उत्तराखंड राज्य के निर्माण संघर्ष की गाथा-Janswar.com

उत्तराखंड राज्य के निर्माण संघर्ष की गाथा

लेख-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी

किसी भी भूभाग के निवासियों का सपना होता है कि उनके शासन की पृथक इकाई हो.जिसका संचालन उनके द्वारा किया जाय जिससे उनकी संस्कृति,भाषा,अधिकारों और आजीविका की रक्षा हो सके.उनकी पृथक पहचान बनी रह सके.आजादी के समय इस पर्वतीय भूभाग को उत्तरप्रदेश में शामिल करने की हमारे तत्कालीन नेताओं की भूल यहां के लोगों को लगभग बावन वर्ष तक उत्तरप्रदेश के उपनिवेश के रूप में रह कर झेलनी पड़ी.
बहुत से लोग यह नहीं जानते कि मुगलकाल में भी उत्तराखंड दिल्ली के बादशाह के अधीन नहीं रहा.हिमालय के नैपाल, कुमाऊं और गढवाल राज्य सार्वभौम सत्ता के स्वामी रहे.1803-04में नेपाल के अमरसिंह थापा व हस्तीदल चतुरिया की सेना ने पहली बार कुमाऊं और गढवाल को पूर्ण पददलित किया.गढवाल कुमाऊं के राजा प्रद्युम्न शाह की देहरादून के खुड़बुड़ा मैदान में वीरगति पाते ही सारा गढवाल -कुमाऊं का साम्राज्य नैपाल के राजा के अधीन हो ग़या.सन्1814में गढवाल के युवराज सुदर्शन शाह ने कुमाऊं के वजीर हर्षपति जोशी की सम्मति पर ईस्टइंडिया कंपनी की मदद से गोरखों को मार भगाया.और नेपाल के राजा के साथ सिंगोली की संधि की.सिंगोली की संधि वास्तव में नैपाल के राजा और गढवाल के राजा के बीच हुई.गोरखे नैपाल लौट गये.युवराज सुदर्शनशाह को अलकनंदा का पूर्वीभाग व कुमाऊं युद्ध खर्चे के रूप में अंग्रेजों को देना पड़ा.इस संधि के साथ कि यहां के निवासियों पर राजा के कानून ही चलेंगे.जिसका अंग्रेजों ने पालन किया.और जो आजादी के दिन तक चलता रहा.
आजादी के बाद इसे उत्तर प्रदेश में मिला दिया गया.पर यहां की जनता के मन में एक छटपटाहट बनी रही.अलग राज्य के लिए.बता़या जाता है इसके लिए सबसे पहला प्रयास सन्1897 में किया गया.जिसके लिए पं.हरिदत्त पांडे,पं.ज्वालादत्त जोशी,रायबहादुर बद्रीदत्त जोशी,व पं.गोपाल दत्त जोशी आदि ने अपने हस्ताक्षर युक्त एक प्रत्यावेदन इंग्लैंड की महारानी को भेजा.जिसमें तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नरी(टिहरी रियासत को छोड़कर)को एक अलग राज्य बनाने की मांग की गयी.जिसे नकार दिया गया.
इसके बाद कुमाऊं के गोविंद बल्लभ पंत,हरगोविंद पंत,बद्रीदत्त पांडे,इंद्रलाल शाह आदि ने कुमाऊं परिषद की स्थापना की.इस परिषद ने भी कुमाऊं कमिश्नरी को पृथक राज्य बनाने की मांग की परन्तु उसे नहीं माना गया.बाद में कुमाऊं परिषद का कांग्रेस में समा गयी.
कुमांऊं गढवाल को पृथक राज्य बनाने के प्रयास निरंतर जारी रहे.सन्1929 में राजा आनंदसिंह,त्रिलोकसिंह रौतेला,ठा.जंगबहादुर सिंह बिष्ट,खुशहालसिंह,एफ.रिच,हाजी नियाज मोहम्मद,डेनियल पंत आदि ने संयुक्त प्रांत के गवर्नर से मिल कर इसे अलग प्रांत बनाने की मांग की पर उनकी मांग ठुकरा दी गयी.
