अकेले ही सात मछली तालाब,एक पॉलीहाउस,एक मुर्गी फॉर्म का संचालन व नगदी फसलें उगाकर उदाहरण बने हैं गहली गाँव के शशिभूषण कुकरेती-लेख नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी राज्य मान्यता प्राप्त पत्रकार-www.janswar.com

अकेले ही सात मछली तालाब,एकपॉलीहाउस,एक मुर्गी फॉर्म का संचालन व नगदी फसलें उगाकर उदाहरण बने हैं गहली गाँव के शशिभूषण कुकरेती

-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी

 

 

 

( फोटो-श्री कुकरेती,पॉली हाउस में सब्जी,मुर्गी फार्म,पॉली हाउस में खीरा की बेल)

             जनपद पौड़ी गढवाल में द्वारीखाल ब्लॉक के गहली गाँव की मिट्टी व पानी में एक विशेष ही गुण है यहाँ का एक साधारण परिवार का व्यक्ति ठान लेता है तो शिब्बू से डाक्टर शिव प्रसाद डबराल बन जाता है।और सैकड़ों ग्रंथों की रचना कर कालजयी बन जाता है।इसी गाँव के एक साधारण किसान ने अकेले ही वहाँ बहते पानी का उपयोग कर एक उदाहरण प्रस्तुत कर दिया है.

        सात मछली के तालाब एक पॉली हाउस एक मुर्गी फार्म और लगभग पाँच बीघा जमीन पर विभिन्न नगदी फसलें उगा रहे हैं पौड़ी गढवाल के गहली गाँव के सैंण में 66 वर्षीय किसान शशि भूषण कुकरेती।

(फोटो-मछली तालाब)

इस 17अक्तूबर को एक पारिवारिक कार्यक्रम में मेरा गहली जाना हुआ। रात भोजन के समय मेरी मुलाकात श्री शशिभूषण से हुई।उनकी ससुराल हमारे पैतृक गाँव ग्वाड़ी में है तथा वे वंश नाते में मेरे फूफा जी हुए। सो मैंने सोचा क्यों न इनके ही घर चला जाय।उनका घर गाँव से काफी दूर था।भोजनोपरांत हम दोनों उनके घर गये।वे मेरी सोने की व्यवस्था करके स्वयं खेत में जा रहा हूँ कह कर चले गये। सुबह जब मैं अपने अतिथेय के यहां जाने को तैयार हुआ तो वे आ पहुँचे। उन्होंने मुझे अपने फार्म हाउस में चलने का निमंत्रण दिया। तो मैं उनके साथ फार्म हाउस पर चला गया।

(फोटो-पहाड़ी मूला की अभी बोयी फसल)
फार्म हाउस पर पहुँचते ही सबसे पहले मुर्गोंं की बाँग ने हमारा स्वागत किया मैंने पूछा कितने मुर्गे हैं तो उन्होंने बताया कि सभी मिला कर 80-90 के करीब होंगे।उन्होंने खिड़की की जाली से मुझे दिखाया।उसके बाद उन्होंने मुझे अपना गेस्ट रूम दिखाया जहां सभी सुविधा युक्त सज्जा थी आधुनिक ढंग का टीवी भी लगा था रसोई गैस भी थी।इसके बाद दिखाये उन्होंने अपने मछली के तालाब।जो बहुत बड़े-बडे़ थे।वे चारा डालते और मछलियां ऊपर आतीं सभी तालाब मछलियों से भरे हुए थे।मैंने उनसे पूछा इतने बड़े बड़े तालाब बनाने में बहुत लोगों कीमेहनत लगी होगी तो उन्होंने कहा कि मैं यहाँ प  जेसीबी लाया इनकी खुदाई की गयी।

तालाब देखने के बाद उन्होंने अपना पॉलीहाउस दिखाया।पॉली हाउस के अन्दर पत्ता गोभी,मेथी,मिर्च आदि सब्जियां लगी थीं।इसके बाद उन्होंने मुझे लगभग डेढ बीघे में बोया पहाड़ी मूला दिखाया।जिस पर अभी छोटे छोटे पौधे थे। जिसकी मांग दिल्ली में है।लगभग दो तीन बीघा उन्होंने सरसों के लिए तैयार हो रहे खेत दिखाया। लगभग डेढ बीघा खेत में हल्दी की फसल लहलहा रही थी।।फार्महाउस से जब उनके घर वापस गये तो वहां मैंने लाल भिण्डी के पौधे देखे जो फसल दे चुके थे पर किन्ही किन्ही पौधों पर अब भी भिण्डी लगी थी।

