल बिल जो राष्ट्रपति से स्वीकृत हुआ था को परिवर्तित कर पुन: स्वीकृति हेतु राष्ट्रपति को भेजा गया।श्री हरीश रावत ने अपने कार्यकाल में विकास घोषणाएं तो बहुत की परंतु अधिकारियों ने उन्हें कार्यरूप में परिणित नहीं किया।

चौथी विधानसभा में कांग्रेस के कुशासन से तंग आयी जनता ने जहां कांग्रेस मुख्यमंत्री को दो सीटों से हराया वहीं चुनाव में भाजपा को 56 सीटें देकर सत्तासीन करवाया दिया।भाजपा आलाकमान ने प्रदेश की सरकार का मुखिया विधायकों में से एक चुना। विधायक श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जिन पर पूर्व में कृषिमंत्री के रूप में ढेंचा बीज घोटाले का आरोप लग चुका था को 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री बना दिया। श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत लगभग चार साल विवादित मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता में बने रहे।कुछ लोग उन्हें अति अहंकारी भी बताते हैं।उनपर आरोप है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने अपनी मनमानी की है।शायद आसन्न चुनाव देखते हुए उनके कार्यकाल के चार साल पूरा होने में कुछ ही दिन दिन पूर्व भाजपा आलाकमान ने उन्हें हटा कर 10 मार्च 2021 को गढवाल सांसद श्री तीरथसिंह रावत को मुख्यमंत्री बना कर अपनी सांसद थोपने की नीति का प्रयोग कर दिया।
श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पूर्व भाजपा मुख्यमंत्री श्री भुवनचन्द्र खंडूड़ी के भू कानून को बाहरी लोगों के हित में परिवर्तित कर दिया।साथ ही उन्होंने चार धाम के संचालन के लिए एक सरकारी बोर्ड गठित करने का विवादित कानून बना दिया।किया।जिसका तीर्थ पुरोहित आज भी विरोध कर रहे हैं।श्री रावत के कार्यकाल में कई विकासकार्य पूरे हुए हैं पर उनके शासनकाल में उनकी ही घोषणाओं को अधिकारियों ने गम्भीरता से नहीं लिया।मुख्यमंत्री हेल्पलाईन में शिकायत दर्ज करने पर शिकायत का निवारण न करके कृपा कहां अटकी है बता कर शिकायत समाप्त कर दी जाती थी।
साफ सुथरी छवि के मुख्यमंत्री श्री तीरथसिंह रावत अपने लगभग चार माह के कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं को बजट देकर उन्हे पूर्ण करवाने की पहल की।पर शायद आला कमान की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने के कारण 04 जुलाई 2021 को खटीमा के विधायक श्री पुष्करसिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया।

मुख्यमंत्री बनते ही श्री धामी ने सबसे पहले श्री त्रिवेन्द्रसिंह रावत के समय के मुख्य सचिव सहित नौकरशाही में फेर बदल कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए।उन्होंने एक वरिष्ठ मंत्री व एक चर्चित आईएएस की बात न मान कर अपनी दृढता का परिचय दे कर मंत्रीमंडल के साथियों के यह संदेश भी दे दिया कि वे किसी के दबाब में नहीं आने वाले हैं।उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं पर त्वरित कार्य करने के साथ ही नयी घोषणाएं वित्त सहित घोषित की। उनका जोर है कि सीएम हेल्पलाईन में दर्ज शिकायतों का निराकरण हो।साथ ही उनका प्रयास है कि पिछले चार साल के में जनता की जो अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई उन्हें पूरा किया जाय। वे जनता को कहां तक संतुष्ट कर पाते हैं यह अगला आम चुनाव ही बता पाएगा।
इस राज्य का दुर्भाग्य रहा कि इस राज्य की सत्ता केन्द्रीय पार्टियों के हाथ रही वे राज्य हित में नहीं पार्टी हित में मुख्यमंत्री बनाते हैं। भाजपा ने जहां अंतरिम सरकार में दो मुख्यमंत्री,दूसरे व चौथे आम चुनाव के बाद बनी अपनी सरकारों में तीन तीन मुख्यमंत्री बनाये वहीं कांग्रेस ने तीसरे आमचुनाव के बाद बनी अपनी सरकार के दो मुख्यमंत्री बनाए। मुख्यमंत्री राज्य के हित में चाहते हुए भी निर्णय नहीं ले सकते थे। क्षेत्रीय पार्टी की सत्ता में भागीदारी तो रही है पर वे भी राज्य के साथ न्याय नहीं पाये।फलत:स्थानीय मूलनिवासियों की दशा उत्तरप्रदेश से भी बदतर हो गयी है।नौकरियों में मूल निवास हटाकर स्थाई वास कर दिया गया है।पहले जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र,परिवार रजिस्टर की नकल,राशनकार्ड बनाना ग्राम पंचायत स्तर पर होता था पर अब ऑनलाईन के नाम पर सबको विकासखण्ड कार्यालय जाना होता है।उनके मिलने की समयावधि 15 दिन है। जमीन की नकल पट्टी पटवारी दे देता था अब तहसील मुख्यालय जाना पड़ता है। सरकारों ने जनता को होने वाली इन कठिनाइयों की ओर ध्यान नहीं दिया। देखते हैं आगामी चुनाव का ऊंट किस ओर बैठता
फोटो- अन्तर्जाल से साभार