पर वह प्रयास ही क्या जो रुक जायें.05-06 मई 1938 में कांग्रेस के श्रीनगर गढवाल में कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस के अग्रणी नेता जवाहरलाल नेहरू और उनकी बहिन पं.विजयलक्ष्मी पंडित उपस्थित हुए.अपने वक्तव्य में पं.नेहरू ने पर्वतीय इकाइयों की संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए उनकी पृथक इकाई बनाने की आवश्यकता बताई.सम्मेलन में तत्संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया, जिस पर अंग्रेजी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया.पर जब पं जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने तो वे भी इस बात को भूल गये.1938 में श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में पहले गढदेश सेवा संघ की स्थापना की और बाद में इसे हिमालय सेवासंघ के नाम से विस्तारित कर पृथक राज्य की मांग की.बाद में वे टिहरी रियासत को राजा के चंगुल से छुड़ाने के आंदोलन में जुट गये.जिससे पृथकराज्य का उनका आन्दोलन रुक गया.
सन् 1940 में काग्रेंस के हल्द्वानी सम्मेलन में बद्रीदत्त पांडे ने कुमाऊं गढवाल को विशेष दर्जा व अनसूयाप्रसाद बहुगुणा ने पृथक पर्वतीय राज्य की मांग रखी.जिसे संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री गोविंदबल्लभ पंत ने खारिज कर दिया.
आजादी के बाद सन्1952ई. में राज्यों के पुनर्गठन के लिए बने पणिकर आयोग के अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य के पक्षधर थे पर गोविन्दबल्लभ पन्त ने हिमाचल राज्य गठन की तो स्वीकृति दी पर उत्तराखंड राज्य के गठन को अस्वीकृत कर दिया.इसी वर्ष कामरेड पीसी जोशी ने उत्तराखंड की मांग उठाई़.
सन् 1954में विधान परिषद सदस्य इन्द्रसिंहं नयाल ने पृथक राज्य की मांग की पर पं.गोविन्दबल्लभ पंत ने उसे ठुकरा दिया.सन्1955में पर्वतीय जन विकास समिति ने नई दिल्ली में सम्पन्न सम्मेलन में पृथक राज्य का प्रस्ताव पारित किया.इसी वर्ष फजलअली आयोग ने पर्वतीय राज्य की तथा 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी.टी.कृष्णामाचारी मे पर्वतीय क्षेत्र की समस़्याओं के निदान के लिए विशेष सुझाव दिए.पर राज्य व केन्द्र सरकार ने उनकी बात नकार दी.
जहां सरकार पृथक राज्य की मांग ठुकराती रही वहीं उत्तराखंडी भी अपने प्रयास पर जुटे रहे.सन्1966को उ.प्र.के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्त पूर्वमंत्री जगमोहनसिंह नेगी ने रामनगर कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र के लिए पृथक प्रशासनिक आयोग के गठन का प्रस्ताव पास कर केन्द्र को भेजा.इसी वर्ष 24-25 जून को नैनीताल में दयाशंकर पाडे की अध्यक्षता में ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल,गोविन्द सिंह मेहरा आदि ने आठ पर्वतीय जिलों को आधार बना कर पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया.जिसने ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल के नेतृत्व में राज्य निर्माण हेतु वोट क्लब में प्रदर्शन किया.14-15 अक्तूबर को दिल्ली में उत्तराखंड विकास गोष्ठी हुई जिसमें गोष्ठीउद्घाटन कर्ता के रूप में मौजूद केन्द्रीय मंत्री अशोक मेहता के सम्मुख सांसद व टिहरी रियासत के पूर्व महाराजा मानवेन्द्रशाह ने केन्द्रशासित प्रदेश की मांग की.पर केन्द्र सरकार ने उसे भी ठुकरा दिया.
लोकसभा में टिहरी नरेश सांसद मानवेंद्रशाह के द्वारा रखे गये पारित प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग ने पर्वतीय नियोजन प्रकोष्ठ खोला.12 मई 1970 को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागांधी ने घोषणा की कि पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान प्राथमिकता से होगा.