उन्होंने मुझे हजारी केले के पेड़ व इलाइची के पौधे दिखाये।केले पाँच छ साल के थे व इलाइची चार साल के। उन्होंने बताया केले पर फल नहीं आ रहे है।न ही इलाइची पर । जब कि उनकी ही बगल मे पहाड़ी केलें के झुरमुट में कई पेड़ फलों ले लदे थे।  उनकी इलाइची न हजारी केलों पर फल न आने  की का कारण पूछने पर मुझे बागवानी का कोई बड़ा ज्ञान नहीं है इसलिए मैंने सेवा निवृत उद्यान विशेषज्ञ डा०राजेन्द्र कुकसाल का संपर्क नंबर दे कर उनसे से संपर्क करने को कहा।उनके बात करने पर डाक्टर कुकसाल ने उनके हर प्रकार का परामर्श देने का वायदा किया।                                                       श्री कुकरेती से जब मैंने पूछा कि इसपर कितना व्यय हुआ होगा ते इन्होंने बता या कि इन सब पर सरकारी  अनुदान व उनका स्वयं का धन मिला कर लगभग 75-80 हजार रुपये लागत आयी होगी। उनसे यह पूछा गया कि इस कार्य के लिए आपको सहयोगी मिल जाते हैं तो उन्होंने कहा कि सहयोगी कोई नहीं मिलता।कभी-कभी दूसरे गाँव का एक युवक सहयोग दे देता है।सहयोगी न होने से मार्केटिंग नहीं हो पाती।तथा उपज का पूरा लाभ नहीं मिल पाता।

 

(फोटो-ऊपर हजारी केला,बीच में इलाइची,नीचे हल्दी की तैयार फसल)

कुकरेती जी की सबसे बड़ी समस्या है उपज को बाजार तक पहुँचाने की क्यों यह सड़क से दूर है। जेसीबी भी यहाँ खेतों की मेंढों पर चढ कर आयी है। बागवानी विभाग या मंडी विभाग की उत्पाद को बाजार तक पहुँचाने की कोई व्यवस्था नहीं है।सड़क दूर होने के कारण किसान अपना वाहन भी नहीं खरीद पाते। इनके फार्महाउस तक अगर हल्के वााहनों के चलने लायक सड़क बन जाती तो ऐसे उत्साही कृषकों ,बागवानों को बहुत सहायता मिलती। पर नीति नियंताओं की सोच तो केवल शहरों तक ही सीमित है।अगर कुछ गाँवों के मध्य छोटी छोटी संसाधन युक्त मंडी समितियां बनायी जातीं तो ऐसे किसान बहुत कुछ कर सकते हैं।

उनके दो मंजिले मकान जिस पर लगभग आठ दस कमरे हैं के वातावरण को देख कर मैंने उनसे कहा कि यह स्थान होम स्टे पर्यटन के लिए बहुत उपयुक्त है।टीले पर बना मकान टीले के नीचे बहती सदावाही हेंवल नदी जिसकी कल कल उनके घर तक सुनायी देती है। अगर नदी में एक छोटा सा बंध बनाया जाय तो उससे बने तालाब मे छोटी-छोटी पैडल वाली वोट रख दी जाये तो पर्यटक आकर्षित हो सकते हैं।जिस पर उन्होंने बताया कि वे कहा कि होम स्टे का लाईसेँस उन्होंने कि वे तीन वर्ष पूर्व बनाया था पर समय न मिलने के कारण उस् कार्य रूप नहीं दिया जा सका।

श्री कुकरेती के चार बेटे हैं दो उत्तराखण्ड पुलिस में हैं तथा दो प्राईवेट जॉब कर रहे हैं।खेती में किसी को रुचि नहीं है। वे चाहते तो अपने बेटों के साथ शहरों में रह सकते थे। परन्तु वे और उनकी पत्नी आज भी अपने खेतों को आबाद रखे हुए है।जो शहरों की ओर भागते यहां के लोगों के लिए एक उदाहरण है।

(सभी फोटो-नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी)

 

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