सन्1971 में प्रतापसिंह बिष्ट ने पृथक राज्य के लिए कुर्बानी देने का आवाह्न कि़या.1972 को ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल व पूरणसिंह डंगवाल सहित 21 लोगों ने राज्य की मांग को लेकर बोटक्लब पर प्रदर्शन कर गिरफ्तारी दी.1973 ई.में पर्वतीय राज्यपरिषद का नाम परिवर्तित कर उत्तराखंड राज्यपरिषद कर दिया गया.तथा सांसद प्रताप सिंह बिष्ट को अध्यक्ष बनाया गया.इसी वर्ष उ.प्र. के मुख्यमंत्री स्व.हेमवतीनंदन बहुगुणा ने उत्तरप्रदेश में पर्वतीय विकास मंत्रालय का गठन किया.सन् 1978 में चमोली के विधायक प्रताप सिंह के नेतृत्व में बद्रीनाथ से बोटक्लब तक पद यात्रा की गयी.इसी वर्ष राष्ट्रपति को ज्ञापन देने जा रहे 71.लोगों को तिहाड. जेल भेज दिया गया.जिनमें 19.महिला भी थी.
इधर सरकार उत्तराखंड बनाने को तैयार नहीं थी और उधर जनता भी हार मानने को तैयार नहीं थी.31जनवरी 1979 को दिल्ली मे 15 हजार से अधिक लोगों ने पृथक राज्य की मांग के लिए दिल्ली में मार्च निकाला.इधर यहां के बुद्धिजीवियों ने 24-25 जुलाई को मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया.प्रसिद्ध वैज्ञानिक व कुमाऊं वि.वि. के कुलपति डा.डी.डी.पंत इसके संरक्षक बने.यूकेडी को 1980 में रानीखेत विधानसभा सीट से जसवन्तसिंह के रूप में एक विधायक मिल गया यूकेडी ने सन्1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागांधी से 45 मिनट वार्ता की पर राज्य बनाने की मांग नहीं मानी गयी.इसी वर्ष वन अधिनियम के बनने से वनों पर आधारित रोजगार समाप्त हो गये.1983 में चौधरी चरणसिंह ने उत्तराखंड की मांग को राष्ट्रहित के विरुद्ध बताया.आल इंडिया स्टूडेंट फैडरेशन ने राज्य निर्माण के लिए गढवाल क्षेत्र में 900 कि.मी.की यात्रा निकाली.
सन् 1985 में यूकेडी को उ.प्र.विधानसभा में काशीसिंह ऐरी के रूप में युवा विधायक मिला.9मार्च 87 को यूकेडी ने पौड़ी में रैली निकाली,23 अप्रैल को यूकेडी उपाध्यक्ष त्रिवेंद्रसिंह पंवार ने लोकसभा में उत्तराखंड के गठन संबंधी पर्चे फेंके.6 जून को देहरादून में रैली निकाली गयी.20जून1987 को पिथौरागढ जिला मुख्यालय में प्रदर्शन किया गया. 9सितम्बर87 को उत्तरांखंड बंद 10 नवम्बर को कुमाऊं के एक युवक तथा 23 नवम्बर को धीरेन्द्र प्रताप भदोला नें लोकसभा की दर्शक दीर्घा से नारे लगा कर गिरफ्तारी दी.23 सितम्बर को ही बोटक्लब पर उत्तराखंडियों ने धरना प्रदर्शन किया.
23 फरवरी 88 को असहयोग आन्दोलन की अपील की गयी.12-13 सितंबर88 को 36 घंटे का उत्तराखंड बन्द का व्यापक असर हुआ.23 अक्तूबर को दिल्ली जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम मे हिमालयन कार रैली का विरोध करने वाले उत्तराखंडियों पर लाठी चार्ज किया गया.
25 मई 89 को उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी एवं प्रगतिशील युवामंच द्वारा देहरादून हल्द्वानी में रेल रोको आन्दोलन किया गया.उ.प्र.के मुख्यमंत्री मुलायमसिंह ने उत्तराखंड को उ.प्र.का ताज बताते हुए राज्य बनाने से इंकार कर दिया.10 अप्रैल 90 को भाजपा की उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति ने बोटक्लब दिल्ली में रैली की.11मार्च 1991 को मुलायम सिहं ने पृथकराज्य की मांग ठुकरा दी.30अगस्त91 को कांग्रेसी नेताओं ने वृहदउत्तराखंड की मांग उठाई.जिसे जनता ने अस्वीकार कर दिया.1991 में उ.प्र.में बनी भाजपा सरकार ने पृथकराज्य संबंधी प्रस्ताव केन्द्र को भेजा.दिसम्बर माह में उ़.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी ने कि उत्तराखंड मेरी लाशपर बनेगा कह कर राज्य का विरोध किया.जिसको किसी ने तवज्जो नहीं दी.
सन्1993 में लोकसभा में राज्य गठन हेतु हुए मतदान में राज्य के पक्ष में 98 व विपक्ष में 152 मत पड़े.
सन्1993 में हुए मध्यावर्ती चुनाव में मुलायम सिंह यादव उ.प्र. के मुख्यमंत्री बने.इस बार उनकी समझ में आ गया कि उत्तराखंड को अब अलग करना पड़ेगा.उन्होंने 21 जून 93 को रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जिसने 05मई1994 को 356 पृष्ठों में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें आठ पर्वतीय जनपदों को मिला कर पृथक राज्य की संस्तुति कर दी तथा गैरसैण राजधानी की सम्भावना की पुष्टि की.23नवम्बर93 को उत्तराखंड जनमोर्चे का गठन हुआ.11दिसम्बर93 में ओबीसी को 27प्रतिशत आरक्षण दिए जाने पर पूरे प्रदेश में बबाल मच गया.जुलाई 94 में जब विद्यालय खुले तो छात्रों ने प्रवेश में भी 27प्रतिशत ओबीसी आरक्षण होने पर छात्रों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया.सरकार ने उत्तराखंड के विद्यालय बंद कर दिए.11जुलाई1994 को पौड़ी में उक्रांद ने प्रदर्शन किया.02अगस्त 94 को उक्रांद के संरक्षक व पर्वतीय गांधी के नाम से पुकारे जाने वाले इन्द्रमणी बडोनी के नेतृत्व में आठ लोग पौड़ी कलेक्टेट के पास आमरण अनशन पर बैठ गये.03 अगस्त को चीला में आन्दोलनकारी महिलाओ पर एक पर्यटक द्वारा टक्कर मारने पर आक्रोशित लोगों के द्वारा सवारियों को उतार कर कार पर आग लगाने पर पुलिस ने पांच लोगों इन्द्रसिंह,प्रकाश नैथानी,संजय, कमल सिंह व साबरसिंह गुसांई को जेल भेज दिया.07-08-09 अगस्त को पुलिस द्वारा पौड़ी में लाठीचार्ज किए जाने पर पूरे उत्तराखंड में आंदोलन प्रारंभ हो गया.10अगस्त को श्रीनगर में उत्तराखंड छात्र संघ का गठन किया गया.इसी दिन पौड़ी में संयुक्त संघर्षसमिति का गठन किया गया.
उत्तराखंडियों के आन्दोलन को देख कर उ.प्र.की वि.स.ने 24अगस्त को पुनःअलग राज्य का प्रस्ताव बना कर केन्द्र को भेजा पर केन्द्र में बैठी कांग्रेस की गूंगी बहरी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया.31अगस्त94 को यूकेडी नेता दिवाकरभट्ट के नेतृत्व में संसद का घेराव किया गया.
एक सितम्बर 94 को खटीमा में पुलिस ने शान्तिपूर्वक जलूस पर बिना चेतावनी के गोली चला दी.जिसमें भगवान सिंह,सलीमअहमद,गोपीचन्द, धर्मानंद,रामगोपाल आदि शहीद हो गये.02 सितम्बर 94 को पुलिस ने मसूरी में धरनास्थल पर बैठे आन्दोलनकारियों को गोली मार दी जिसमें बेलमती चौहान ,हंसाधनाई,धनपत सिंह, मदनमोहन, रायसिंह बंगारी आदि आन्दोलनकारियों के साथ सीओ मसूरी त्रिपाठी को भी शहीद कर दिया गया.

——क्रमश:—

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